
आचार्य प्रशांत
फिलोसोफर, क्लाइमेट एक्टिविस्ट और लेखक आचार्य प्रशांत ने देशभर में सामने आ रही प्राकृतिक आपदा को लेकर बात की. आचार्य को विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) के मौके पर भारत की ग्रीन सोसाइटी ने ‘सर्वाधिक प्रभावशाली पर्यावरणविद्’ पुरस्कार से सम्मानित किया. इसी के बाद उन्होंने पर्यावरण की समस्या और समाधान को लेकर बात की.
देश में जहां दिल्ली, उत्त प्रदेश जैसे राज्यों में भीषण गर्मी पड़ रही है. वहीं, दूसरी तरफ नॉर्थ ईस्ट बाढ़ का सामना कर रहा है . इसी बीच क्लाइमेट को लेकर बात करते हुए आचार्य प्रशांत ने कहा, अगर मैनमेड (MANMADE) आपदा है तो उसका समाधान भी मानवता के अंदर ही निकालना पड़ेगा. हम गड़बड़ यह कर देते हैं कि हम समाधान बाहर ढूंढने निकल जाते हैं. हम कहते हैं, हमें जंगल बचाना है, नदी बचानी है, हवा ठीक करनी है, पानी ठीक करना है. यह सब कुछ आपके सर के ऊपर चढ़ आया है और आप बाहर से ही चीजें ठीक करने की बात कर रहे हो.
उन्होंने आगे कहा, नॉर्थ ईस्ट में बाढ़ आई हुई है. इस साल के पहले के जो 4 महीने थे वो पिछले सौ-सवा सौ साल के सबसे गर्म महीनों में थे. सौ साल में कभी जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल इतने गर्म महीने नहीं हुए जितने इस साल थे. पहले 4 महीने सबसे गरम और पांचवां महीना मई का सबसे गीला. यह कहलाता है एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स और यह लगातार अब होते ही रहेंगे.
“अब बारिश नहीं होगी”
आचार्य ने कहा, अब मई में बारिश हो गई तो आपको क्या लगता है आगे बारिश वैसे ही होगी जैसी होनी चाहिए. ऐसा नहीं है, अब जब किसान को बारिश चाहिए तब बारिश नहीं होगी. हीटवेव मई में नहीं चली तो आपको क्या लगता है कि हीटवेव चलेगी. ऐसा नहीं है, हीटवेव अब ह्यूमिडिटी के साथ चलेगी और ह्यूमिडिटी के साथ पारा अगर 45 डिग्री हो तो 55 डिग्री लगता है.
पर्यावरण को लेकर क्या गलती कर रहे हैं?
आचार्य ने बताया कि हम पर्यावरण को लेकर क्या गलती कर रहे हैं. उन्होंने कहा, हम बहुत गलती कर रहे हैं. पहला तो हमें यह लग रहा है कि जो यह सब चल रहा है यह कोई हल्की-फुल्की आफत है. जबकि यह Mass Extinction है, यह कोई छोटी-मोटी चीज नहीं है. यह सिर दर्द नहीं है, यह कैंसर है. यह ऐसा नहीं है कि पृथ्वी की शान में, रौनक में थोड़ी सी कमी आ जाएगी, यह ऐसा नहीं है. बल्कि यह पृथ्वी के बर्बाद होने की बात है. यह समूची प्रजातियों के एक साथ विलुप्त होने की बात है. कोई कुछ नहीं बचेगा.
उन्होंने आगे कहा, यह बात हम अगले 500-600 सालों की नहीं कर रहे. इंसान जो कुछ भी करेगा वो पृथ्वी को गरम कर सकता है. आप गर्मी हासिल करने के लिए कुछ करोगे तो उससे भी कार्बन रिलीज होगा और अगर कूलिंग के लिए कुछ करोगे तो उससे भी कार्बन रिलीज ही होगा.
क्या है दूसरी बड़ी गलती?
दूसरी गलती हम यह करते हैं कि हमें लगता है कि यह बाहर की आफत है. जब तक इंसान नहीं बदलेगा तब तक हमारे बाहर जो तबाही है वो बदली नहीं जा सकती. लोग सोचते हैं हम एसी 22 डिग्री की जगह 25 पर चला लेंगे, नदी साफ कर देंगे, हवा साफ कर देंगे, तब आप कुछ नहीं रोक सकते बाहर जब तक आप अंदर से नहीं बदले हो, लेकिन अंदर की दिशा कोई देखना नहीं चाहता है.
क्या बताया समाधान?
आचार्य ने आगे कहा, पर्यावरण का वास्तविक समाधान तो अध्यात्मिक ही है. अध्यात्म सिर्फ पूजा-पाठ नहीं होता बल्कि यह होता है खुद को देखना, अपनी कमियों को देखना. सारा जो एनर्जी कंजपशन है वो हमारी कामनाएं पूरी करने के लिए होता है और उन कामनाओं से हमें कुछ मिलता नहीं लेकिन कार्बन बहुत सारा मिल जाता है. कामनाएं पूरी नहीं होती, लेकिन कार्बन बहुत सारा निकल जाता है. इंसान को सुधारना पड़ेगा.
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