एनपीएस और यूपीएस.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शनिवार (24 अगस्त) को एकीकृत पेंशन योजना (UPS) को मंजूरी दे दी, जो सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद सुनिश्चित पेंशन प्रदान करेगी. सरकार की घोषणा के अनुसार यह योजना 1 अप्रैल, 2025 से प्रभावी होगी. लोकसभा चुनाव 2024 के बाद सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार की केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए यह सबसे बड़ी योजना है. यह योजना हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव से पहले लागू की गयी है. इस कारण इसका राजनीतिक महत्व भी है.
पेंशन स्कीम के तहत इसके पहले एनपीएस और ओपीएस लागू थी. सरकारी कर्मचारियों ने नई पेंशन योजना (NPS) के प्रति भारी विरोध के किया था, जिसका विपक्ष ने राजनीतिक रूप से फायदा उठाया है. हिमाचल प्रदेश (2023 में), राजस्थान (2022 में), छत्तीसगढ़ (2022 में) और पंजाब (2022 में) जैसे विपक्ष शासित राज्यों ने पुरानी पेंशन योजना (OPS) को वापस लागू कर दिया था.
UPS में क्या-क्या है?
महत्वपूर्ण बात यह है कि यूपीएस सेवानिवृत्त लोगों को एनपीएस के विपरीत एक निश्चित पेंशन राशि का वादा किया गया है. केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार, यूपीएस में पांच प्रमुख विशेषताएं हैं:
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सुनिश्चित पेंशन: यह कर्मचारी के औसत मूल वेतन का 50 प्रतिशत होगा, जो 25 वर्ष की न्यूनतम योग्यता सेवा के लिए सेवानिवृत्ति से पहले अंतिम 12 महीनों में प्राप्त होगा. कम सेवा अवधि के लिए, न्यूनतम 10 वर्ष की सेवा तक, राशि आनुपातिक रूप से कम होती जाएगी.
सुनिश्चित न्यूनतम पेंशन: केंद्र सरकार के कर्मचारियों केन्यूनतम 10 साल की सर्विस के बाद अवकाश ग्रहण करने पर न्यूनतम 10,000 रुपये प्रति महीने का न्यूनतम पेंशन देने की योजना है.
सुनिश्चित पारिवारिक पेंशन: सेवानिवृत्त व्यक्ति की मृत्यु होने पर, कर्मचारी का निकटतम परिवार उसके द्वारा अंतिम बार प्राप्त पेंशन का 60% पाने का पात्र होगा.
मुद्रास्फीति सूचकांक: उपर्युक्त तीनों पेंशनों पर महंगाई राहत होगी, जिसकी गणना औद्योगिक श्रमिकों के लिए अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर की जाएगी, जैसा कि सेवारत कर्मचारियों के मामले में होता है.
सेवानिवृत्ति पर एकमुश्त भुगतान: यह ग्रेच्युटी के अतिरिक्त होगा, और प्रत्येक छह महीने की सेवा के लिए सेवानिवृत्ति की तिथि पर मासिक पारिश्रमिक (वेतन + महंगाई भत्ता) के 1/10वें भाग के रूप में गणना की जाएगी.
NPS को 2004 में क्यों शुरू किया गया था?
1 जनवरी, 2004 को एनपीएस ने भारत की पेंशन नीतियों में सुधार के केंद्र के प्रयास के तहत ओपीएस की जगह ली थी. इस तिथि के बाद सरकारी सेवा में शामिल होने वालों को एनपीएस के तहत रखा गया था. ओपीएस के तहत, सरकारी कर्मचारियों (केंद्र और राज्य दोनों में) को पेंशन अंतिम प्राप्त मूल वेतन (जैसा कि यूपीएस में है) के 50 प्रतिशत पर तय की गई थी. इसके अलावा, जीवन यापन की लागत में लगातार वृद्धि के लिए समायोजित करने के लिए मूल वेतन के प्रतिशत के रूप में गणना की गई डीए होगी.
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अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने एनपीएस की शुरुआत की थी, क्योंकि ओपीएस के साथ एक बुनियादी समस्या थी – यह वित्तपोषित नहीं था यानी पेंशन के लिए विशेष रूप से कोई कोष नहीं था.
NPS क्या है?
एनपीएस दो तरह से मौलिक रूप से अलग था.सबसे पहले, इसने सुनिश्चित पेंशन को खत्म कर दिया. दूसरा, इसे कर्मचारी खुद ही वित्तपोषित करेगा और सरकार भी उतना ही योगदान देगी. परिभाषित अंशदान में कर्मचारी द्वारा मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 10 प्रतिशत (2019 में बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया गया) और सरकार द्वारा मिलान करने वाला अंशदान शामिल था. एनपीएस के तहत व्यक्ति कम जोखिम से लेकर उच्च जोखिम तक की कई योजनाओं में से चुन सकते हैं, और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों के साथ-साथ निजी कंपनियों द्वारा प्रवर्तित पेंशन फंड मैनेजर भी इसमें शामिल हैं और यही इसके विरोध का आधार बना था.
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