
प्रधानमंत्री मोदी, नीतीश कुमार
बिहार की नीतीश सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में सात नए चेहरों को जगह मिली है, जिनमें सभी बीजेपी कोटे से मंत्री बनाए गए हैं. नीतीश कैबिनेट का विस्तार का इकलौता लक्ष्य सात महीने के बाद बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जातीय-क्षेत्रीय संतुलन को साधने का है. बिहार चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने अपने सात कद्दावर नेताओं को मंत्री बनाकर सिर्फ सियासी बैलेंस ही नहीं बनाया बल्कि नीतीश सरकार में अपने पावरफुल होने का भी संदेश दे दिया है.
नीतीश कैबिनेट में बीजेपी कोटे से जिन सात चेहरों को जगह मिली है, उनमे अररिया जिले की सकटी विधानसभा सीट से विधायक विजय कुमार मंडल, दरभंगा जिले की जाले सीट से विधायक जीवेश मिश्रा और दरभंगा सीट से विधायक संजय सरावगी हैं. सीतामढ़ी की रीगा सीट से विधायक मोतीलाल प्रसाद, मुजफ्फरपुर जिले की साहेबगंज से विधायक राजू कुमार सिंह, नालंदा जिले की बिहारशरीफ सीट से विधायक डॉ. सुनील कुमार और सारण जिले की अमनौर सीट से विधायक कृष्ण कुमार मंटू शामिल हैं.
बीजेपी ने साधा बिहार का समीकरण
बिहार में सात महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी ने चुनाव से ठीक पहले नीतीश कैबिनेट में जिस तरह से अपने 7 नेताओं को जगह दी है, उसके जरिए जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने की कवायद की है. नीतीश कैबिनेट में बीजेपी कोटे के मंत्रियों की संख्या 21 हो गई है जबकि जेडीयू के 13 मंत्री हैं. इस तरह से बीजेपी का शेयर जेडीयू से करीब डेढ़ गुना ज्यादा हो गया है. इतनी बड़ी संख्या में बीजेपी कोटे के मंत्री बिहार सरकार में कभी नहीं रहे हैं. इससे पहले तक बीजेपी से अधिकतम 16 मंत्री हुआ करते थे.
बीजेपी ने बिहार के जातीय समीकरण को साधने के लिहाज से एक राजपूत, एक भूमिहार, एक कुर्मी, एक केवट, एक कुशवाह, एक तेली और एक मारवाड़ी समाज से मंत्री बनाया है. इस तरह बीजेपी ने अगड़ी जातियों से तीन नेताओं को मौका दिया तो चार पिछड़ी जाति के नेताओं को कैबिनेट में शामिल किया है. बीजेपी ने बिहार चुनाव से पहले बड़ा सियासी दांव चला है, लेकिन क्या राजनीतिक रूप से मुफीद साबित होगा?
बीजेपी के लिए शुभ बनता रहा विस्तार
बीजेपी को सियासी प्रयोग के तौर पर देखा जाता है. बीजेपी चुनाव से पहले कैबिनेट विस्तार का प्रयोग पहले ही अलग-अलग राज्यों में करती रही है. बीजेपी के लिए यह दांव चुनाव में मास्टरस्ट्रोक साबित होता रहा है. बीजेपी ने गुजरात से लेकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले कैबिनेट विस्तार का प्रयोग कर चुकी है. बीजेपी के लिए कैबिनेट विस्तार का दांव सियासी तौर पर शुभ साबित हुए हैं.हरियाणा और उत्तराखंड में चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने जब विस्तार किया तो उसे जीत मिली.
गुजरात में परिवर्तन का मिला लाभ
गुजरात बीजेपी की सियासी प्रयोगशाला मानी जाती है. बीजेपी ने गुजरात के 2022 चुनाव से 14 महीने पहले सूबे की सरकार में बदलाव का फैसला किया था. बीजेपी ने सितंबर 2021 में सीएम विजय रूपाणी के साथ सभी 22 मंत्रियों को हटा दिया था. देश में किसी भी पार्टी ने चुनाव से पहले अपनी सरकार में कभी भी ऐसा प्रयोग नहीं किया था. गुजरात में 2022 के चुनाव परिणाम में सियासी बदलाव के कदम जीत के सुपर सक्सेस फॉर्मूले के रूप में स्थापित किया. इससे बीजेपी ने गुजरात के 60 साल के इतिहास में किसी भी पार्टी के सबसे ज्यादा सीटें जीतने का रिकॉर्ड और किसी भी राज्य में 86 प्रतिशत सीटें हासिल करने का कीर्तिमान अपने नाम कर लिया.
यूपी से उत्तराखंड तक रचा इतिहास
बीजेपी ने अपने इस सक्सेस फॉर्मूले को 2020 के यूपी चुनाव से ठीक चार महीने पहले यूपी में लागू किया. योगी सरकार की कैबिनेट में बीजेपी ने सात नए मंत्रियों को शपथ दिलाकर एंट्री कराई. यूपी में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही. इस तरह साढ़े तीन दशक में पहली बार कोई सत्ताधारी पार्टी ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही. इसी तरह बीजेपी ने उत्तराखंड में भी बदलाव का फार्मूला चला. उत्तराखंड में भी तीरथ सिंह रावत को सीएम पद से हटाकर पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाया तो लगातार दूसरी बार बीजेपी की सरकार बनाने में सफल रही. उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार ये था, जब किसी पार्टी ने सत्ता में रिपीट किया.
हरियाणा में लगाया सत्ता की हैट्रिक
बीजेपी ने पिछले साल ही हरियाणा चुनाव से ठीक पहले सीएम मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया. इसके अलावा मंत्रिमंडल में भी बदलाव किया. सत्ता परिवर्तन का लाभ बीजेपी को विधानसभा चुनाव में मिला. बीजेपी लगातार तीसरी बार हरियाणा चुनाव जीतकर सत्ता में वापसी की. हरियाणा में लंबे अरसे के बाद किसी पार्टी ने सत्ता की हैट्रिक लगाने में कामयाब रही. हरियाणा में बीजेपी के जीत का अहम कारण सियासी बदलाव रहा. बीजेपी अब इस फार्मूले को बिहार में चला है.
बिहार में बीजेपी को क्या मिलेगी जीत?
बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव से सात महीने पहले नीतीश कैबिनेट का विस्तार का दांव चला. बीजेपी ने कैबिनेट विस्तार में अपने कोटे के सात नेताओं को मंत्री बनवाने में सफल रही. बीजेपी ने राजपूत, भूमिहार, कुर्मी,कुशवाहा और केवट जातियों को साध कर चुनावी जंग में उतरने का फैसला किया. नीतीश कुमार और बीजेपी ने एक साथ सलाह कर एक बड़ा दांव खेला है.
बिहार विधानसभा चुनाव में इसका कितना फायदा होगा, ये देखने वाली बात होगी, लेकिन जिस तरह चुनाव से पहले बीजेपी ने सियासी बिसात बिछानी शुरू की है, उसके चलते माना जा रहा है कि 2025 के चुनाव की धड़कन बहुत करीब महसूस कर रही है. सीएम नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल विस्तार से अपना हाथ खींच लिया और अपना कोटा भी बीजेपी के हवाले कर दिया, तो इसके साधारण नहीं बहुत मजबूत संकेत हैं. बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग को दुरुस्त कर उतरने की रणनीति बनाई है.
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