साल 1971 में पहली बार क्रीमी लेयर शब्द सत्तानाथन आयोग ने किया था.
सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की एक संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति/जनजाति के आरक्षण के लिए कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी दे दी है. इसके साथ ही संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बीआर गवई ने अपने फैसले में कहा कि राज्यों को एससी/एसटी में भी क्रीमी लेयर की पहचान कर उनको आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए. पीठ के दूसरे जज न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने भी इसका समर्थन किया.
उन्होंने कहा कि जिस तरह से ओबीसी कैटेगरी पर क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू होता है, उसी तरह से एससी/एसटी कैटेगरी में भी लागू किया जाना चाहिए. अब सवाल उठता है कि आखिर क्रीमी लेयर क्या है और ओबीसी आरक्षण में कब, कैसे और क्यों इसकी एंट्री हुई? आइए जानने की कोशिश करते हैं.
ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण का प्रावधान
देश में ओबीसी वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. इसके लिए सरकार की ओर से कुछ नियम बनाए गए हैं. इन नियमों के अनुसार, हर ओबीसी उम्मीदवार इस आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता है. इसके लिए ओबीसी वर्ग को क्रीमी और नॉन क्रीमी लेयर में बांटा जाता है. आरक्षण का लाभ नॉन क्रीमी ओबीसी अभ्यर्थियों को ही मिलता है.
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साल 1971 में पहली बार क्रीमी लेयर शब्द का इस्तेमाल
साल 1971 में पहली बार क्रीमी लेयर शब्द सत्तानाथन आयोग ने किया था. तब आयोग की ओर से निर्देश दिया गया था कि क्रीमी लेयर में आने वालों को सिविल सेवा के पदों में आरक्षण से बाहर रखा जाना चाहिए. उस वक्त सत्तानाथन समिति ने क्रीमी लेयर में आने वाले ओबीसी परिवारों की कुल स्रोतों से कुल सालाना आय एक लाख रुपए और उससे अधिक निर्धारित की थी.
2014 में इस राशि को संशोधित कर 2.5 लाख रुपये प्रति वर्ष कर दिया गया. साल 2008 में इसे 4.5 लाख, 2013 में बढ़ाकर 6 लाख और 2017 में इस राशि को 8 लाख रुपए सालाना कर दिया गया. यानी 8 लाख या उससे अधिक आय वाले ओबीसी परिवार क्रीमी लेयर के दायरे में आएंगे और उनको ओबीसी आरक्षणका लाभ नहीं मिलेगा.
इसलिए किया गया क्रीमी लेयर का प्रावधान
इसके साथ ही कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने यह भी निर्धारित किया था कि ओबीसी परिवारों के लिए आय सीमा में हर तीन साल में संशोधन किया जाएगा. यह और बात है कि 2017 में संशोधन के बाद से इसमें संशोधन नहीं किया गया. यही नहीं, साल 1992 में भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. तब इंदिरा साहनी के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आरक्षण बरकरार रखा गया था.
इसके साथ ही ओबीसी की क्रीमी लेयर के मानदंड तय करने के लिए सेवानिवृत्त जज आरएन प्रसाद की अगुवाई में एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी. इस समिति की ओर से दिए गए सुझावों पर 8 सितंबर 1993 को डीओपीटी ने कुछ रैंक/स्थिति/आय वालों की अलग-अलग श्रेणियों की लिस्ट बनाई थी. इस लिस्ट में शामिल लोगों के बच्चों को ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता. यह प्रावधान इसलिए किया गया था, ताकि जरूरतमंदों को ही आरक्षण का लाभ लेकर आगे बढ़ाया जा सके और सक्षम लोग इसके दायरे में न आएं.
इनको नहीं मिलता ओबीसी आरक्षण का लाभ
डीओपीटी की सूची के अनुसार, सालाना आठ लाख रुपए या इससे ज्यादा आय वाले ओबीसी परिवार का कोई सदस्य सरकारी नौकरी में है तो उसको क्रीमी लेयर की कैटेगरी में रखा जाता है. इसमें खेती से होने वाली आय को शामिल नहीं किया जाता है. इस नियम में सरकारी सेवा वाले किसी ओबीसी परिवार के बच्चे के लिए माता-पिता की रैंक का काफी महत्व होता है. यानी ऐसे बच्चों के लिए ओबीसी आरक्षण की सीमा उनके माता-पिता की रैंक के आधार पर तय होती है और वेतन से उनकी आय नहीं देखी जाती है. उदाहरण के लिए मान लीजिए कि अगर किसी ओबीसी अभ्यर्ती के माता-पिता में से कोई एक या दोनों संवैधानिक पद पर हों, तो उसको आरक्षण का फायदा नहीं मिलेगा.
संवैधानिक पदों में राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज, संघ लोक सेवा आयोग के चेयरमैन या सदस्य, राज्यों के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के साथ ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त शामिल हैं.
ग्रुप ए या बी की सरकारी नौकरी वालों के बच्चों को भी लाभ नहीं
किसी ओबीसी अभ्यर्थी की माता या पिता में कोई एक या दोनों सीधे ग्रुप-ए की सेवा में शामिल हुए हों अथवा दोनों ग्रुप-बी सेवा में हों तो उनको भी क्रीमी लेयर में रखा जाता है. माता-पिता या कोई एक 40 साल की उम्र से पहले पदोन्नति पाकर ग्रुप-ए में शामिल होते हैं तो भी उनके बच्चे क्रीमी लेयर में आते हैं. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू), बैंक, बीमा कंपनियों के अधिकारी, विश्वविद्यालयों के अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर के साथ ही किसी निजी कंपनी में उच्च अधिकारी के बच्चे भी क्रीमी लेयर में आते हैं.
अगर ओबीसी वर्ग के उम्मीदवार के परिवार का शहर में अपना घर हो, अच्छी आय के साथ अपनी जमीन हो, सेना में कर्नल, नौसेना-वायुसेना में इसी के समान रैंक के अधिकारियों के बच्चे भी क्रीमी लेयर में आते हैं.
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