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भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध : आज से शुरू हो रहा है श्राद्ध पक्ष, जानिए क्या है श्राद्ध की विधि …

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Sep 10, 2022    150848 views     Online Now 315

रायपुर. पितृ पक्ष 10 सितंबर 2022, सोमवार को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होंगे. पितृ पक्ष का समापन 25 सितंबर 2022, रविवार को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होगा.

भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं. जिस तिथि को देहांत होता है, उसी तिथी को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है.

पितृ दोष के अनेक कारण होते हैं, जिसमें परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध नहीं करने से, उनके निमित्त वार्षिक श्राद्ध आदि न करने से पितरों को दोष लगता है. इसके फलस्वरूप परिवार में अशांति, वंश-वृद्धि में रूकावट, आकस्मिक बीमारी, संकट, धन में बरकत न होना, सारी सुख सुविधाएँ होते भी मन असन्तुष्ट रहना आदि पितृ दोष हो सकते हैं.

यदि परिवार के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हुई हो तो पितृ दोष के निवारण के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार उसकी आत्म शांति के लिए किसी पवित्र तीर्थ स्थान पर श्राद्ध करवाएँ. प्रतिवर्ष पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण अवश्य करें.

प्रतिपदा श्राद्ध

भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध से श्राद्ध पक्ष शुरू होता है, प्रथम दिन के श्राद्ध को प्रतिपदा श्राद्ध कहा जाता हैं. प्रतिपदा श्राद्ध में जिस भी व्यक्ति की मृत्यु प्रतिपदा तिथि (शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष) के दिन होती हैं उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता है. इस दिन नाना पक्ष के सदस्यों का श्राद्ध भी किया जाता हैं अगर नाना पक्ष के कुल में कोई न हो और मृत्यु तिथि ज्ञात ना हो तो इस दिन उनका श्राद्ध करने का विवरण पुराणों में मिलता है.

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श्राद्ध विधि

सामग्री: कुशा, कुशा का आसन, काली तिल, गंगा जल, जनैउ, ताम्बे का बर्तन, जौ, सुपारी, कच्चा दूध.

सबसे पहले स्वयं को पवित्र करते हैं जिसके लिए खुद पर गंगा जल छिड़कते हैं उसके उपरांत कुशा को अनामिका (रिंग फिंगर) में बाँधते हैं. जनेऊ धारण करे, ताम्बे के पात्र में फूल, कच्चा दूध, जल ले अपना आसान पूर्व पश्चिम में रखे व कुशा का मुख पूर्व दिशा में रखे हाथों में चावल एवं सुपारी लेकर भगवान का मनन करे उनका आव्हान करें.

दक्षिण दिशा में मुख कर पितरो का आव्हान करें, इसके लिए हाथ में काली तिल रखे. अपने गोत्र का उच्चारण करें साथ ही जिसके लिए श्राद्ध विधि कर रहे हैं उनके गोत्र एवम नाम का उच्चारण करें और तीन बार तर्पण विधि पूरी करें अगर नाम ज्ञात न हो तो भगवान का नाम लेकर तर्पण विधि करें.

तर्पण के बाद धूप डालने के लिए कंडा ले, उसमें गुड़ एवम घी डाले. बनाए गए भोजन का एक भाग धूप में दे उसके अलावा एक भाग देवताओं, गाय, कुत्ते, कौए, पीपल के लिए निकाले. इस प्रकार भोजन की आहुति के साथ विधि पूरी की जाती ह. 20 सितम्बर को प्रतिपदा का श्राद्ध है.

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