
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप.
डोनाल्ड ट्रंप जब से ही अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, उन्होंने कई अतरंगी फैसले लिए जिनका असर ग्लोबल इकोनॉमी पर देखने को मिला. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या ट्रंप वाकई में ग्लोबल इकोनॉमी को बिगाड़ने के मूड में हैं? क्योंकि, पहले उन्होंने रेसिप्रोकल टैरिफ दुनिया के बाकी देशों पर लगाया फिर बाद में उस टैरिफ पर पॉज लगाकर फिर से डेट को 1 अगस्त तक बढ़ा दी. ट्रंप ने जिस तरीके से निर्णय लिया है उस हिसाब से यह साफ समझा जा सकता है कि उनकी बातचीत का तरीका बिल्कुल समझौते वाला नहीं है. वह दुनिया के देशों पर दबाव बनाते हैं. आइए आपको ट्रंप के उन फैसलों के बारे में बताते हैं, जिन्हें उन्होंने सत्ता में आने के बाद लिया है.
एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप के लिए डील का मतलब दोनों साइड्स का समझौता नहीं है. बल्कि दूसरों को अपनी बात मनवाना है. हां, कभी-कभी वो अपनी धमकियों से पीछे हटते हैं, लेकिन ये हफ्ता दिखाता है कि ये उनका परमानेंट अंदाज है. ट्रंप इंडिपेंडेंट इंस्टीट्यूशंस पर अपनी ग्रिप टाइट कर रहे हैं, जिससे उनकी पावर पर चेक कम हो रहे हैं. कांग्रेस में रिपब्लिकन्स उनके सपोर्ट से प्राइमरी चैलेंजेस से डरते हैं, और सुप्रीम कोर्ट में उनकी अपॉइंटेड जज हैं.
ट्रंप ने हाल में ट्रेड टॉक्स के बारे में कहा कि वो डील सेट नहीं करते, मैं सेट करता हूं. उनके सपोर्टर्स मानते हैं कि डेमोक्रेट्स, कोर्ट्स और मीडिया के अटैक्स के बीच उनकी ये अग्रेसिवनेस जरूरी है. उनके हिसाब से ट्रम्प वही कर रहे हैं, जिसके लिए उन्हें चुना गया. लेकिन क्रिटिक्स कहते हैं कि उनका ये ऑथोरिटेरियन स्टाइल देश की डेमोक्रेटिक फाउंडेशन को कमजोर कर रहा है. वो कहते हैं कि ट्रंप का डील्स पर फोकस सिर्फ विरोधियों को दबाने और पावर बढ़ाने का बहाना है.
हायर एजुकेशन पर कंट्रोल की कोशिश
ट्रंप ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को टारगेट किया. अप्रैल में उन्होंने हार्वर्ड की गवर्नेंस और फैकल्टी में चेंजेस की डिमांड की. जब हार्वर्ड ने रेसिस्ट किया, तो ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन ने 2.2 बिलियन डॉलर की फेडरल ग्रांट्स काट दीं, जो हार्वर्ड के कैंसर, पार्किंसन, स्पेस ट्रैवल और पैनडेमिक रिसर्च के लिए लाइफब्लड थीं. ट्रंप ने हार्वर्ड में 7,000 फॉरेन स्टूडेंट्स को रोकने की कोशिश की और टैक्स-एग्जेम्प्ट स्टेटस छीनने की धमकी दी. हाल में उनके एडमिनिस्ट्रेशन ने स्टूडेंट डेटा के लिए सबपोना भेजा.
पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी से 175 मिलियन डॉलर की फंडिंग छीनी गई, लेकिन ट्रांसजेंडर स्विमर लिया थॉमस के रिकॉर्ड्स अपडेट करने और पॉलिसी चेंज करने पर फंडिंग वापस मिली. कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने भी 400 मिलियन डॉलर की कटौती के बाद अपने मिडिल ईस्ट स्टडीज डिपार्टमेंट में चेंजेस किए. वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट जेम्स रायन ने डाइवर्सिटी जांच के बाद रिजाइन कर दिया. गुरुवार को जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी में भी ऐसी जांच शुरू हुई.
फेडरल रिजर्व की इंडिपेंडेंस पर अटैक
ट्रंप ने फेड चेयर जेरोम पॉवेल को इंटरेस्ट रेट्स न काटने के लिए ब्लेम किया. लोअर रेट्स से मॉर्गेज और ऑटो लोन सस्ते हो सकते हैं और ट्रंप के टैक्स कट्स से बढ़े डेट को मैनेज करने में हेल्प मिल सकती है. लेकिन पॉवेल ने रेट्स नहीं काटे, क्योंकि ट्रम्प के टैरिफ से इन्फ्लेशन बढ़ सकता है. ट्रंप ने पॉवेल को फायर करने की बात नहीं की, लेकिन रिजाइन करने को कहा. उनके अलायज फेड के हेडक्वार्टर्स के कॉस्टली रेनोवेशन की भी स्क्रूटनी कर रहे हैं. एक्सपर्ट डेविड वेसल कहते हैं कि इससे फेड की क्रेडिबिलिटी को नुकसान हो सकता है.
ट्रेड डील्स की जगह टैरिफ की धमकी
ट्रंप अप्रैल में बड़े टैरिफ्स लगाना चाहते थे, ताकि अमेरिका का इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट बैलेंस ठीक हो. मार्केट्स में बैकलैश के बाद उन्होंने 90 दिन की नेगोशिएशन पीरियड दी. उनके एडवाइजर पीटर नवारो ने 90 डील्स इन 90 डेज का टारगेट रखा. यूके और वियतनाम के साथ कुछ ट्रेड फ्रेमवर्क्स बने, लेकिन ट्रम्प का पेशेंस खत्म हो गया. उन्होंने 24 देशों और यूरोपीय यूनियन को टैरिफ रेट्स (जैसे यूरोप और मैक्सिको पर 30%) की लेटर्स भेज दीं, जिससे उनके अपने नेगोशिएटर्स का काम कमजोर हुआ.
ट्रंप ने टैरिफ्स की धमकी का यूज पॉलिटिकल अलायज को हेल्प करने और दूसरे देशों की कोर्ट्स को इन्फ्लुएंस करने के लिए भी किया. उन्होंने ब्राजील को 50% टैरिफ की धमकी दी, अगर उसने पूर्व प्रेसिडेंट जेयर बोल्सोनारो के खिलाफ केस ड्रॉप नहीं किया. एक्सपर्ट इनु मानक कहती हैं कि ट्रंप का ये इनकंसिस्टेंट अप्रोच अमेरिका के मोटिव्स पर ट्रस्ट कम करेगा, खासकर कनाडा और साउथ कोरिया जैसे अलायज के साथ, जिनके साथ पहले से ट्रेड डील्स हैं.
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