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यूक्रेन के इस शहर पर कंट्रोल के लिए पुतिन ने उतार दिए 1.10 लाख सैनिक, क्यों है अहम?

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Jun 28, 2025    150815 views     Online Now 431
यूक्रेन के इस शहर पर कंट्रोल के लिए पुतिन ने उतार दिए 1.10 लाख सैनिक, क्यों है अहम?

यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन

यूक्रेन और रूस के बीच तीन साल से जंग जारी है. इस बीच पूर्वी यूक्रेन का पोक्रोवस्क शहर दोनों देशों की टकराहट का सबसे बड़ा अखाड़ा बना हुआ है. रूस ने यहां 1 लाख 10 हजार सैनिक झोंक दिए हैं. ये कोई मामूली सैन्य जमावड़ा नहीं, बल्कि इस बात का साफ इशारा है कि पुतिन इस शहर को किसी भी कीमत पर अपने नक्शे में शामिल करना चाहते हैं.

पिछले एक साल से रूस लगातार इस शहर को कब्जे में लेने की कोशिश कर रहा है. लेकिन हर बार उसे यूक्रेनी सेनाओं की ओर से कड़ी चुनौती मिलती रही है. यही वजह है कि रूस को कई बार अपनी रणनीति बदलनी पड़ी.

क्यों पुतिन के लिए अहम है ये शहर

सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक पोक्रोवस्क कोई बहुत बड़ा शहर नहीं है, लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति बेहद अहम है. ये शहर डोनेट्स्क इलाके के उस हिस्से में आता है, जो अब तक यूक्रेन के नियंत्रण में है. यही नहीं, पोक्रोवस्क सप्लाई रूट और रेलवे कनेक्शन का एक बड़ा केंद्र है, जो यूक्रेनी डिफेंस को सपोर्ट करता है. यही वजह है कि रूस इसे अपने कब्जे में लेना चाहता है, ताकि डोनेट्स्क और लुहान्स्क को पूरी तरह निगल सके.

कब्जा इतना आसान भी नहीं…

शुरुआत में रूस ने पोक्रोवस्क पर सीधे हमले किए, लेकिन हर बार उसे झटका लगा. इसके बाद अब उसने रणनीति बदल दी है. अब रूसी सैनिक दक्षिण और उत्तर-पूर्व दिशा से शहर को घेरने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही छोटी-छोटी फायर टीम्स को मोटरसाइकिल, बग्गियों और ऑल-टेरेन व्हीकल्स के जरिए भेजा जा रहा है, ताकि अंदरूनी दबाव बनाया जा सके. यूक्रेनी सेना ने हाल ही में रूस के कुर्स्क इलाके में एक सरप्राइज अटैक किया था. इसका असर ये हुआ कि रूस को वहां से करीब 63 हजार सैनिकों को हटाना पड़ा, जिससे पोक्रोवस्क पर बना दबाव कुछ वक्त के लिए हल्का हो गया.

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अब क्या बचा है पोक्रोवस्क में?

सीएनन की एक खबर के मुताबिक युद्ध शुरू होने से पहले पोक्रोवस्क की आबादी करीब 60 हजार थी, लेकिन अब वहां गिनती के लोग ही बचे हैं. शहर की आखिरी कोकिंग कोल माइंस भी इस साल की शुरुआत में बंद हो गई. यहां काम करने वाले मजदूर भी अब इलाका छोड़ चुके हैं. अब बचे हैं तो सिर्फ सेना के लोग और वो बचे-खुचे नागरिक जो मजबूरी में रुके हैं.

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