रायपुर. हमारे धार्मिक रीति-रिवाजों में नारियल(Coconut) भेंट करना एक प्रमुख परंपरा है आखिर ऐसा क्यों होता है क्यों हम शिष्टाचार में अन्य फलों को छोड़कर नारियल ही भेंट करते हैं. चाहे पूजा हो या नए घर का गृह प्रवेश, नई गाड़ी या नया बिजऩेस किसी भी कार्य का शुभारंभ नारियल फोड़कर किया जाता है. नारियल को भारतीय सभ्यता में शुभ और मंगलकारी माना गया है. इसलिए पूजा-पाठ और मंगल कार्यों में इसका उपयोग किया जाता है. हिंदू परंपरा में नारियल सौभाग्य और समृद्धि की निशानी होती है. नारियल को हर शुभ काम में उपयोग क्यों किया जाता है नारियल का महत्व हमारे पुराणों में प्रथाओं में परंपराओं में देखने को मिलता है.
ऋषि विश्वामित्र को नारियल का निर्माता माना जाता
ऋषि विश्वामित्र को नारियल (Coconut) का निर्माता माना जाता है. इसकी ऊपरी सख्त सतह इस बात को दर्शाती है कि किसी भी काम में सफलता हासिल करने के लिए आपको मेहनत करनी होती है. नारियल एक सख्त सतह और फिर एक नर्म सतह होता है और फिर इसके अंदर पानी होता है जो बहुत पवित्र माना जाता है. इस पानी में किसी भी तरह की कोई मिलावट नहीं होती है.
नारियल भेंट देने का रहस्य
धार्मिक और सांस्कृतिक शिष्टाचार में अन्य फलों को छोड़कर नारियल ही क्यों भेंट किया जाता है? यह प्रश्र आपके मन में भी कभी ना कभी आया होगा. देवी-देवताओं, विशिष्ट व्यक्तियों तथा मान्य अतिथियों को मांगलिक एवं शुभ अवसरों पर नारियल भेंट करने की प्रथा प्राचीन काल से ही प्रचलित है. इसका प्रचलन किसी विशेष अभिप्राय से ही हुआ होगा, इस अभिप्राय को नारियल के स्वरूप और गुणों में खोजा जा सकता है.
नारियल अन्य सभी फलों से अलग हटकर है. अधिकांश फल रंग-बिरंगे और देखने में सुंदर होते हैं. प्राय: उनका छिलका कोमल होता है लेकिन नारियल का छिलका अत्यधिक कठोर होता है, मनुष्य का व्यक्तित्व भी नारियल के ही समान है. सांसारिक कठिनाइयों और परेशानियों के कारण वह ऊपर से कठोर और कर्कश होता है फिर भी वह भीतर से बहुत कुछ कोमल एवं मधुर बना रहता है, लेकिन जो लोग मीठी-मीठी बातें करने वाले होते हैं, वे भीतर से कठोर, छली होते हैं बेर के फल की तरह. नारियल भेंट देने का यही रहस्य है कि ऊपर से भले ही कठोर बने रहो लेकिन भीतर से सदैव नारियल के मर्म की तरह मृदुल और मधुर बने रहना.
नारियल के भीतर जो गरी का गोला होता है वह जीवन के मधुर मर्म का प्रतीक होता है, जिसका अर्पण हमें अभीष्ट होता है. इसलिए कभी खोखला नारियल भेंट नहीं किया जाता, सगे-संबंधियों को प्राय: यह गरी का गोला ही भेंट किया जाता है. ये संबंध इतने मधुर होते हैं कि इनके साथ हम अपने कर्कश आवरण को उतारकर रख देते हैं, मानो हम अपने अंत:करण के मृदुल मर्म को ही भेंट करते हैं.
नारियल का मर्म भाग (गरी) मृदुल और मधुर होने के साथ-साथ सफेद भी होता है. जो सतोगुण का प्रतीक है. सात्विकता से ही सरलता आती है. अंत:करण की मृदुता और मधुरता का संरक्षण भी सात्विकता के द्वारा ही किया जा सकता है. भेंट का नारियल अंत:करण की सात्विकता का आदर्श भी प्रस्तुत करता है. इस प्रकार जीवन के अनेक मांगलिक भावों का सूचक होने के नाते नारियल भेंट किया जाता है.
नारियल को संस्कृत में ‘श्रीफल’ कहा जाता है और श्री का अर्थ लक्ष्मी है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लक्ष्मी के बिना कोई भी शुभ काम पूर्ण नहीं होता है. इसीलिए शुभ कार्यों में नारियल का इस्तेमाल अवश्य होता है. नारियल के पेड़ को संस्कृत में ‘कल्पवृक्ष भी कहा जाता है. ‘कल्पवृक्ष’ सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है.