कहते हैं, एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है. इमोजी के मामले में कुछ-कुछ ऐसा ही है. एक इमोजी इंसान के पूरे मूड और पसंद-नापसंद के बारे में बहुत कुछ कह देती है. यह ऐसा आइकन है जो जज्बात को बखूबी बयां करता है. यह आज के युवा की भाषा बन गई है. 17 जुलाई की तारीख इमोजी को समर्पित है, जिसे वर्ल्ड इमोजी डे के तौर पर मनाया जाता है. पहली बार इस खास दिन को 2014 में मनाया गया. इसे मनाने की शुरुआत साल 2014 में इमोजीपीडिया के फाउंडर जेरेमी बर्ज ने की. इस खास दिन को मनाने का मकसद इमोजी को बढ़ावा देना था.
इमोजी को एक जापानी शख्स से जन्म दिया. जिनका नाम था शिगेताका कुरीता.दिलचस्प बात यह है कि शिगेताका कुरीता ने मात्र 25 साल की उम्र में इमोजी को गढ़ा था. उन्होंने पहली बार 1999 में 176 इमोजी का सैट तैयार किया. उस सेट ने इतिहास रच दिया. उसे न्यूयॉर्क के म्यूजियम ऑफ मॉडर्न ऑर्ट में परमानेंट कलेक्शन के रूप में रखा गया. अब सवाल उठता है कि शब्दों की दुनिया में इमोजी का जन्म कैसे हो गया?
शब्दों की दुनिया की इमोजी की जरूरत क्यों पड़ी?
शिगेताका कुरीता के बारे में खास बात है कि उन्होंने न तो इंजीनियरिंग की और न ही डिजाइनिंग की आधिकारिक डिग्री हासिल की थी. अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने वाले शिगेताका कुरीता मोबाइल इंटरनेट सर्विस कंपनी के लिए काम करते थे. तकनीक के शुरुआती दौर में संदेश भेजने के लिए शब्दों की संख्या सीमित हुआ करती थी, यहीं से उन्हें इसका आइडिया आया.
शिगेताका कुरीता को लगा अगर शब्दों की जगह खास तरह के आइकन को भेजा जाए तो अपनी बात पूरे इमोशन के साथ कही जा सकती है और शब्द भी बचाए जा सकते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने ईमेल में इमोजी शब्द का इस्तेमाल किया. पहली बार उन्होंने 176 इमोजी के सेट तैयार किए. इसे पसंद किया जाने लगा. इंटरनेट की क्रांति ने इमोजी को एक तरह की भाषा में तब्दील कर दिया. युवा अपनी बात कहने के लिए शब्दों की जगह इमोजी का इस्तेमाल करने लगे.
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में शामिल हुआ इमोजी शब्द
साल 2013 में इमोजी की पॉपुलैरिटी को इस बात से समझा जा सकता है कि ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी को इमोजी शब्द अपने शब्दकोश में शामिल करना पड़ा. वहीं, 2015 में इसे वर्ड ऑफ द ईयर घोषित किया.धीरे-धीरे इमोजी को कंट्रोल करने के लिए संस्था भी बनी. इसका नाम है यूनिकोड कंसोर्टियम.
कौनसी नई इमोजी का जन्म होगा, वह कैसी होगी और इसके प्रस्ताव को हरी झंडी देनी है या नहीं, यह सारे काम यूनिकोर्ड कंसोर्टियम करता है. कोई भी नई इमोजी को बनाने के लिए प्रस्ताव दे सकता है, लेकिन इस पर फैसला कंसोर्टियम लेता है. यह एक गैर-लाभकारी संस्थान है. दुनिया की कई दिग्गज कंपनियां जैसे-गूगल, ऐपल, आईबीएम, इसकी सदस्य हैं. कंसोर्टियम का कहना है, हर साल हजारों की तादाद में नई इमोजी के लिए आवेदन पत्र मिलते हैं.
“Face with Tears of Joy” 😂 सालों से सबसे पॉपुलर इमोजी
आज भी “Face with Tears of Joy” 😂 वाली इमोजी पॉपुलैरिटी में सबसे टॉप पर है. वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम समेत सोशल मीडिया के जरिए हर दिन 10 अरब से जयादा इमोजी एक-दूसरे को भेजे जाते हैं. एक इमोजी अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर थोड़ा अलग तरह से नजर आ सकती है. यह उस प्लेटफॉर्म के कंटेंट की डिजाइन पर निर्भर होता है.
किस देश में इमोजी पर बैन लगाया और सजा भी?
ऐसा बिल्कुल नहीं है इमोजी को हर कोई पसंद कर रहा है. दुनिया के कई देश ऐसे भी हैं जिन्होंने खास तरह की इमोजी पर बैन लगा रखा है. सऊदी अरब सरकार ने LGBTQ+ से जुड़े इमोजी जैसे 🌈, 👬, 👭को प्रतिबंधित किया है. यहां किसी को दिल वाली इमोजी ❤️ भेजने पर 3 से 5 साल की जेल भी हो सकती है.
वहीं, ईरान में लव, किस, LGBTQ+, डांस या वेस्टर्न कल्चर से जुड़े इमोजी पर प्रतिबंध लगाया गया है. इसके अलावा रूस में भी LGBTQ+ से जुड़ी इमोजी और कंटेंट पर बैन लगा हुआ है.
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