बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया यूनुस ने चीन को अपने यहां निवेश का जो ऑफर दिया है, उसमें भारत के खिलाफ एक बड़ी साजिश की आशंका भी छिपी नजर आती है. यूनुस ने अपने बयान में नॉर्थ ईस्ट राज्यों का भी जिक्र किया, जिसके पीछे बांग्लादेश की मंशा चीन के साथ मिलकर उस चिकन नेक पर नियंत्रण की हो सकती है, जो पूर्वोत्तर भारत को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने का एकमात्र रास्ता है.
बांग्लादेश और चीन बाजार पर कब्जे के जरिए इस दिशा में कोई साज़िश रच सकते हैं, ऐसी आशंका भी उठ रही है, लेकिन ऐसी कोई छोटी सी भी हरकत बांग्लादेश और चीन को धूल चटा सकती है क्योंकि जिस “चिकन नेक” को ये दोनों देश भारत का वीक पॉइंट समझ रहे हैं, असल में वो भारत का सबसे मजबूत सुरक्षा गलियारा है इसलिए उस रास्ते से आज तक किसी भी दुश्मन की कोई साज़िश कामयाब नहीं हो सकी है.
सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर सेना प्रमुख का हालिया बयान चीन और मोहम्मद यूनुस की हर चाल की हवा निकालने के लिए काफी है. भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर यानी “चिकन नेक” अक्सर सुरक्षा चिंताओं के केंद्र में रहता है. हाल ही में एक बयान में, भारतीय सेना प्रमुख ने इस क्षेत्र को लेकर स्पष्ट किया था कि यह भारत की कमजोर नहीं बल्कि सबसे मजबूत कड़ी है. उन्होंने कहा था, ‘जहां तक चिकन नेक का सवाल है, मैं इसे एक अलग दृष्टिकोण से देखता हूं. यह हमारा सबसे मजबूत क्षेत्र है क्योंकि पश्चिम बंगाल, सिक्किम और पूर्वोत्तर में तैनात हमारी पूरी फोर्स वहां एक साथ संगठित हो सकती हैं.’
ड्रैगन की हर चाल और बांग्लादेश के बदलते सुर को समझते हुए भारत न केवल इन खतरों के प्रति सतर्क है, बल्कि अपनी रणनीतिक स्थिति को भी लगातार मजबूत बना रहा है. भारतीय सेना ने इस क्षेत्र में अपने सुरक्षा उपायों को बढ़ाते हुए कई नई तैयारियां की हैं.
चिकन नेक की सुरक्षा में तैनात त्रिशक्ति कोर
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाला सिलीगुड़ी कॉरिडोर, यानी “चिकन नेक” की सुरक्षा का जिम्मा भारतीय सेना की त्रिशक्ति कोर (33 कोर) पर है, जिसका मुख्यालय सिलीगुड़ी के पास सुकना में स्थित है.
यह कॉरिडोर लगभग 22 किलोमीटर चौड़ा एक संकरा भूभाग है, जो उत्तर-पूर्व भारत को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है. यह पश्चिम बंगाल में स्थित है और इसके उत्तर में नेपाल, दक्षिण में बांग्लादेश और निकटवर्ती क्षेत्रों में चीन और भूटान की सीमाएं हैं. इस क्षेत्र की सुरक्षा भारत के लिए बेहद अहम है क्योंकि यहां किसी भी प्रकार की लापरवाही भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को शेष भारत से काट सकती है. और कुछ इसी तरह की गड़बड़ी का सपना बांग्लादेश और चीन देख रहे हैं.
त्रिशक्ति कोर की भूमिका
भारतीय सेना की त्रिशक्ति कोर इस महत्वपूर्ण क्षेत्र की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी निभा रही है. हाल ही में इस कोर ने T-90 टैंकों के साथ लाइव फायरिंग अभ्यास किया, जिससे ऊंचाई वाले इलाकों में युद्ध कौशल को मजबूत किया जा सके.
भारतीय वायुसेना ने भी इस क्षेत्र में हाशिमारा एयरबेस पर 18 फ्रांसीसी राफेल लड़ाकू विमानों का स्क्वाड्रन तैनात किया है. साथ ही मिग विमानों के सभी वेरियंट्स इस क्षेत्र में तैनात हैं. वहीं, भारतीय सेना ने ब्रह्मोस मिसाइल रेजिमेंट की तैनाती कर इस क्षेत्र की सुरक्षा को और मजबूत किया है.
भारत की सख्त रणनीति
सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारतीय सेना और वायुसेना ने अपने सैन्य ढांचे को और अधिक मजबूत कर लिया है. चीन और बांग्लादेश की गतिविधियों को देखते हुए, भारत इस क्षेत्र में हर संभव सुरक्षा उपाय कर रहा है ताकि किसी भी प्रकार की संभावित चुनौती का मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके.
यूनुस का यह बयान स्पष्ट रूप से भारत के रणनीतिक हितों को चुनौती देता है. चीन पहले से ही बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से बांग्लादेश में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है. ऐसे में यूनुस की चीन यात्रा को भारत के खिलाफ एक कूटनीतिक चाल के रूप में देखा जा सकता है.
कुछ समय पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS), जनरल अनिल चौहान ने उत्तर बंगाल के अग्रिम क्षेत्रों का दौरा किया था ताकि ‘चिकन नेक’ क्षेत्र में सशस्त्र बलों की ऑपरेशनल तैयारियों की समीक्षा की जा सके. जनरल चौहान ने पश्चिम बंगाल के हासीमारा एयरबेस का दौरा किया, जहां भारतीय वायुसेना (IAF) ने अपने सबसे नए लड़ाकू विमान डसॉल्ट राफेल तैनात किए हैं. उन्होंने सुकना में स्थित 33 ‘त्रिशक्ति’ कोर मुख्यालय का भी दौरा किया.
इससे पहले, 2017 में, भारत और चीन की सेनाएं भारत-चीन-भूटान सीमा के त्रिकोणीय क्षेत्र में दो महीने लंबे गतिरोध में उलझी थीं. इस दौरान, चीन ने भूटानी क्षेत्र डोकलाम में एक सड़क निर्माण करने की कोशिश की थी. भारतीय सेना ने भूटानी क्षेत्र में प्रवेश कर चीन को सड़क निर्माण रोकने के लिए मजबूर किया. यदि चीन डोकलाम पठार में सड़क का निर्माण सफलतापूर्वक कर लेता, तो वह जामफेरी रिज के करीब पहुंच सकता था, जिससे सिक्किम के सिलीगुड़ी कॉरिडोर को खतरा उत्पन्न हो जाता. स्थिति की गंभीरता और बदलते रणनीतिक हालात को देखते हुए, भारत सरकार ने ‘चिकन नेक’ क्षेत्र में चीनी आक्रामकता को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं.
ब्रह्मोस मिसाइल
ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक लैंड-अटैक क्रूज़ मिसाइल है, जिसे भारत रूस के साथ मिलकर बनाता है. यह मिसाइल 2.9 मैक की गति से 290 किलोमीटर से अधिक दूरी तक लक्ष्य को नष्ट करने में सक्षम है. भारत ने ब्रह्मोस का एयर-लॉन्च संस्करण ‘ब्रह्मोस-ए’ भी विकसित किया है, जिसकी मारक क्षमता 400 किलोमीटर से अधिक है और इसे भारतीय वायुसेना के सुखोई Su-30MKI लड़ाकू विमानों द्वारा ले जाया जाता है. भारतीय सेना ने ‘चिकन नेक’ क्षेत्र में एक ब्रह्मोस मिसाइल रेजिमेंट तैनात की है ताकि चीन को किसी भी सैन्य दुस्साहस से रोका जा सके.
डसॉल्ट राफेल फाइटर जेट
भारतीय वायुसेना ने आक्रामक क्षमताओं को और मजबूत करने के लिए पश्चिम बंगाल के हासीमारा एयरबेस पर 18 फ्रांसीसी राफेल लड़ाकू विमानों का एक स्क्वाड्रन तैनात किया है. डसॉल्ट राफेल एक बहु-भूमिका लड़ाकू विमान है, जो वायु रक्षा, हवाई अवरोधन और हमले की भूमिका निभा सकता है. भारत ने 2016 में फ्रांस से $9 बिलियन की लागत से 36 राफेल जेट खरीदे थे. ब्रह्मोस लैंड-अटैक क्रूज़ मिसाइलों के साथ राफेल वायुसेना के लिए एक मजबूत आक्रामक शक्ति प्रदान करता है.
S-400 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली
S-400 SAM एक सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है, जो 400 किलोमीटर से अधिक की दूरी पर दुश्मन के लड़ाकू विमानों, क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों को नष्ट कर सकती है. भारत ने रूस से $5 बिलियन की लागत से इस प्रणाली की पांच रेजिमेंट खरीदी हैं, जिनमें से रूस ने तीन रेजिमेंट भारत को डिलीवर कर दी हैं. पहली रेजिमेंट को पंजाब क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन की पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था. दूसरी रेजिमेंट को सिलीगुड़ी कॉरिडोर में ‘चिकन नेक’ क्षेत्र में तैनात किया गया है, जिससे भारतीय वायु क्षेत्र में चीनी लड़ाकू विमानों की पहुंच रोकी जा सके.
मीडियम रेंज सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली
SAM एक वायु रक्षा प्रणाली है, जिसे भारत के DRDO ने इज़राइल के साथ मिलकर विकसित किया है. यह प्रणाली 70 किलोमीटर से अधिक की दूरी पर हवाई लक्ष्यों को नष्ट कर सकती है. इसे भारतीय सेना में MRSAM के रूप में जाना जाता है और इसे फरवरी की शुरुआत में 33 कोर के ऑपरेशनल क्षेत्र में शामिल किया गया था.
आकाश वायु रक्षा प्रणाली
एक और वायु रक्षा प्रणाली ‘आकाश’ भी इस क्षेत्र में तैनात की गई है. आकाश वायु रक्षा प्रणाली, MRSAM और S-400 सिस्टम के साथ मिलकर भारतीय पूर्वी वायु क्षेत्र को किसी भी चीनी घुसपैठ से सुरक्षित बनाती है. आकाश प्रणाली को DRDO द्वारा विकसित किया गया है और इसका निर्माण भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) द्वारा किया जाता है. हाल ही में, भारतीय रक्षा मंत्रालय ने चीन सीमा की सुरक्षा के लिए एडवांस आकाश वायु रक्षा प्रणाली की दो अतिरिक्त रेजिमेंट खरीदने के लिए ₹8,160 करोड़ का सौदा किया है. एडवांस आकाश प्रणाली में नई सीकर तकनीक, कम जगह घेरने वाला डिज़ाइन और 360-डिग्री एंगेजमेंट क्षमता शामिल है. इसका स्वदेशीकरण स्तर वर्तमान में 82% है, जिसे 2026-27 तक 93% तक बढ़ाया जाएगा.
इन आक्रामक और रक्षात्मक हथियारों की तैनाती के अलावा, भारतीय सेना इस क्षेत्र में विभिन्न संयुक्त सैन्य और वायु हमले अभ्यास भी कर रही है. 29 मार्च को भारत चीन सीमा के पास भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश में एक मिसाइल परीक्षण भी किया.
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