जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों की महानता का प्रतीक है. ये हिन्दू में धर्म और आस्था का उदाहरण है.ज्येष्ट माह की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ की स्नान यात्रा का महोत्सव मनाया जाता है. इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा को मंदिर के बाहर लाया जाता है.
इस यात्रा को पहांड़ी यात्रा कहा जाता है. भगवान जगन्नाथ को 108 स्वर्ण पात्रों में भरे विभिन्न तीर्थ स्थलों के जल से स्नान कराया जाता है और इसके तुरंत बाद भगवान को बुखार हो जाता है और भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं.
भगवान जगन्नाथ का 15 दिनों का एकांतवास
फिर 15 दिनों के लिए वह विश्राम के लिए चले जाते हैं इस पूरी प्रक्रिया को अनासरा लीला कहा जाता है. इसे भगवान जगन्नाथ की ज्वर लीला भी कहा जाता है. इस दौरान मंदिर के पट दर्शन के लिए बंद कर दिए जाते हैं और 15 दिनों तक सिर्फ उनके निजी सेवक जिसे दयितगण कहा जाता है, उन्हीं को भगवान के एकांतवास में जाने की अनुमति होती है.
15 दिनों की अनासरा लीला
इस दौरान 24 घंटे चलने वाली भगवान जगन्नाथ की रसोई को 15 दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है. 15 दिन भगवान भोग नहीं ग्रहण करते उनको सिर्फ विभिन्न तरह के काड़े और जड़ी बूटियां घोलकर पीने को दी जाती हैं कि भगवान शीघ्र ठीक हो सके. इतना ही नहीं इन 15 दिनों में प्रतिदिन एक वैद्य, भगवान के स्वास्थ्य को जांचने के लिए आता है. लेकिन आखिर भगवान जगन्नाथ हर साल 15 दिनों के लिए बीमार क्यों पड़ते हैं. यह सवाल हर भक्त के मन में आता होगा. तो इसका जवाब हम आपको देते हैं. इसके इसके पीछे दो कथाएं प्रचलित हैं
भगवान जगन्नाथ और भक्त माधव दास के प्रेम की कथा
इस विषय पर एक प्रचलित कथा ये है कि माधव दास भगवान जगन्नाथ का अनन्य भक्त था. अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद उसके जीवन में सिर्फ भगवान की सेवा ही मायने रखती थी. उम्र के साथ वह बहुत बीमार पड़ गया. लोगों ने कहा कि अब भगवान जगन्नाथ की सेवा तुम्हारे बस का काम नहीं, लेकिन माधव दास बोला कि जब तक इस शरीर में प्राण हैं मैं भगवान के सेवा नहीं छोड़ सकता. इसी दौरान एक दिन सेवा करते-करते माधव दास मूर्छित हो गया, उसके बीमार होने पर स्वयं जगन्नाथ उसकी सेवा के लिए अपने भक्त के पास आये. भगवान जगन्नाथ उसकी सेवा करते रहे जब उसके शरीर में थोड़ी जान आई और उसे होश आया तो वह समझ गया कि यह तो मेरे प्रभु हैं जो मेरी सेवा कर रहे हैं. वो भगवान के चरणों में गिर गया बोला प्रभु आप मेरी इतनी सेवा कर रहे हैं ऐसा मैं कैसे होने दे सकता हूं और अगर आप भगवान हैं तो आपने मुझे अपनी सेवा से वंचित क्यों किया आप मेरी यह बीमारी को टाल भी सकते थे. भगवान ने कहा कि मैं अपने भक्तों के प्रेम से बंधा हुआ हूं इसलिए मैं तुम्हारी सेवा के लिए आया लेकिन मैं किसी के भाग्य को नहीं बदल सकता तुम्हारे भाग्य में अभी 15 दिन की बीमारी और लिखी है माधव दास, लेकिन तुम्हारे प्रेम को देखते हुए मैं अपनी तुम्हारी यह 15 दिन की बीमारी अपने ऊपर पर लेता हूं. तभी से यह मान्यता है कि भगवान अपने भक्तों के कष्टों को 15 दिन के लिए अपने ऊपर ले लेते हैं और बीमार पड़ जाते हैं.
पुरी राजा के स्वप्न से जुड़ी कथा
एक और कथा के अनुसार भगवान जगन्नाथ ने उड़ीसा के राजा को सपने में दर्शन दिए और कहा कि महाराज मंदिर के सम्मुख वट वृक्ष के निकट एक कुआं खुदवाईये, उसके शीतल जल से मैं स्नान करना चाहता हूं और 15 दिनों के लिए एकांतवास चाहता हूं. आज ही के दिन यानी कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान को उस कुएं के जल से स्नान कराया गया और स्नान करने से बाद ही भगवान बीमार पड़ गए भगवान ने राजा को स्वप्न में बताया था की इस 15 दिन की ज्वर लीला में मैं किसी भक्त को दर्शन नहीं दूंगा.
सदियों से चली आ रही है ये प्रथा
इन्हीं कथाओं के चलते आज भी जगन्नाथ पुरी में भगवान को यह पवित्र स्नान कराया जाता है और प्रत्येक वर्ष भगवान बीमार पड़ते हैं. इसके बाद 15 दिनों के लिए भगवान अपनी रहस्यमयी अनासरा लीला शुरू करते हैं. इन 15 दिनों में भगवान की सेवा की जाती है और उनका पूर्ण रूप से उपचार किया जाता है. जगन्नाथ भगवान बीमार रहे 15 दिन के लिए मंदिर के द्वारा बंद कर दिए जाते हैं और उनकी रसोई बंद कर दी जाती है. आज से 15 दिन बाद जगन्नाथ रथ यात्रा होती है जिसमें लाखों भक्त दर्शन के उमड़ते हैं.
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