• Thu. Mar 20th, 2025

Welcome Sunita Williams: नौ महीने में कितनी बदल गईं सुनीता विलियम्स, पहले और अब में क्यों इतना फर्क?

ByCreator

Mar 18, 2025    150816 views     Online Now 472
Welcome Sunita Williams: नौ महीने में कितनी बदल गईं सुनीता विलियम्स, पहले और अब में क्यों इतना फर्क?

पहले और अब में क्यों दिखता है फर्क

नौ महीने अंतरिक्ष में बिताने के बाद नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और उनके साथी बुच विलमोर आखिरकार धरती पर लौट आए हैं. इस लंबे मिशन के दौरान उनके शरीर में कई बदलाव आए हैं, जो किसी भी अंतरिक्ष यात्री के लिए सामान्य हैं. जब कोई अंतरिक्ष में लंबा समय बिताता है, तो वहां की जीरो ग्रैविटी या माइक्रोग्रैविटी और बंद माहौल के कारण शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है.

यह बदलाव हड्डियों, मांसपेशियों, दिल, दिमाग और यहां तक कि मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करते हैं. अब जब वे धरती पर आ चुकी हैं, तो उन्हें महीनों की पुनर्वास यानी रिहेबिलेशन प्रक्रिया से गुजरना होगा ताकि उनका शरीर दोबारा से बिल्कुल नॉर्मल हो सके.

मांसपेशियों और हड्डियों पर असर

अंतरिक्ष में नौ महीने बिताने के बाद शरीर की हड्डियां और मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं. ग्रैविटी की अनुपस्थिति में हड्डियों का घनत्व हर महीने लगभग 1% तक कम हो जाता है, जिससे हड्डियों के टूटने का खतरा बढ़ जाता है. इसी तरह, मांसपेशियां, खासतौर पर पैरों और पीठ की, कमजोर हो जाती हैं क्योंकि वहां शरीर का वजन महसूस ही नहीं होता.

हालांकि, इस असर को कम करने के लिए अंतरिक्ष यात्री हर दिन करीब 2.5 घंटे की कड़ी एक्सरसाइज करते हैं, जिसमें वजन उठाने की एक्सरसाइज, स्क्वैट्स, डेडलिफ्ट्स और ट्रेडमिल पर दौड़ने जैसी गतिविधियां शामिल हैं. इसके बावजूद, लौटने के बाद उन्हें फिर से सामान्य रूप से चलने और दौड़ने में समय लग सकता है.

Sunita Williams (4)

स्पेस से लौटते वक्त की तस्वीर.

कैसे आंखो की रौशनी होती है प्रभावित?

अंतरिक्ष में जाने वाले सभी यात्रियों का चेहरा थोड़ा फूला हुआ दिखता है. इसका कारण यह है कि वहां पर गुरुत्वाकर्षण नहीं होने की वजह से शरीर के तरल पदार्थ नीचे की ओर नहीं जाते, बल्कि सिर की ओर चले जाते हैं. इसका असर यह होता है कि चेहरा फूला हुआ लगता है और कुछ अंतरिक्ष यात्रियों को दृष्टि संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं. कई बार, यह दबाव आंखों की आकृति को प्रभावित करता है और लौटने के बाद उनकी दृष्टि धुंधली हो सकती है.

See also  पं.धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट का मामला: फेसबुक, यूट्यूब, X को नोटिस, हाई कोर्ट ने किया तलब 

ब्लड फ्लो पर भी पड़ता है प्रभाव

अंतरिक्ष में ग्रैविटी न होने के कारण दिल को उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती जितनी धरती पर करनी पड़ती है. नतीजतन, यह हल्का सिकुड़ जाता है और इसकी पंपिंग क्षमता भी थोड़ी कम हो जाती है. इससे रक्त संचार प्रणाली पर असर पड़ता है और अंतरिक्ष यात्रियों को वापसी के बाद कमजोरी और चक्कर आने जैसी समस्याएं हो सकती हैं. वैज्ञानिक इस समस्या को हल करने के लिए एआई गुरुत्वाकर्षण तकनीकों पर रिसर्च कर रहे हैं, ताकि शरीर को अंतरिक्ष में भी धरती जैसा माहौल मिल सके.

बढ़ जाता है मानसिक तनाव

लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने से न केवल शरीर बल्कि मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ता है. बंद माहौल, पृथ्वी से हजारों किलोमीटर दूर होने का अहसास, और रियल-टाइम कम्युनिकेशन की कमी मानसिक तनाव बढ़ा सकती है. हाल के रिसर्चों से पता चला है कि अंतरिक्ष यात्रियों के दिमाग की संरचना भी बदल सकती है.

दिमाग में मौजूद वेन्ट्रिकल्स (तरल से भरी हुई कैविटीज) का आकार बढ़ सकता है, और इन्हें सामान्य होने में तीन साल तक लग सकते हैं. इसके अलावा, ग्रैविटी की कमी के कारण शरीर के संतुलन और समन्वय की क्षमता भी प्रभावित होती है, जिससे लौटने के बाद कुछ समय तक संतुलन बनाए रखना कठिन हो सकता है.

Sunita Williams (3)

स्पेस जाने से पहले की तस्वीर.

बढ़ जाता है कैंसर होने का खतरा

अंतरिक्ष में पृथ्वी की तुलना में कई गुना अधिक कॉस्मिक रेडिएशन का सामना करना पड़ता है. पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र इस विकिरण से हमारी रक्षा करता है, लेकिन अंतरिक्ष में इसकी अनुपस्थिति में डीएनए को नुकसान होने और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. हालांकि, वैज्ञानिक इस खतरे को कम करने के लिए नए सुरक्षा उपायों, शील्डिंग टेक्नोलॉजी और दवाओं पर रिसर्च कर रहे हैं, जो डीएनए को इस रेडिएशंस से बचा सकें.

See also  भड़की हिंसा...हुआ लाठीचार्ज, मंदिर के बाहर लगे पोस्टर पर विवाद

इम्यून सिस्टम में बदलाव

लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने से शरीर की रोग इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाती है. अध्ययनों के मुताबिक, माइक्रोग्रैविटी में शरीर के सफेद रक्त कोशिकाएं यानी White Blood Cells कमज़ोर हो जाती हैं, जिससे इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है.

इसके अलावा, शरीर का मेटाबॉलिज्म भी प्रभावित होता है, जिससे कुछ अंतरिक्ष यात्रियों का वजन अचानक कम हो सकता है या उनकी भूख कम हो सकती है. यह लंबी अवधि के मिशनों के लिए एक चुनौती है, क्योंकि पोषण बनाए रखना वहां बेहद जरूरी होता है.

अब और लंबी यात्रा की तैयारी

सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर के अनुभवों से वैज्ञानिकों को भविष्य की मंगल और उससे आगे की यात्राओं की योजना बनाने में मदद मिलेगी. अगर मनुष्य को मंगल ग्रह तक भेजना है, तो यह समझना जरूरी है कि अंतरिक्ष में इतने लंबे समय तक रहने से शरीर पर क्या असर पड़ता है और इससे निपटने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं.

[ Achchhikhar.in Join Whatsapp Channal –
https://www.whatsapp.com/channel/0029VaB80fC8Pgs8CkpRmN3X

Join Telegram – https://t.me/smartrservices
Join Algo Trading – https://smart-algo.in/login
Join Stock Market Trading – https://onstock.in/login
Join Social marketing campaigns – https://www.startmarket.in/login

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x
NEWS VIRAL