
14 मार्च की तारीख चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग और रूस के प्रेसीडेंट पुतिन के लिए बहुत खास है.
रूस के रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने-अपने देश की सर्वोच्च सत्ता पर लंबे समय से काबिज हैं. साल 1999 में तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन का स्थान लेने के बाद 14 मार्च 2004 को पुतिन लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति बने और दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति न बनने की शर्त के बावजूद अब तक सत्ता पर काबिज हैं और 2036 तक पद पर बने रहने का रास्ता भी साफ कर लिया है. वहीं, पांच साल उप राष्ट्रपति रहने के बाद 14 मार्च 2013 को शी जिनपिंग चीन राष्ट्रपति बने और अब आजीवन पद पर बने रहने की व्यवस्था कर ली है.
दोनों ही राष्ट्रपति वर्ल्ड लीडर के तौर पर भी अपना रुतबा कायम कर चुके हैं. आइए जान लेते हैं कि इन दोनों नेताओं की उपलब्धियां और चुनौतियां क्या-क्या हैं?
पुतिन की 5 उपलब्धियां
1- देश का भरोसा जीता
रूसी राष्ट्रपति पुतिन यह अच्छे से जानते हैं कि जनमत में ही शक्ति समाहित होती है. इसलिए साल 2018 के चुनाव में 76 फीसदी वोट हासिल करने के साथ ही उन्होंने रूस की जनता का भरोसा जीतने में सफलता हासिल की तो यह तय हो गया कि जनता भी उनके फैसलों पर पूरा विश्वास जताती है. अब तो संभावना जताई जा रही है कि पुतिन की साख ऐसे ही बनी रही तो सोवियत संघ पर लगभग तीन दशक राज करने वाले स्टालिन से आगे हो जाएंगे.
2-पूर्व केजीबी अफसर होने का फायदा
पुतिन अपने देश की खुफिया एजेंसी केजीबी के अधिकारी रहे हैं और अपने देश को इक्कीसवीं सदी में ले जाने के लिए रूस ने केजीबी के पूर्व अधिकारियों को ही चुना था. उन्हीं अफसरों में से एक पुतिन भी थे. कुख्यात केजीबी मानती रही है कि सोवियत संघ का विघटन पश्चिमी देशों के गोपनीय अभियानों के कारण ही हुआ था. इसलिए पूर्व केजीबी अधिकारी पुतिन अपने देश का पुराना गौरव लौटाने की कोशिश करते दिखते हैं और इसमें सफल भी हो रहे होते हैं.

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन.
3- रूस का गौरव बढ़ाया
पुतिन साल 2000 में रूस के राष्ट्रपति बने तब आर्थिक रूप से देश कमजोर हो चुका था. सामरिक रूप से भी रूस की स्वीकार्यता कम हो रही थी. रूस को अमेरिका क्षेत्रीय शक्ति तक कहने लगा था. हालांकि, पुतिन ने रूस में आर्थिक के साथ ही साथ राजनीतिक सुधार किए और विश्व स्तर पर रूस के गौरव को साहसिक रूप से लौटाया.
4- पूंजीपतियों के चंगुल से मुक्त कराया
राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के कार्यकाल में रूस का समाजवादी ढांचा बुरी तरह से बिखर कर पूंजीवाद के कब्जे में चला गया था. सत्ता पर भी पूंजीपतियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था. ऐसे में पुतिन ने रूस में कुलीन वर्ग को व्यावसाय की छूट तो दी, पर इस बात का ध्यान रखा कि देश के राजनीतिक मामलों में उनका दखल न हो.
5- पांच सागरों से जुड़े देशों से बेहतर संबंध
रूस के दुनिया पर प्रभाव और रणनीतिक में पांच सागर महत्वपूर्ण हैं. मास्को को वैसे भी कैस्पियन सागर, काला सागर, बाल्टिक, श्वेत सागर और लाडोगा झील का पत्तन कहा जाता है. इनसे लगते देशों के साथ पुतिन ने रूस के बेहतर संबंध बनाए और इसके प्रभाव से रूस वैश्विक स्तर पर प्रभुत्व स्थापित करने में सफल रहा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन
पुतिन के लिए चुनौतियां भी कम नहीं
1- मध्य पूर्व में फिर से प्रभुत्व स्थापित करना होगा
रूस का मध्य पूर्व में सीरिया पर हस्तक्षेप जगजाहिर है. पुतिन अब तक यह दिखाते रहे हैं कि रूस को भरोसे में लिए बिना क्षेत्र की समस्याओं को हल नहीं किया जा सकता है. हालांकि, सीरिया में तख्तापलट से पुतिन को करारा झटका लगा है. सीरिया के राष्ट्रपति बशीर अल असद के देश छोड़ कर मास्को भागने के बाद इस क्षेत्र पर रूस का प्रभुत्व फिर से स्थापित कर पाना पुतिन के लिए एक बड़ी चुनौती है.
2- नाटो से पार पाना होगा
साल 2014 में रूस ने यूक्रेन में अलगाववादी विद्रोहियों का समर्थन किया तो विश्व स्तर पर तनाव देखने को मिला. पुतिन के इस कदम के जवाब में पूर्वी यूरोप के बाल्टिक क्षेत्र में नाटो ने चार हजार अतिरिक्त सैनिक तैनात कर दिए थे. बाद में रूस-यूक्रेन युद्ध में भी नाटो ने यूक्रेन की सहायता की. ऐसे में नाटो को लेकर मुखर पुतिन के लिए उससे पार पाना होगा. हालांकि, हाल के दिनों में खुद नाटो के बीच सबकुछ ठीक नहीं दिख रहा. फिर नाटो भी यही चाहता है कि यूरोप किसी तरह के सामरिक संघर्ष का केंद्र न बने.
3- वैश्विक अस्थिरता का कारण न बन जाएं
पुतिन की रूस में मजबूती का एक अहम कारण राष्ट्रवाद है और इसी के कारण दुनिया के दूसरे देशों में भी राजनीतिक सत्ता मजबूत हुई है. इसके बावजूद अमेरिका के विरोध के चलते रूस उत्तर कोरिया, ईरान और चीन जैसे देशों के करीब आता दिख रहा है. यह नजदीकी भविष्य में रूस के लिए घातक हो सकती है, क्योंकि उत्तर कोरिया और चीन आदि वैश्विक अस्थिरता को लगातार बढ़ावा दे रहे हैं. ऐसे में पुतिन को ध्यान रखना होगा कि कहीं वह वैश्विक अस्थिरता का कारण न बन जाएं.
4- चीन से निपटना होगा
हाल के सालों में भले ही रूस और चीन करीब दिखते हों पर चीन 1960 के दशक में सोवियत संघ को अपना सबसे दुश्मन मानता था. चीन को दबाव में रखने के लिए ही रूस भारत से दोस्ती रखता चला आया और इसमें कामयाब भी रहा. हालांकि, अब चीन तेजी से विस्तारवादी नीतियों को बढ़ावा दे रहा है और गैर जवाबदेह वैश्विक व्यवहार की ओर उन्मुख है. ऐसे में पुतिन को अपनी वैश्विक जिम्मेदारी को निभाने के लिए चीन की चालों से भी निपटना होगा.
5- यूक्रेन युद्ध से सम्मानजनक रूप से निकलना होगा
साल 2014 से अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन से भिड़े पुतिन ने अंतत: फरवरी 2022 में उस पर हमला कर दिया था. इस युद्ध का अब तक कोई परिणाम नहीं निकला है और किसी न किसी रूप से पुतिन को इसे खत्म करने की चुनौती है. सम्मानजनक रूप से यूक्रेन युद्ध विराम से ही पुतिन दुनिया के सामने सशक्त रूप से सामने आएंगे.

शी जिनपिंग
शी जिनपिंग की उपलब्धियां
1- सत्ता और पार्टी दोनों पर कब्जा
शी जिनपिंग को साल 2012 में हू जिंताओ के उत्तराधिकारी के रूप में उनकी पार्टी का महासचिव नियुक्त किया जाना एक बड़ी उपलब्धि थी. इसके चार महीने बाद मार्च 2013 में ही वह पहली बार चीन के राष्ट्रपति बन गए. यह उनके लिए एक और बड़ी उपलब्धि थी. इसके साथ ही वह सत्तारूढ़ पार्टी और देश की सत्ता दोनों के मुखिया बन गए.
2- आजीवन रहेंगे राष्ट्रपति
चीनी क्रांति के अगुवा और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के जनक माओ-त्से-तुंग ने साल 1949 से 1976 तक अपने देश का नेतृत्व किया था. माओ को ही आधुनिक चीन का जनक माना जाता है. उनके बाद अब शी जिनपिंग ही शायद ऐसे नेता होंगे जो उनके इस रिकॉर्ड को तोड़ पाएंगे, क्योंकि उन्होंने आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का अधिकार हासिल कर लिया है.
3-चीन की गतिविधियां गुप्त कीं
चीन में कुछ भी हो जाए, दुनिया को उतना ही पता चलता है, जितना वहां की सरकार चाहती है, क्योंकि शी जिनपिंग ने राष्ट्रपति बनते ही अपने देश में माहौल एकदम से बदल गया. चीन में शी ने भ्रष्टाचार के विरोध में व्यापक अभियान चलाया और इंटरनेट की स्वाधीनता खत्म कर दी.
4-सेना को मजबूत बनाया
अपने देश की सीमाओं की रक्षा और अपनी विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ाने के लिए शी जिनपिंग ने सत्ता संभालने के साथ ही सेना का खर्च काफी बढ़ा दिया. इससे वहां की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी काफी मजबूत हुई और कई देशों को आंखें दिखाने लगी.
5-पड़ोसी देशों पर बनाया दबाव
शी जिनपिंग अपनी विस्तारवादी नीति के तहत पड़ोसी देशों पर दबाव बनाने में कामयाब रहे हैं. कभी कर्ज देकर तो कभी निवेश के नाम पर मदद कर वह पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश से लेकर नेपाल तक को अपने पक्ष में करते दिख रहे हैं. पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान स्पेशल इकोनॉमिक जोन से लेकर वन बेल्ट वन रोड जैसी शी की महत्वाकांक्षी परियोजनाएं इसी का एक नमूना हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग. (फाइल फोटो)
शी जिनपिंग के सामने चुनौतियां
1- विस्तारवादी नीति से बचना होगा
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग बुरी तरह से विस्तारवादी नीति को बढ़ावा दे रहे हैं और इसके लिए किसी हद तक जा सकते हैं. इसी के कारण चीन ने भारतीय क्षेत्रों और दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रों पर कब्जा किया है. ताईवान पर शिकंजा कस रहे हैं. जिनयांग और हॉन्गकॉन्ग में मानवाधिकारों का उल्लंघन खुलेआम हो रहा है. उन्होंने अपने पड़ोसी देशों के साथ ही यूरोप और अमेरिका को चौकन्ना कर दिया है.
2- सेना में सुधार की जरूरत
शी जिनपिंग की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी खुद को बड़ा दिखाने के चक्कर में दूसरे देशों को आंखें ही नहीं दिखाते, बल्कि उनका मजाक भी उड़ाती है. यह अलग बात है कि खुद चीन की आर्मी स्कैंडल, भ्रष्टाचार और राजनीतिक प्रभाव से घिरी हुई है. शी जिनपिंग को इस पर लगाम कसनी होगी और अपनी फोर्सेज में फिर से आत्मविश्वास लाना होगा.
3- पीएलए भी बड़ी चुनौती
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की बढ़ती ताकत और महत्वाकांक्षा भी शी जिनपिंग के लिए एक बड़ी चुनौती है. कहीं ऐसा न हो कि आजीवन चीन की सत्ता पर काबिज रहने की व्यवस्था कर चुके शी जिनपिंग को सेना ही पदच्युत न कर दे. इसका एक उदाहरण हाल ही में देखने को मिला था, जब पीएलए डेली में प्रकाशित एक आर्टिकल में सामूहिक नेतृत्व की वकालत की गई थी.
4- विपक्ष लगातार मजबूत हो रहा
शी जिनपिंग जब सत्ता में आए थे तो उन्होंने जोर दिया था कि देश के सभी फैसले लेने का अधिकार एक अथॉरिटी के पास होना चाहिए. इसका अब पीएलए विरोध कर रही है. ऐसी स्थिति में चीन में विपक्ष मजबूत हो रहा है तो वैश्विक स्तर पर कई देश इसका फायदा उठाने की ताक में हैं. ऐसे में देश की आंतरिक समस्या को दुनिया के सामने आने से शी कैसे रोकेंगे, यह भी एक चुनौती है.
5- चीनी राष्ट्रपति का देश में विरोध
हॉन्गकॉन्ग के एक स्कॉलर हैं Willy Wo-Lap Lam. वह अमेरिका के The Jamestown Foundation think-tank के लिए लिखते हैं. उनका मानना है कि शी जिनपिंग वास्तव में विपत्ति में हैं. रिटायर पोलितब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों से लेकर मिलिटरी के कुछ टॉप लोग और चीन में मध्य वर्ग अब उनके विरोध में खड़ा हो रहा है. ऐसे में आर्थिक से लेकर विदेश नीतियां तय करने तक में शी जिनपिंग के सामने चुनौतियां आ रही हैं.
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