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हिमालयी क्षेत्रों में किस तरह बनता है शिलाजीत? यहां जानें

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Feb 12, 2025    150814 views     Online Now 181

आयुर्वेद में शिलाजीत को एक चमत्कारी औषधि माना गया है. ये शरीर के लिए कई तरह से फायदेमंद साबित हो सकती है, खासकर की सर्दियों में ये शरीर को एनर्जी प्रदान करने और मेंटल हेल्थ में सुधार करने में मदद करती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिलाजीत का निर्माण कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है.

शिलाजीत हिमालय, तिब्बत, काकेशस और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों की चट्टानों से निकलने वाला एक गाढ़ा, राल जैसा पदार्थ है. शिलाजीत का निर्माण मुख्य रूप से जैविक पदार्थों और पर्वतीय चट्टानों के बीच होने वाली गहरी भूगर्भीय प्रक्रियाओं के कारण होता है.इसकी उत्पत्ति के पीछे तीन प्रमुख चरण होते हैं, आइए जानते हैं इसके बारे में

शिलाजीत का प्राकृतिक निर्माण कैसे होता है?

पहला: जैविक पदार्थों का संचित होना

शिलाजीत का निर्माण पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले विशेष प्रकार के वनस्पति पदार्थों, शैवाल, लाइकेन और औषधीय पौधों के धीरे-धीरे सड़ने और अलग होने से शुरू होता है. यह प्रक्रिया हजारों वर्षों तक चलती है, जिसमें पौधे और वनस्पतियां चट्टानों के अंदर दबते चले जाते हैं. हिमालय जैसे ऊंचाई वाले इलाकों में, जहां तापमान में उतार-चढ़ाव होता है, वहां यह विघटन प्रक्रिया यानी कि किसी चीज को उसके भागों में तोड़ने की प्रक्रिया धीमी गति से चलती रहती है.

दूसरा: भूगर्भीय दबाव और रासायनिक परिवर्तन

जैसे-जैसे जैविक अवशेष यानी की किसी प्रक्रिया या उपचार के बाद बचे हुए पदार्थ या सामग्री का अवशेष जब चट्टानों के अंदर दबते जाते हैं, तो उन पर भूगर्भीय दबाव और ऊंचे तापमान का प्रभाव पड़ता है. यह यह जैविक अवशेषों को ह्यूमिक एसिड और फुल्विक एसिड में बदल देता है, जो शिलाजीत के सबसे शक्तिशाली औषधीय तत्व होते हैं. इस प्रक्रिया में खनिज तत्व भी मिल जाते हैं, जिससे शिलाजीत में कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, कॉपर और अन्य खनिजों की मात्रा बढ़ जाती है.

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तीसरा: ऊष्मीय प्रभाव ( Thermal effect ) और बाहर निकलना

गर्मियों में, जब सूरज की तेज किरणें पहाड़ों पर पड़ती हैं, तब उच्च तापमान के कारण शिलाजीत चट्टानों की दरारों से बाहर निकलने लगता है. ये पदार्थ गाढ़े, काले-भूरे रंग का होता है और इसकी गंध गोमूत्र या कपूर जैसी होती है. यह प्राकृतिक रूप से निकलने वाला पदार्थ ही वह “शुद्ध शिलाजीत” होता है, जिसे आयुर्वेद में “महारसायन” माना जाता है.

शिलाजीत की संरचना इस बात पर निर्भर करती है कि यह किस प्रकार की चट्टानों और वनस्पतियों के संपर्क में रहा है. इसमें कई तरह को पौषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर के लिए अलग-अलग तरह से फायदेमंद साबित हो सकते हैं.

शिलाजीत में पाए जाने वाले पोषक तत्व

फुल्विक एसिड – यह एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है, जो सेल्स को रीजनरेट करने करता है और पोषक तत्वों को अब्सॉर्ब करने में मदद करता है.

ह्यूमिक एसिड – यह शरीर में डिटॉक्सिफिकेशन करने की प्रक्रिया को तेज करता है और एनर्जी लेवल को बढ़ाने में मदद करता है.

डिबेंजो,एलफा,पायरोन्स – यह ब्रेन और मेमोरी पावर को बढ़ाने में मदद करता है.

मिनरल्स – शिलाजीत में 85 से अधिक मिनरल्स मौजूद होते हैं. जो शरीर को ताकत प्रदान करने में मदद करता है.

किन-किन स्थानों पर शिलाजीत पाया जाता है?

शिलाजीत मुख्य रूप से दुनिया के कुछ चुनिंदा पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है, जहां विशेष प्रकार की भूगर्भीय और जलवायु परिस्थितियां होती हैं. हिमालयी शिलाजीत सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह औषधीय पौधों के पर्वतीय क्षेत्रों से आता है. मुख्य रूप से शिलाजीत इन जगहों पर पाया जाता है.

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हिमालय पर्वत श्रृंखला (भारत, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान)
काकेशस पर्वत (रूस, जॉर्जिया, आर्मेनिया, अज़रबैजान)
अल्ताई पर्वत (रूस, कजाकिस्तान, मंगोलिया, चीन)
तिब्बत और गिलगित-बाल्टिस्तान

शिलाजीत की गुणवत्ता कैसे पहचाने?

चूंकि शिलाजीत का निर्माण एक लंबी और जटिल प्रक्रिया से होता है, इसलिए बाजार में नकली या मिलावटी शिलाजीत भी आसानी से मिल जाता है. असली और शुद्ध शिलाजीत की पहचान करने के लिए आप इन टिप्स की मदद ले सकते हैं.

पानी में धोकर देखें – शुद्ध शिलाजीत पानी में पूरी तरह घुल जाता है, लेकिन अन्य रसायनों में नहीं.

रंग और गंध – असली शिलाजीत का रंग गहरा काला-भूरा होता है और इसमें गोमूत्र जैसी तेज गंध होती है.

गर्मी पर प्रतिक्रिया – असली शिलाजीत गर्म करने पर नरम हो जाता है और ठंडा करने पर कठोर.

अगर आप शिलाजीत का सेवन कर रहे हैं, तो हमेशा प्रमाणित और विश्वसनीय जगहों से ही इसे खरीदें, क्योंकि आजकल बाजार में नकली शिलाजीत भी उपलब्ध है.

शिलाजीत कोई साधारण जड़ी-बूटी नहीं, बल्कि हजारों वर्षों की प्राकृतिक प्रक्रियाओं से निर्मित एक अद्भुत औषधि है. यह हिमालय और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों से निकलने वाला एक दुर्लभ पदार्थ है, जिसे सदियों से आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग किया जाता रहा है. इसकी शुद्धता, निर्माण प्रक्रिया और वैज्ञानिक गुणों को ध्यान में रखते हुए, अगर सही तरीके से और सही मात्रा में इसका सेवन किया जाए, तो यह शरीर और ब्रेन के लिए फायदेमंद हो सकता है.

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