फूलन देवी ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए गांव के 26 लोगों को एक जगह लाइन में खड़ा कर सभी को गोली मार दी थी. इस घटना में 26 में से 22 लोगों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था. बाकी के 6 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इस घटना ने देश विदेश के अखबारों में सुर्खियों के साथ प्रकाशित हुई थी.
इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश की सरकार पर बेहमई हत्याकांड के आरोपियों खासकर चंबल से डकैतों के सफाय का दबाव बनने लगा. 1980 के दशक में चंबल घाटी में डकैतों का आतंक अपने चरम था. उस समय चंबल के बीहड़ो में डकैत राम औतार, लल्लू गैंग, फूलन देवी गैंग, मुस्तकीम, पान सिंह तोमर की गैंग की दहशत थी. चंबल के डकैतों का आतंक, धौलपुर, मुरैना, भिंड, इटावा, ऊरई, कानपुर तक था.
चंबल के डकैत गिरोहों का सरदार था ‘बाबा मुस्तकीम’
डकैत फूलन देवी के अपमान का बदला बेहमई में सामूहिक हत्याकांड की घटना का अंजाम देने के बाद यूपी पुलिस चंबल के डकैतों को एक चुनौती के रुप में लेने लगी थी. फूलन देवी के अपमान का बदला लेने में भले ही मुस्तकीम की गैंग शामिल रही हो लेकिन मुस्तकीम खुद इस हत्याकांड के खिलाफ था. मुस्तकीम को बेहमई की घटना के बारे में किसी भी गैंग ने नहीं बताया था. बेहमई हत्याकांड के बाद मुस्तकीम ने अपनी नाराजगी फूलन देवी के सामने जाहिर की थी. उस दौर में चंबल का हर डकैत गैंग मुस्तकीम से सलाह लेने आते थे, और उसको सम्मान देते हुए बाबा मुस्तकीम के आदेशों का मानते थे.
बेहमई हत्याकांड के बाद डकैत मुस्तकीम पड़ गया अकेला
चंबल के डकैत गिरोह में कुछ डकैतों को छोड़कर अधिकतर डकैतों में आपसी तालमेल अच्छा था. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमावर्ती इलाकों यमुना, चंबल, कुआंरी, सिंध नदी के इलाकों खासकर जालौन, उरई, दतिया, कानपुर के ग्रामीण इलाकों में मुस्तकीम की अच्छी पकड़ थी. लेकिन बेहमई हत्या कांड से नाराज होकर मुस्तकीम ने अपनी राह दूसरे डकैत गिरोह से अलग कर ली. बेहमई कांड के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस डाकुओं को खत्म करने के मकसद से बीहड़ो में उतर चुकी थी.
इधर बीहड़ो में डकैत मलखान सिंह से मिलकर लौट रहे बाबा मुस्तकीम को पता चला की डकैत मलखान को बीहड़ों में पुलिस ने चारों तरफ से घेर रखा है. तो मुस्तकीम आनन-फानन में अपनी दाढ़ी को कटवाई और खुद ने डीएसपी की वर्दी पहनी और अपने एक साथी डकैत को सिपाही की ड्रेस पहना कर मोटर साइकिल से घेराबंदी वाली जगह पर पहुंचा. वहां मौजूद पुलिस वालों को मुस्तकीम ने दूसरी दिशा में जाने का बोलकर डकैत मलखान को पुलिस के घेरे से सुरक्षित निकलवाया.
इस घटना के बाद मुस्तकीम बीहड़ो में अपने गैंग की तरफ ना जाते हुए आगरा की तरफ निकल ग, फिर कुछ दिन के बाद वो कानपुर में आकर छुपा रहा. इसी दौरान मुस्तकीम ने सुरक्षित मुंबई जाने की योजना बनाई लेकिन वो मुंबई जाने से पहले एक बार अपने बड़े भाई से मिलना चाहता था. एक दिन वो अपनी योजना के अनुसार अपने बड़े भाई से मिलने के लिए निकल पड़ा. मुस्तकीम का भाई कानपुर देहात के दस्तमपुर गांव में अपनी ससुराल में ही रहकर मजदूर का काम करता था.
3 मार्च 1981 की रात में डकैत मुस्तकीम एक मोटर साइकिल पर सवार होकर अपने रिश्ते के भाई इमामुद्दीन के घर पहुंचा. इसके बाद वो इमामुद्दीन को अपने साथ लेकर सुबह बस से गलुआपुर आ गया. उसने गलुआपुर में एक पान वाले मेवालाल की दुकान से खुद के खाने के लिए पान खरीदे, फिर एक सरकारी स्कूल में लगे हैंडपंप से अपने हाथ मुंह धोए. गलुआपुर के पास ही दस्तमपुर गांव था, जहां उसका बड़ा भाई रहता था. हाथ मुंह धोने के बाद दोनों कच्चे रास्ते से पैदल ही दस्तमपुर गांव के लिए निकल पड़े.
इस दौरान दोनों के पास सामान के नाम पर सिर्फ एक थैला था. जिसे खुद मुस्तकीम ने अपने हाथों में पकड़ा हुआ था. दस्तमपुर गांव से पहले एक महुआ का पेड़ लगा था. जहां से एक रास्ता दस्तमपुर गांव की मुस्लिम बस्ती की तरफ जाता था, और एक मस्जिद के पास खत्म होता था. डकैत मुस्तकीम के बड़े भाई मकबूल ने मस्जिद के पास ही एक झोंपड़ी बना रखी थी. इसी झोंपड़ी मकबूल अपने परिवार के साथ रहा करता था. डकैत मुस्तकीम अपने रिश्ते के भाई इमामुद्दीन को अपने भाई मकबूल का घर दिखाने के लिए साथ में लाया था.
पुलिस को देखकर भागने लगा इमामुद्दीन
डकैत मुस्तकीम और इमामुद्दीन जैसे ही गांव के बाहर लगे महुआ के पेड़ के पास पहुंचे वैसे ही मुस्तकीम को सामने से मोटर साइकिल पर आते हुए एक सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल और सिपाही दिखाई दिए. मुस्तकीम का पुलिस के साथ आंख मिचौली का खेलने की पुरानी आदत थी, इसलिए वो पुलिस वालों को अनदेखा करते हुए बिना डरे आगे चलता गया. पुलिस सब-इंस्पेक्टर ने भी उस पर कोई ध्यान नहीं दिया. लेकिन मुस्तकीम के रिश्ते का भाई इमामुद्दीन पुलिस को देखकर डर कर भागने लगा.
सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल को दोनों पर शक हो गया और उसने अपने सिपाही के साथ मिलकर दोनों की तलाशी लेना शुरू किया. नोटों से भरा थैला के हाथों में सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल के कहने पर इमामुद्दीन झोले से कपड़े निकालने लगा. इसी दौरान सिपाही को थैले में पुलिस की रिवाल्वर दिखाई दी. जिसके बाद सिपाही ने इमामुद्दीन से थैला छिनने की कोशिश करने लगा. चूंकी थैले में मुस्तकीम के नोट रखे हुए थे. इसलिए मुस्तकीम थैले को बचाने के लिए बीच में आ गया.
पुलिस ने जिंदा पकड़ा डकैत मुस्तकीम
डकैत मुस्तकीम की हाथापाई पुलिस सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल के साथ शुरू हो गई. डकैत मुस्तकीम के हावी होने पर सब-इंस्पेक्टर ने गांव वालों को मदद के लिए बुलाया. इसी दौरान गांव का एक पतला सा ग्रामीण गंगा चरण मुस्तकीम से आकर भिड़ गया. इसी दौरान उसका लड़का और उसके दोस्तों का भी वहां से निकलना हुआ. गंगाराम के लड़के को लगा की उसके पिता को मुस्तकीम मार रहा है. तो उसके सभी दोस्तों ने मिलकर मुस्तकीम को एक पेड़ से बांध दिया.
इसके बाद ग्रामीणों और सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल ने दोनों को जमकर पीटा. इस मारपीट में पुलिस सब इंस्पेक्टर ने इमामुद्दीन का पैर तोड़ दिया. कई बार पूछने पर भी इमामुद्दीन ने पुलिस के सामने डकैत मुस्तकीम की पहचान उजागर नहीं की तो पुलिस और ग्रामीण इमामुद्दीन को बुरी तरह से पीटने लगा. इस पर डकैत मुस्तकीम से रहा न गया. और उसने सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल को अपने पास बुलाया.
डरते हुए हरिराम पाल उसके पास आया तो मुस्तकीम ने उससे कहा की तुम मेरी असलियत जानना चाहते हो? तो सुनो मैं हूं डकैत बाबा मुस्तकीम, इतना सुनते ही गांव वालों के साथ पुलिस सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल के होश उड़ गए. इसके साथ ही ये खबर आस-पास के गांव में आग की तरह फैली गई. इसी बीच सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल ने एक ग्रामीण को डेरापुर थाने भेज कर पुलिस फोर्स को मौके पर साथ लेकर आने का बोला.
डकैत मुस्तकीम को समझा आ गया की उसका अंत आ गया
डकैत मुस्तकीम और उसका भाई इमामुद्दीन पुलिस की गिरफ्त में थे. मुस्तकीम को समझ आ गया था की उसका आखिरी समय आ गया है. वो सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल से चिला-चिला कर अपने भाई इमामुद्दीन के निर्दोष होने के बारे में बोलने लगा. इस दौरान डकैत मुस्तकीम ने कहा की ये लड़का निर्दोष इसे मत मारो, ये बाल-बच्चों वाला है, इसे तो मैं रास्ता दिखाने के लिए अपने साथ लाया हूं. मुस्तकीम ने पुलिस सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल को उसके बच्चों की कसमें दिलाते हुए उसे छोड़ने की काफी मिन्नतें की.
इस पर पुलिस सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल ने भी डकैत मुस्तकीम के सामने कसम खाकर कहा कि वह ने तो इमामुद्दीन और न मुस्तकीम को मारेगा. मुस्तकीम ने पुलिस सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल से कहा की थैले में गरीबों को बांटने के लिए रुपयों के साथ चार सोने की अंगूठियां, एक घड़ी व एक गले सोने जंजीर रखी हैं. सारा सामान और नोटों को पुलिस सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल ने अपने पास रख लिया और ग्रामीणों से कहा की डकैत मुस्तकीम उसको मारने वाला था. इस आरोप के जवाब में बाबा मुस्तकीम बोला की मेरे पास रिवाल्वर थी गोली मारनी होती तो पहले ही मार देता
डकैत मुस्तकीम को पुलिस ने किया ढेर
5 मार्च 1981 सुबह के 11 बजे का समय कानपुर देहात के दस्तमपुर गांव के बाहर एक पेड़ से डकैत मुस्तकीम और उसके रिश्ते के भाई इमामुद्दीन को पुलिस और गांव के लोगों ने पेड़ से बांध रखा था. मार्च की तेज धूप में मुस्तकीम ने गांव वालों से पीने के लिए पानी मांगा लेकिन पुलिस सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल ने गांव वालों को मुस्तकीम को पानी पिलाने से मना कर दिया था. गांव वालों की पुलिस के साथ काफी बहस के बाद पुलिस सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल ने गांव वालों को पानी पिलाने की इजाजत दी.
डकैत मुस्तकीम और उसके रिश्ते के भाई इमामुद्दीन को पानी पिलाया. गांव के ही एक अन्य बुजुर्ग लक्ष्मी नारायण अपने घर से सब के लिए चाय बना कर लाया और डकैत मुस्तकीम के साथ सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल और दूसरे लोगों को चाय पिलाई. इस दौकान इमामुद्दीन लगातार रोते हुए सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल कह रहा था कि हम ग़रीब घर के हैं, हमें छोड़ दीजिए. इसी दौरान पुलिस सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल मुस्तकीम के साथ में चाय पीते बात कर रहा था. तभी पुलिस थाने से चार सिपाही मौक पर पहुंचे और बाबा मुस्तकीम की पहचान कराकर थाना इंचार्ज को मैसेज भेजा. कुछ ही देर में पुलिस थाने से कुछ और सिपाही एक टैम्पो में सवार होकर पहुंचे.
पुलिस वालों ने डकैत मुस्तकीम और उसके रिश्ते के भाई इमामुद्दीन को हाथ-पैर बांध कर टेम्पों मे डाला और गलुआपुर गांव के बाहरी इलाके में पहुंचे. गलुआपुर गांव के ग्रामीणों के भारी विरोध के चलते पुलिस दोनों को डेरापुर गांव के पास एक सूनसान नाले के पास ले गई. जहां पर थानाध्यक्ष के साथ पुलिस सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल और सिपाहियों के साथ मौजूद थे. सभी ने अपनी राइफल से डकैत मुस्तकीम को गोली मार कर वहीं ढेर कर दिया. उसके बाद इमामुद्दीन को भी गोली मार कर ढेर कर दिया.
डकैत मुस्तकीम के मूवमेंट वाले इलाके
धौलपुर (राजस्थान)
मुरैना (मध्य प्रदेश)
भिंड़ (मध्य प्रदेश)
दतिया (मध्य प्रदेश)
आगरा (उत्तर प्रदेश)
इटावा (उत्तर प्रदेश)
उरई (उत्तर प्रदेश)
जालौन (उत्तर प्रदेश)
कालपी (उत्तर प्रदेश)
कानपुर देहात (उत्तर प्रदेश)
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