
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं, क्योंकि इसी दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था.
देश भर में आज (10 जुलाई 2025) गुरु पूर्णिमा मनाई जा रही है. यह हर साल आषाढ़ की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था. महर्षि व्यास ही महाभारत के साथ ही 18 पुराणों के रचानाकार हैं. इसलिए इस दिन गुरु की उपासना की जाती है और उनके प्रति आभार प्रकट किया जाता है.
आइए जान लेते हैं, आधुनिक काल के ऐसे गुरुओं के बारे में जिन्हें पूरा देश गुरु मानता है. कौन थे इनके गुरु और कैसे हुई शिक्षा-दीक्षा, कैसे गुरु के ज्ञान ने उन्हें महान बना दिया?
13 साल की उम्र में ब्रह्मचारी बने प्रेमानंद जी महाराज
राधारानी के परम भक्त प्रेमानंद जी महाराज के भजन और सत्संग में शामिल होने दूर-दूर से लोग वृंदावन पहुंचते हैं. बताया जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने खुद उनको दर्शन दिए थे. इसके बाद वह घर छोड़ कर वृंदावन आ गए. उनका जन्म उत्तर प्रदेश में कानपुर के सरसौल में एक ब्राह्मण परिवार में साल 1972 में हुआ. नाम रखा गया था अनिरुद्ध कुमार पांडे. पिता का नाम शंभू पांडे और मां का नाम रामा देवी है.
प्रेमानंद जी महाराज के परिवार में धर्म और अध्यात्म का बोलबाला था, जिसका प्रभाव इन पर भी पड़ा. प्रेमानंद जी महाराज के मुताबिक, पांचवीं कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे, तभी गीता का पाठ शुरू कर दिया था. धीरे-धीरे आध्यात्म की ओर उनकी रुचि बढ़ने लगी और 13 साल की उम्र में ही ब्रह्मचारी बनने का निर्णय ले लिया और घर छोड़ दिया.

पांचवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान ही प्रेमानंद जी महाराज ने गीता का पाठ शुरू कर दिया था.
घर छोड़ कर वाराणसी गए और फिर वृंदावन
घर छोड़कर प्रेमानंद जी महाराज वाराणसी पहुंचे और वहीं संन्यासी व्यतीत करने लगे. रोज तीन बार गंगा स्नान करते और तुलसी घाट पर भगवान शिव और मां गंगा की आराधना करते. वह दिन में एक ही बार भोजन करते थे. इसके लिए अपने स्थान पर 10-15 मिनट ही बैठते थे और इतने वक्त में भोजन मिले तो ठीक वरना केवल गंगा जल पीकर रह जाते थे. इसलिए कई-कई दिन उन्होंने भूखे रहकर भी बिताए. बाद में एक संत की प्रेरणा से वह श्रीराम शर्मा द्वारा आयोजित रासलीला देखने गए और एक महीने तक वहां समय बिताया. इसके बाद राधाृकृष्ण में मन ऐसा रमा कि ट्रेन पड़कर मथुरा पहुंच गए. वहां रोज वृंदावन की परिक्रमा और श्री बांके बिहारी के दर्शन करते थे. इसके बाद वह अपने गुरु सहचरी भाव के संत श्रीहित गौरांगी शरण जी महाराज के सान्निध्य में आए और दस वर्षों से भी ज्यादा समय तक उनकी सेवा की. उनके आशीर्वाद से वह पूर्णतः सहचरी भाव के हो गए और श्री राधा के चरणों में अटूट भक्ति विकसित हो गई.
जगद्गुरु रामभद्राचार्य को किनसे मिली शिक्षा?
22 भाषाओं के ज्ञाता, 80 ग्रंथों के रचनातार राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपनी गवाही से दिशा मोड़ने वाले और बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कुमार शास्त्री के गुरु गुरु रामभद्राचार्य ने तुलसीकृत हनुमान चालीसा में भी गलतियां निकाल दीं. चित्रकूट में तुलसी पीठ की स्थापना करने वाले जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर में स्थित सांडीखुर्द में हुआ. उनके बचपन का नाम गिरधर मिश्र है. पिता का नाम पंडित राजदेव मिश्र और माता का शचि मिश्रा है. वह दो महीने के थे तभी आंखों की रोशनी चली गई. इसके बावजूद वह आध्यात्मिकता की राह पर आगे बढ़ते रहे और राम प्रसाद त्रिपाठी से संस्कृत की शिक्षा ग्रहण की. समय के साथ पंडित ईश्वर दास महाराज से गुरु मंत्र लिया और फिर गुरु राम चरण दास के सान्निध्य में आकर रामानंदी संप्रदाय में शामिल हो गए.

गुरु रामभद्राचार्य ने पंडित ईश्वर दास महाराज से गुरु मंत्र लिया.
उनको धर्म चक्रवर्ती, महामहोपाध्याय, श्री चित्रकूट तुलसी पीठाधीश्वर, जगद्गुरु रामानंदाचार्य, महाकवि, और प्रस्थानत्रयीभाष्यकार की उपाधियां मिली हैं. राम कथाकार जगद्गुरु रामभद्राचार्य को रामचरितमानस, गीता, वेद, उपनिषद और वेदांत आदि कंठस्थ हैं. उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मविभूषण से भी नवाजा जा चुका है. जगद्गुरु रामभद्राचार्य रामानंद संप्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं. इस पद पर वह साल 1988 से प्रतिष्ठित हैं.
योग गुरु स्वामी रामदेव के गुरु कौन?
देश ही नहीं, पूरी दुनिया को योग और आयुर्वेद का ज्ञान देने वाले योग गुरु स्वामी रामदेव का जन्म हरियाणा के एक गांव में 25 दिसंबर 1965 को हुआ. उनके बचपन का नाम रामकृष्ण यादव है. पिता का नाम रामनिवास यादव और मां का गुलाबो देवी है. स्वामी रामदेव ने हरियाणा के कलवा गांव के गुरुकुल में 14 साल की उम्र में प्रवेश लिया था. वहां उन्होंने संस्कृत के साथ ही योग की शिक्षा ली. उन्होंने आचार्य श्री बदलेव जी के दिशानिर्देशन में संस्कृत व्याकरण, योग, दर्शन, वेद और उपनिषद में विशेषज्ञता के साथ परास्नातक (आचार्य) की डिग्री ली. आगे चलकर वह महर्षि दयानंद के जीवन से प्रभावित होकर सत्यार्थ प्रकाश और ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि का गहन अध्ययन किया. उनके जीवन पर योग के प्रवर्तक महर्षि पतंजलि का गहरा प्रभाव पड़ा और स्वामी रामदेव ब्रह्मचर्य व तपस्या के मार्ग पर चल पड़े. आयुर्वेद और संस्कृत ने भी स्वामी रामदेव को काफी प्रभावित किया. समय के साथ वह गुरुकुलों में योग, पाणिनि की अष्टाध्यायी और पतंजलि का महाभाष्य सिखाने लगे. इसके बाद वह गंगोत्री की गुफाओं की यात्रा पर निकल गए और दुनिया की भीड़भाड़ से दूर अध्यात्म में मन रमाया.
बाद में योग गुरु रामदेव ने योग की शिक्षा स्वामी शंकर देव से ली. योगाचार्य शंकर देव ने ही शुरू में योग को एक नई पहचान दी थी. साल 1992 में योगाचार्य शंकर देव ने ही बाबा रामदेव, बालकृष्ण और दो अन्य साथियों के साथ दिव्य योग ट्रस्ट शुरू किया था. पांच जनवरी 1995 को इसका नाम बदलकर दिव्य योग मंदिर कर दिया गया. आज स्वामी रामदेव पतंजलि के योग और आयुर्वेद के प्रति दुनिया भर के लोगों में जागरूकता फैला रहे हैं.
महर्षि महेश योगी के शिष्य श्री श्री रविशंकर
श्री श्री रवि शंकर भारत ही नहीं, दुनिया भर में आध्यात्मिक और मानववादी गुरु के रूप में जाने जाते हैं. हिंसा और तनावमुक्त समाज की स्थापना के लिएवह विश्वव्यापी आंदोलन चला रहे हैं. श्री श्री रवि शंकर का जन्म 13 मई 1956 को तमिलनाडु में हुआ था. उनके पिता वेंकटरत्नम् एक भाषाकोविद् थे और मां का नाम विशालाक्षी है. आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेकर पिता ने श्री श्री का नाम रविशंकर रखा. बताया जाता है कि केवल चार वर्ष की उम्र में श्री श्री संस्कृत में भागवत गीता का व्याख्यान करते थे. आध्यात्मिक ज्ञान होने के साथ ही उन्होंने वैदिक साहित्य और भौतिक विज्ञान की शिक्षा ग्रहण की. साल 1970 के दशक में श्री श्री रविशंकर ने महर्षि महेश योगी से भावातीत ध्यान सीखा और उनके शिष्य बन गए. उन्होंने महर्षि महेश योगी से गुरु शिष्य परंपरा में ज्ञान प्राप्त किया और फिर साल 1981 में आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन की स्थापना कर इसे दुनिया भर में फैलाना शुरू किया.
यह साल 1982 की बात है. श्री श्री रवि शंकर कर्नाटक के शिमोगा में अचानक 10 दिनों के लिए मौन में चले गए. इसके बाद ही सुदर्शन क्रिया का जन्म हुआ. इसी क्रिया यानी योगासन के जरिए वह दुनिया को तनावमुक्त करने का अभियान चला रहे हैं. सुदर्शन क्रिया में सांस धीमी और तेज गति से अंदर-बाहर की जाती है. सही तरीके से नियमित इस क्रिया का अभ्यास करने से सांसों पर पूरी तरह नियंत्रण मिल सकता है. इससे शरीर का इम्यून सिस्टम बेहतर रहता है और मानसिक बीमारियां भी नहीं घेरती हैं.
कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने संत श्री गिरिराज शास्त्री महाराज से दीक्षा ली
इंस्टाग्राम की रील से लेकर यूट्यूब तक पर छाए रहने वाले वृंदावन के कथावाचक अनिरुद्धाचार्य जी महाराज वृंदावन में ही गौरी गोपाल नाम से एक वृद्धाश्रम भी चलाते हैं. उनका जन्म 27 सितंबर 1989 को मध्य प्रदेश के दमोह जिले में स्थित रिंवझा नाम के गांव में हुआ. पिता मंदिर के पुजारी थे. इसलिए घरेलू आध्यात्मिक माहौल में पड़े-बढ़े. उनका असली नाम अनिरुद्ध तिवारी है.

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य वृंदावन में रामानुजाचार्य संप्रदाय में दीक्षित हुए.
बचपन से ही श्री राधा-कृष्ण मंदिर में सेवा करने के साथ कम उम्र में ही अनिरुद्धाचार्य जी ने रामचरितमानस और श्रीमदभागवत पढ़ ली. उन्होंने गुरु तपस्वी गृहस्थ संत श्री गिरिराज शास्त्री महाराज से दीक्षा ली है. वह वृंदावन में रामानुजाचार्य संप्रदाय में दीक्षित हुए और अयोध्या में अंजनी गुफा वाले महाराज से राम कथा का अध्ययन किया. अनिरुद्धाचार्य महाराज शादीशुदा हैं और उनके दो बच्चे भी हैं.
आदियोगी भगवान भोलेनाथ को पहला गुरु माना जाता है
भारतीय परंपरा में आदियोगी भगवान भोलेनाथ को पहला गुरु माना जाता है. उन्होंने सप्त ऋषियों को ज्ञान प्रदान किया था. महर्षि वेद व्यास से लेकर महर्षि कण्व, भारद्वाज, अत्रि और आधुनिक काल में आदिगुरु शंकराचार्य, वल्लभाचार्य, गोविंदाचार्य, कबीर, साईं बाबा, गजानन महाराज, तुकाराम, ज्ञानेश्वर, ओशो, गुरु नानक, गुरु गोविंद सिंह तक की परंपरा में कई महान गुरु हुए. सभी का शिक्षा-दीक्षा का अलग-अलग तरीका था. किसी ने आध्यात्मिक ज्ञान पर फोकस किया तो किसी ने सामाजिक सुधारों पर और कुछ गुरुओं ने भक्ति पर. हालांकि, सभी गुरुओं ने ज्ञान के माध्यम से मार्गदर्शन कर शिष्य को आध्यात्मिक और सांसारिक लक्ष्य प्राप्त करने में मदद की.
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