प्रधानमंत्री मोदी ने मसूद पेजेश्कियान को ईरान के राष्ट्रपति चुने जाने पर बधाई दी
ईरान में 19 मई को हुई एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत के बाद देश में राष्ट्रपति चुनाव में मसूद पेजेश्कियान ने सईद जलीली को बड़े अंतर से हरा दिया है. इसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि नए राष्ट्रपति के पद ग्रहण के बाद ईरान के साथ संबंध कैसे रहेंगे. भारत और ईरान के संबंध अच्छे ही रहे हैं और राष्ट्रपति रईसी के शासनकाल में ईरान के साथ भारत की दोस्ती और भी गहरी हुई थी. यानी एक तरह से ईरान के सुप्रीम लीडर का समर्थन भी भारत-ईरान की दोस्ती को मिला हुआ है.
भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक रूप से ही मजबूत आर्थिक संबंध नहीं रहे हैं, बल्कि प्राचीन काल में भी दोनों के बीच सांस्कृतिक संबंध रहे हैं.
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प्राचीन काल से भारत-फारस में संबंध
भारत और फारस (ईरान) ही प्राचीन कालीन सभ्यताएं हैं और दोनों के बीच सदियों पुराने संबंध रहे हैं. भारत में सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरें फारस घाटी की सभ्यता में भी पाई गई हैं. फिर भारतीय और ईरानी आर्यों के धार्मिक और सांस्कृतिक सभ्यता में काफी समानता रही है. आधुनिक काल की बात करें तो भारत की आजादी के बाद 15 मार्च 1950 को ईरान के साथ भारत के राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे और तब से चले आ रहे हैं. हालांकि, इस्लामिक क्रांति के वक्त दोनों देशों के बीच संबंध थोड़े कटु हुए थे पर बाद में फिर सुधार होते चले गए.
भारत को सकारात्मक प्रभाव वाला देश मानते हैं ईरानी
साल 2005 में बीबीसी की ओर से कराई गए वर्ल्ड सर्विस पोल के मुताबिक ईरान के 71 फीसदी लोगों ने भारत के अपने देश पर प्रभाव को सकारात्मक रूप से देखा था. फिर भारत को कच्चे तेल की सप्लाई करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश ईरान ही रहा है. वह भारत को रोज 4.25 लाख बैरल से अधिक तेल की सप्लाई करता रहा है. हालांकि, 2011 में ईरान पर जब पश्चिमी देशों ने बैन लगाया तो भारत-ईरान के बीच सालाना 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का तेल व्यापार रुक गया था. इसके बावजूद भारत और ईरान के बीच मजबूत आर्थिक संबंध हैं.
अमेरिकी प्रतिबंध में ढील मिली तो बढ़ेगा तेल का व्यापार
अमेरिकी प्रतिबंध के कारण ईरान से भारत को तेल की सप्लाई प्रभावित हुई है. इसके बावजूद दूसरे क्षेत्रों में ये दोनों देश पहले की तरह आर्थिक सहयोग जारी रखे हैं. ईरान के नए राष्ट्रपति पेजेश्कियान अगर अमेरिका के साथ 2015 के परमाणु समझौता को फिर से कायम कर लेते हैं तो एक बार फिर से व्यापार प्रतिबंधों में राहत मिल जाएगी. ऐसे हालात में भारत के साथ ईरान का तेल व्यापार एक बार फिर से तेजी पकड़ लेगा.
चाबहार बंदरगाह निभाएगा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका
इसके अलावा ईरान में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चाबहार पोर्ट के विकास में भारत सहयोग कर रहे है. भारत के लिए भी यह बंदरगाह काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए इससे भारत को सीधा समुद्री मार्ग मिल जाएगा. ऐसे में भारत के जहाजों को पाकिस्तान के समुद्री रास्ते से आगे नहीं जाना होगा. इसलिए भारत ने पूरे 10 साल के लिए इस बंदरगाह का प्रबंधन अपने हाथों में लिया है.
भारत के लिए यह पहला मौका है, जब विदेश में किसी बंदरगाह का मैनेजमेंट संभाला है. भारत 10 साल बाद इस प्रोजेक्ट को ईरान के हवाले कर देगा और यह अपने दम पर आगे बढ़ता रहेगा. वैसे भी चाबहार ऐसा प्रोजेक्ट में भारत ने भारी निवेश किया है. इसके अलावा इस बंदरगाह के शाहिद-बेहेश्ती टर्मिनल के विकास के लिए भारत में 12 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है. साथ ही साथ ईरान में आधारभूत ढांचे के विकास के लिए भारत ने 25 करोड़ अमेरिकी डॉलर के कर्ज की सुविधा भी मुहैया कराई है. इसलिए पूरी उम्मीद है कि मसूद पेजेशकियान के राष्ट्रपति बनने के बाद मुख्य रूप से चाबहार बंदरगाह पर ध्यान दिया जाएगा.
पीएम मोदी ने दी बधाई
Congratulations @drpezeshkian on your election as the President of the Islamic Republic of Iran. Looking forward to working closely with you to further strengthen our warm and long-standing bilateral relationship for the benefit of our peoples and the region.
— Narendra Modi (@narendramodi) July 6, 2024
पहले से साफ है ईरान का रुख
वैसे भी भारत में ईरान के राजदूत इराज इलाही ने अपने देश के चुनावों के नतीजे आने से पहले ही भारत को लेकर ईरान के रुख का खुलासा कर दिया था. उन्होंने कहा था कि भारत के साथ ईरान की विदेश नीति में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं होगा. भले ही सत्ता में कोई भी आए. फिर ईरान के नए राष्ट्रपति भी उदारवादी और सुधारों के समर्थक माने जाते हैं. भले ही इब्राहिम रईसी की मौत से पहले ईरान और भारत के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर समझौता हुआ था, पर चुनाव नतीजे आने के बाद ईरान के राजदूत इराज इलाही ने एक बार फिर दोनों देशों के संबंधों को पहले जैसा रखने पर मुहर लगाई है.
उन्होंने कहा कि हमें (ईरान को) नया राष्ट्रपति मिल गया है. इसके बावजूद ईरान की विदेश और आंतरिक नीति में कोई बदलाव नहीं आएगा. इस तरह से हम देखते हैं कि दोनों ही बार की चर्चाओं में ईरान की आंतरिक और बाहरी शक्ति को मजबूत करने पर जोर दिया गया है. इसमें भारत की भागीदारी काफी अहम होगी. इस तरह दोनों देशों के रिश्तों पर नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा.
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