
पीएम मोदी, राष्ट्रपति शी जिनपिंग
चीन लंबे समय तक दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश रहा है. अब भारत ने उसे जनसंख्या के मामले में चुनौती दी है इसलिए हो सकता है भारत की आबादी उससे अधिक हो. चीन ने इसी आबादी के बूते अमेरिका को भयभीत कर दिया है. बड़ी आबादी में सिर्फ अधिक पेट ही नहीं होते बल्कि अधिक श्रम भी होता है. चीन ने अपनी आबादी को काम पर लगा दिया. नतीजा कम पैसों में प्रचुर मात्रा में उत्पादन होने लगा. अमेरिका एक उपभोक्ता देश है. वहां पैसा है लोगों के पास अधिक क्रय शक्ति है पर इसके बावजूद सस्ता समान किसे नहीं पसंद! डॉलर के इस देश में भी जब सेल लगती है या ब्लैक फ्राइडे का आयोजन होता है तब लोग शो रूम्स पर सुबह चार बजे से ही लाइन लगा लेते हैं. क्रय शक्ति खूब है लेकिन सस्ता मिले तब और भी खरीदेंगे.
चीन का सामान सस्ता होता है इसलिए उसकी डिमांड भी खूब होती है. डॉलररामा जैसे स्टोर सस्ते में सामान बेचते हैं. वहां एक डॉलर तक में काफी उपयोगी सामान मिल जाते हैं. अमेरिकी लोग टिकाऊ माल के पीछे नहीं भागते क्योंकि हर छह महीने में फैशन बदल जाता है. उन्हें तो बस सस्ता चाहिए. अमेरिका के कुछ उत्पादक अपना माल बहुत सीमित संख्या में बनाते हैं. उनके कुछ फिक्स ग्राहक हैं. ऐसी कई जूता कंपनियां हैं जो बस कुछ ही जोड़े जूते बनाते हैं. भले उनकी कीमत लाखों या करोड़ों में रखी जाए. Ralph Lauren जैसी शर्ट्स आदि हर कोई वहां भी नहीं खरीद सकता. इसलिए अधिकतर अमेरिकी आबादी चीनी माल पर निर्भर करती है. जो बहुत सस्ते होते हैं. कपड़े, जूते और तमाम घरेलू उपयोग की वस्तुएं. यही कारण है कि वहां चाइनीज माल की मांग बनी रहती है.
भारत पर अधिक असर नहीं पड़ेगा
डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह चीन को अमेरिकी बाजार से बाहर करने के लिए टैरिफ और फिर टैरिफ लगाया है, उससे लगता है कि चीन को भी अपना बाजार अन्य देशों में तलाशना होगा. भारत एक बड़ा बाजार है और भारत के उत्पादों के लिए चीन भी. इसलिए अब व्यापार के मामले में भारत और चीन करीब आ रहे हैं. खासकर मार्च के पहले हफ्ते में चीन के विदेश मंत्री ने भारत से व्यापार की उम्मीद जताई थी. इसके बाद से लगातार भारत और चीन के संबंधों में चल रही तनातनी को समाप्त करने की कोशिशें दोनों देशों से शुरू हुईं. कई मुद्दों पर सार्थक बातचीत कर ली गई है. यूं भी ट्रंप द्वारा टैरिफ बढ़ाने के फैसले से भारत पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला. क्योंकि अमेरिका में भारत का निर्यात कोई बहुत ज़्यादा नहीं है. अलबत्ता चीन पर जरूर असर पड़ेगा.
चीनी माल के गुणवत्ता के नियम अलग-अलग
भारत की विदेश नीति मध्य मार्गी रही है. USA भारतीय उत्पाद के निर्यात पर टैरिफ बढ़ाएगा तो भारत दूसरा बाजार तलाश लेगा. भारतीय उत्पादों का बड़ा बाजार योरोप भी है और कई योरोपीय देशों ने भारतीय उत्पादों का आयात बढ़ाने के संकेत दिए हैं. भारत और उसके पड़ोसी देशों, खासकर पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच की कटुता दूर हो जाए तो भारत के लिए निर्यात का संकट नहीं रहेगा. चीन भी भारत में बाजार ही तलाशेगा क्योंकि चीन एक ऐसा देश है, जो हर वस्तु का उत्पादन करता है. जरूरत की हर वस्तु वह बनाता है. चूंकि मजदूर वहां सस्ते हैं इसलिए अपने उत्पाद का मूल्य भी वह कम रखता है. यही कारण है कि दुनिया भर का उपभोक्ता बाजार चीनी उत्पाद को लपक लेता है. मजे की बात यह है कि वह एक ही उत्पाद की क्वालिटी उन्नत देशों के लिए बेहतर रखता है और शेष मुल्कों को जाने वाली वस्तुओं की गुणवत्ता वैसी नहीं होती.
बौद्धिक संपदा में भारत पीछे
अमेरिका की भी जिन कंपनियों का माल दुनिया भर में USA के नाम से बिकता है, वे खुद भी अपने उत्पादों के कई पार्ट्स चीन में बनवाती हैं. चाहे वे जूते हों, महंगी ब्रांडेड कंपनियों के कपड़े हों या इलेक्टोनिक गुड्स के कई पार्ट्स. चीन के मजदूर भी USA, कनाडा, योरोप में जा कर मजदूरी करते हैं. उनकी लगन और उनका कौशल अद्वितीय होता है. इसलिए चीन में न बेरोजगारी है न अनगढ़ मजदूर हैं. USA के बोस्टन में भारतीय मूल के प्रोफ़ेसर महेंद्र सिंह बताते हैं, कौशल में भी चीन हमसे आगे है और बौद्धिक संपदा में भी. भारत को अपने आईटी क्षेत्र पर भले गर्व हो क्योंकि USA के कैलिफ़ोर्निया की सिलिकन वैली में अधिकतर आईटी इंजीनियर्स भारत के हैं. मगर कुल मिला कर हैं ये कुशल मजदूर ही. अकेडेमिक्स में भारत के लोग चीनी प्रवासियों से पीछे हैं. चीन के लोग पश्चिमी देशों में जाते हैं और तकनीक का अध्ययन कर लौट भी जाते हैं.
कच्चे माल के शहंशाह
इसके विपरीत भारत के लोग अगर योरोप, कनाडा या USA पहुंच भी गए तो फिर लौटते नहीं. इसकी वजह है भारत में काबिलीयत को अवसर न मिलना. यहां जो पैर जमा कर बैठा है उसकी मानसिकता होती है कि किसी तरह विदेश से पढ़ाई कर आए बंदे को दबा कर रखना. यह उन देशों में होता है जहां बेरोजगारी काफी होती है और लाभ के पद बहुत कम. इसलिए जो जिस सीट पर बैठा है वह अपने से योग्य के लिए सीट नहीं छोड़ना चाहता. उलटा उसके कदम-कदम पर रोड अटकाएगा. नतीजा यह होता है कि भारत की योग्यता पिछड़ जाती है. भारत की यह मानसिकता विश्व में सब जगह उसे पीछे रखती है. इसीलिए व्यापार में चीन भारत से बहुत आगे है. तनातनी के बावजूद भारत में चीनी माल खूब आता है. इसके बरक्स भारतीय माल वहां कम जाता है. जो जाता भी है, वह कच्चा माल.
गलवान घाटी संघर्ष का नुकसान
वर्ष 2024 में भारत और चीन के बीच 118.40 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ. भारत में चीन से इलेक्ट्रानिक, हार्ड वेयर और टेलीकाम उपकरण आए जबकि भारत ने यहां से लौह अयस्क (Iron Ore) तथा पेट्रोलियम उत्पाद बेचे. चीन भारत में FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) का दूसरा सबसे बड़ा देश है. भारत अब FDI में और ढील देने पर विचार कर रहा है. दरअसल 2020 में गलवान घाटी में तनाव हुआ था. तब भारत और चीनी सैनिक आमने-सामने आ गए थे. इसके बाद चीन से व्यापार पर काफी सारे प्रतिबंध लगाए गए थे. भारतीयों ने चीनी माल का बॉयकाट करना शुरू कर दिया था. लेकिन अब विदेश मंत्रालय संकेत दे रहा है कि इन प्रतिबंधों में से कई को हटा लिया जाएगा. यह सुखद संकेत है. क्योंकि अब व्यापार का एक नया रास्ता खुलेगा.
ट्रंप को मुंहतोड़ जवाब देने को सब आतुर
सबसे बड़ी बात है कि इस फैसले से भारत के पड़ोसी देशों से उसके रिश्ते बेहतर बनेंगे. अभी तक सरकार की नीति रही है कि किसी भी पड़ोसी देश से निवेश के पूर्व सरकार की स्वीकृति जरूरी होगी. अब नियमों के सरल हो जाने से भारत का व्यापार घाटा (Trade Deficit) कम होगा. यह सब डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से मिल रही धमकियों का जवाब है. दो अप्रैल से USA की नई टैरिफ़ नीति लागू होगी. इस बीच लगभग सभी देश अपनी-अपनी तैयारी कर चुके हैं. ट्रंप की टैरिफ़ नीति का सबसे अधिक असर कनाडा पर पड़ता मगर प्रधानमंत्री माइक कार्नी ने उसकी तैयारी कर ली है. वह बैंक ऑफ़ इंग्लैंड और बैंक ऑफ़ कनाडा के मुखिया रह चुके हैं. इसलिए उन्होंने भी USA की टैरिफ़ नीति पर पलटवार शुरू कर दिया है. कनाडा की सारी थल सीमा USA से ही मिलती है.
भारत को पटाने के लिए अमेरिकी अधिकारियों का दौरा
कनाडा का एरिया बहुत बड़ा है और इस मुकाबले आबादी मात्र 3.85 करोड़. इसलिए ट्रंप जैसी उम्मीद कर रहे थे वैसा खराब असर कनाडा पर नहीं पड़ेगा. उलटे USA को ही कनाडा के पर्यटक खोने पड़ेंगे. मैक्सिको भी अमेरिका की इस नीति का मुकाबला करने को तैयार है. योरोपीय यूनियन के देश और ब्रिटेन ने भी ट्रंप को संदेश दे दिया है कि रूस को प्रोत्साहन दिया गया तो वे USA के पाले में रहेंगे. इसी कारण सभी देश डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ एकजुट होते जा रहे हैं. अब डोनाल्ड ट्रंप की मंडली भी घबराई हुई है. इसलिए दूसरे देशों में USA के दूत संपर्क कर रहे हैं. पिछले दिनों अमेरिकी खुफिया विभाग की चीफ तुलसी गाबार्ड भारत आई थीं और अब व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन लिंच 25 मार्च से पांच दिनों तक के लिए भारत में रहेंगे.
जेनेरिक दवाओं का बड़ा निर्यातक भारत
अमेरिका में भारत की जेनेरिक दवाओं की बड़ी मांग है. क्योंकि ये काफी सस्ती होती हैं और असरदार भी. यदि टैरिफ वार के चलते जानी बंद हो गईं तो अमेरिका में लोगों पर मेडिकल बिलों का बोझ बढ़ेगा. यूं भी USA में इलाज कराना बहुत महंगा होता है. अमेरिका भी इन बातों से चिंतित है. जैसे-जैसे दो अप्रैल नजदीक आता जा रहा है रेसीप्रोकल टैरिफ के विरोध में अलग-अलग देश भारत, चीन से दोस्ताना संबंध बना रहे हैं. इसकी वजह है इन देशों में उद्यमशील आबादी की काफी संख्या होना. विश्व को सस्ता और बेहतर माल यही दोनों देश उपलब्ध करा सकते हैं. खुद डोनाल्ड ट्रंप भी बेचैन हैं. यह बेचैनी दिखाई भी पड़ रही है.
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