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Hariyali Teej Vrat Katha: हरियाली तीज के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, मिलेगा अखंड सौभाग्य का वरदान!

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Jul 27, 2025    150812 views     Online Now 339
Hariyali Teej Vrat Katha: हरियाली तीज के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, मिलेगा अखंड सौभाग्य का वरदान!

हरियाली तीज व्रत कथा

Hariyali Teej Vrat Katha 2025: हिंदू धर्म में सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का त्योहार मनाया जाता है, जिसका बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है. नागपंचमी से दो दिन पहले मनाई जाने वाली इस तीज को खासतौर पर राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है. हरियाली तीज के दिन सुहागिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और निर्जला व्रत रखती हैं. हरियाली तीज का व्रत करवा चौथ की तरह कठिन माना जाता है. कहते हैं कि इस दिन व्रत रखकर पूजा-पाठ करने से जीवन में सुख-सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है. हरियाली तीज पर व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. ऐसे में चलिए पढ़ते हैं हरियाली तीज की व्रत कथा.

हरियाली तीज व्रत कथा (Hariyali Teej ki Katha)

शिव पुराण की कथा के मुताबिक, माता सती का जन्म दक्ष प्रजापति की पुत्री के रूप में हुआ था. राजा दक्ष को भगवान शिव से पसंद नहीं करते थे, क्योंकि वे सती का विवाह भगवान विष्णु से कराना चाहते थे. माता सती शिवजी को पति स्वरूप में मान चुकी थीं, इसलिए उनकी जिद के आगे दक्ष की एक न चली और विवश होकर उन्होंने माता सती का विवाह भगवान शिव से करा दिया.

एक बार दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें भगवान शिव को छोड़कर सभी देवी, देवता, गंधर्व, किन्नर आदि को आमंत्रित किया गया. फिर भी माता सती ने भगवान शिव को अपने साथ लेकर जाने पर विवश कर दिया. महादेव की अनुमति के बिना ही माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ समारोह में चली गईं. बिना आमंत्रित किए शिवजी के यज्ञ में शामिल होने पर राजा दक्ष ने माता सती और शिवजी का बड़ा अपमान​ किया.

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अपने पति का अपमान देख उन्हें बहुत बुरा लगा और वे सोचने लगीं कि अब वह इस अपमान के साथ कैसे कैलाश वापस जाएंगी. अपार दुख और ग्लानि में आकर सती ने उस यज्ञ कुंड में कूदकर आत्म दाह कर लिया. यह देखकर महादेव अत्यंत क्रोधित हो गए और उनसे वीरभद्र प्रकट हुए, जिन्होंने दक्ष का सिर काट दिया.

ऐसे में भगवान शिव से मिलन के लिए सती को 108 बार जन्म लेना पड़ा. 107 जन्मों तक सती ने भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की. तब जाकर 108वें जन्म में माता सती का जन्म हिमालय राज की बेटी मां पार्वती के रूप में हुआ.

देवी पार्वती ने इस जन्म में भी भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की. अंत में भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उनको दर्शन दिए. माता पार्वती ने पति स्वरूप में पाने की उनकी इच्छा को पूर्ण करने का वरदान दिया. फिर हिमालय राज ने माता पार्वती का विवाह भगवान शिव से करा दिया.

धार्मिक मान्यता है कि 107 जन्मों के बाद शिव और पार्वती का मिलन हुआ था. कहते हैं कि माता पार्वती की मनोकामना हरियाली तीज के दिन पूर्ण हुई थी, इसलिए कुंवारी कन्याएं व्रत रखकर माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं, जिससे उनकी कृपा से उन्हें भी मनचाहा जीवनसाथी मिल सके. सुहागिन महिलाएं हरियाली तीज का व्रत अखंड सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन के लिए करती हैं.

(Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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