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नहीं मिले उत्तराधिकारी तो खत्म हो गईं ये पार्टियां, नीतीश कुमार और नवीन बाबू क्या करेंगे? | What will Nitish Kumar Naveen Babu do successors not found then these parties are finished

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Jul 11, 2024    150847 views     Online Now 377
नहीं मिले उत्तराधिकारी तो खत्म हो गईं ये पार्टियां, नीतीश कुमार और नवीन बाबू क्या करेंगे?

नहीं मिले उत्तराधिकारी तो खत्म हो गईं ये पार्टियां

वीके पांडियन, मनीष वर्मा, आरसीपी सिंह, प्रणब प्रकाश दास… पिछले 10 सालों में सुर्खियों में आए ये नाम अपनी-अपनी पार्टियों के भीतर उत्तराधिकारी की रेस में शामिल रहे हैं. भारत में दलों के भीतर उत्तराधिकारी की खोज नई नहीं है. दलों में उत्तराधिकारी की खोज एक जरूरी प्रक्रिया माना जाता है.

इसकी बड़ी वजह पार्टियों के आस्तित्व को बनाए रखना है. 1980 के बाद से अब तक 4 ऐसी पार्टियां रही हैं, जिसका आस्तित्व खत्म हो गया. इसकी वजह थी पार्टी में उत्तराधिकारी का न होना. इनमें 2 पार्टियां तो प्रधानमंत्री रहे नेताओं की थीं.

इस स्टोरी में इन्हीं पार्टियों की कहानी को विस्तार से पढ़ते हैं…

पहला नाम कामराज की कांग्रेस (ऑर्गेनाइजेशन) का

1969 में के कामराज के नेतृत्व में कांग्रेस ऑर्गेनाइजेशन का गठन हुआ. 1971 के चुनाव में पार्टी को लोकसभा की 16 सीटों पर जीत मिली. इसके बाद कामराज पार्टी के विस्तार में जुट गए. इसी बीच 1975 में उनका निधन हो गया. उनके निधन के वक्त में देश में आंतरिक आपातकाल लगा हुआ था.

कामराज के जाने के बाद पार्टी की कमान मोरारजी देसाई के पास आ गई. 1977 में जब आपातकाल हटा तो मोरारजी ने पार्टी का जनता पार्टी में विलय करा लिया. चुनाव में जब जनता पार्टी को जीत मिली तो मोरारजी प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन कुछ ही सालों में उनकी सरकार गिर गई. इसके बाद जनता पार्टी में विभाजन का दौर शुरू हुआ.

जनसंघ के बदले बीजेपी और भारतीय क्रांति दल के बदले लोकदल का गठन हुआ, लेकिन उत्तराधिकारी न होने की वजह से कांग्रेस (ओ) की शाखा आगे नहीं बढ़ पाई.

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कांग्रेस (जगजीवन) को भी नहीं मिले उत्तराधिकारी

1981 में जगजीवन राम ने खुद की पार्टी बनाई. राम उस वक्त सासाराम से सांसद थे. जगजीवन राम की यह पार्टी शुरू में तो खूब सुर्खियां बटोरी, लेकिन उनके निधन के बाद पार्टी का आस्तित्व खत्म हो गया.

राम अपने जीते-जी पार्टी के भीतर किसी को उत्तराधिकारी घोषित नहीं कर गए. उनके मरने के बाद उनकी बेटी मीरा कुमार ने कांग्रेस का दामन थाम लिया, जिसके बाद यह पार्टी खत्म हो गई.

चंद्रशेखर की सजपा भी हो गई खत्म

साल 1990 में चंद्रशेखर ने इस पार्टी की स्थापान की थी. चंद्रशेखर भारत के प्रधानमंत्री थे. शुरुआती दौर में सजपा यूपी में प्रभावी थी. खासकर पूर्वांचल भाग में. चंद्रशेखर खुद इस पार्टी के सिंबल पर चुनकर कई दफे संसद पहुंचे.

चंद्रशेखर जब ढलान की ओर बढ़ने लगे तो सजपा में उनके उत्तराधिकारी की खोज होने लगी, लेकिन उन्होंने अपने जीते-जी इसका ऐलान नहीं किया.

चंद्रशेखर के निधन के बाद उनके बेटे नीरज शेखर जरूर राजनीति में आए, लेकिन सजपा की जगह उन्होंने सपा को तरजीह दी. नीरज वर्तमान में बीजेपी से राज्यसभा सांसद हैं. साल 2020 में सजपा का आस्तित्व खत्म हो गया.

वीपी के सामने जनता दल हो गया बेहाल

साल 1988 में वीपी सिंह ने इस पार्टी की स्थापना की थी. सिंह की इस पार्टी को 1989 के चुनाव में बड़ी जीत मिली. सिंह देश के प्रधानमंत्री भी बने. 1991 और 1996 में भी इस पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. 1996 और 1998 के बीच इस पार्टी के 2 नेता प्रधानमंत्री बने.

हालांकि, इसके बाद पार्टी में टूट शुरू हो गई. कोई ठोस उत्तराधिकारी न होने की वजह से पार्टी पहले 3 भागों में विभाजीत हुई. 2003 में पार्टी का आस्तित्व पूरी तरह से खत्म हो गया. आखिर में इसकी स्थापना करने वाले वीपी सिंह खुद जनमोर्चा में चले गए.

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नीतीश कुमार और नवीन बाबू क्या करेंगे?

वर्तमान में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर 2 ऐसी पार्टियां हैं, जिसके उत्तराधिकारी पर संशय बरकरार है. इनमें पहला नाम नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड है. नीतीश कुमार ने अब तक जेडीयू में उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की है. जेडीयू में उनके बेटे निशांत के भी राजनीति में आने की चर्चा वक्त-वक्त पर होती रही है, लेकिन अब तक नीतीश ने उनकी राजनीति एंट्री नहीं कराई है.

फिलहाल, जेडीयू में मनीष वर्मा के उत्तराधिकारी बनने की चर्चा है. हालांकि, अब तक के जो ट्रैक है, उसके मुताबिक इस बात की संभावनाएं कम है कि नीतीश अपने रहते किसी को उत्तराधिकारी घोषित करे.

नवीन पटनायक का भी वही हाल है. उन्होंने तो खुलकर कह दिया है कि मेरे जाने के बाद ओडिशा की जनता ही मेरा उत्तराधिकारी चुनेगी. नवीन बाबू की पार्टी में वर्तमान में प्रणब प्रकाश दास दूसरे नंबर के नेता हैं.

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