
फेंटालिन को लेकर चीन पर सख्त हुए ट्रंप
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वे चीन के साथ एक ऐसा समझौता करना चाहते हैं जिसमें फेंटालिन बनाने और अमेरिका में भेजने वाले लोगों को सीधे मौत की सजा दी जाए. उनका दावा है कि चीन की कंपनियां जानबूझकर ऐसी केमिकल्स स्पलाई करती है जिससे ये जानलेवा ड्रंग बनती है. ट्रंप ने कहा है कि उन्होंने चीन पर जो 20 फीसदी टैरिफ लगाया था वो असल में फेंटालिन पेनल्टी है.
ये पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने चीन पर ड्रग संकट को हवा देने का आरोप लगाया हो. लेकिन इस बार मामला और बी गंभीर है. ट्रंप का कहना है कि अगर चीन नहीं सुधरा तो अमेरिका अकेले ही इस ड्रग के खिलाफ बड़ा एक्शन लेगा. ट्रंप का दावा है कि उनके कार्यकाल में चीन के साथ इस पर एक डील होने ही वाली थी, लेकिन चुनाव चोरी के चलते वो मुमकिन नहीं हो पाया. अब वे दोबारा सत्ता में आने पर फेंटानिल पर युद्धस्तर पर कार्रवाई की बात कर रहे हैं. लेकिन फेंटानिल है क्या? क्यों इतनी खतरनाक है? कैसे ये छोटे-छोटे पार्सलों में चीन से अमेरिका पहुंचती है और हर साल हज़ारों जानें ले लेती है?
फेंटानिल: पेन्सिल की नोक जितनी डोज़, और मौत तय
फेंटानिल एक सिंथेटिक ओपिऑइड (नशीली दवा) है, जिसे 1960 के दशक में मेडिकल पेनकिलर के तौर पर मंज़ूरी मिली थी. डॉक्टर ऑपरेशन के दौरान इसकी सीमित डोज का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन गड़बड़ वहां से शुरू होती है जहां ये दवा मेडिकल सिस्टम से निकलकर इल्लीगल मार्केट में पहुंच जाती है. ये दवा इतनी जहरीली होती है कि अगर इसकी मात्रा दो मिलिग्राम भी हो-मतलब एक पेंसिल की नोक जितनी तो इंसान की जान जा सकती है. यही वजह है कि अमेरिका में इससे मौतों का आंकड़ा हर साल नई ऊंचाई छू रहा है. 2022 और 2023 में ही 1 लाख से ज्यादा लोगों की मौत ऐसी ड्रंग्स से हुई जिनमें फेंटालिन मिला हुआ था.
ये सिर्फ नशा नहीं, अमेरिका के लिए महामारी है
CDC (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल) के अनुसार, अमेरिका में 2022 में 74,000 लोग सिर्फ सिंथेटिक ओपिऑइड्स जैसे फेंटानिल से मरे. ये आंकड़ा वियतनाम, इराक और अफगानिस्तान के तीनों युद्धों में मारे गए अमेरिकियों से भी ज़्यादा है. 2012 के बाद से ये ड्रग अमेरिकी युवा पीढ़ी में सबसे बड़ी मौत की वजह बन गई है. 25 से 34 साल के लोगों की मौतों में एक-तिहाई फेंटानिल से हुई. और सबसे डरावनी बात ये है कि कई बार लोग गलती से भी इसका शिकार हो जाते हैं. उन्हें लगता है वे ज़ेनैक्स, ऑक्सीकोडोन जैसे ड्रग्स ले रहे हैं, लेकिन उसमें फेंटानिल मिला होता है.

अमेरिका में फेंटालिन से जाती है हजारों जानें
कैसे बनती है फेंटानिल और कहां से आती है?
फेंटानिल को लैब में केमिकल्स को मिलाकर बनाया जाता है. यानी इसे पौधों से नहीं, बल्कि सिंथेटिक तरीके से तैयार किया जाता है. इसके लिए ज़रूरी केमिकल्स का सबसे बड़ा सप्लायर है चीन. हालांकि चीन ने 2019 में फेंटालिन को कंट्रोल्ड ड्रग्स की लिस्ट में डाला था लेकिन इससे जुड़े बहुत से केमिकल्स अभी भी अनकंट्रोल्ड है. कई बार इन केमिकल्स का इस्तेमाल दूसरे वैध कामें में भी होता है इसलिए कंपनिया आसानी से बच निकलती है. अमेरिकी जांच रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन की कुछ कंपनियां जानते हुए भी ऐसे केमिकल्स बेचती हैं जो फेंटानिल बनाने में इस्तेमाल होते हैं. इसके बाद ये केमिकल्स मेक्सिको में भेजे जाते हैं, जहां अंडरग्राउंड लैब में ड्रग्स तैयार होती हैं. वहां से तस्करी के जरिए ये ड्रग अमेरिका पहुंचती है.
कैसे घुसती है अमेरिका में ये जहर?
अब यहां आती है स्मार्ट स्मगलिंग की कहानी. चीन से सीधे अमेरिका में या फिर मेक्सिको के रास्ते ये ड्रग्स छोटे-छोटे पार्सलों में छिपाकर भेजे जाते हैं. इसका तरीका है मास्टर कार्टन शिपिंग. मतलब ये कि छोटे-छोटे बॉक्सेस को बड़े बॉक्स में पैक किया जाता है. ई-कॉमर्स और इंटरनेशनल शिपिंग में ये आम तरीका है लेकिन स्मगलर्स ने इसका बखूबी इस्तेमाल शुरू कर दिया है.
Reuters की एक रिपोर्ट कहती है कि इसके अलावा, अमेरिका में एक नियम है de minimis rule, जिसके तहत अगर कोई पार्सल $800 से कम का है तो उस पर न टैक्स लगता है, न ड्यूटी और न ही कड़ी जांच. स्मगलर्स इसी का फायदा उठाकर जहर से भरे पार्सल अमेरिका भेजते हैं.
समस्या हल करने के लिए क्या किया गया है?
अमेरिका में ड्रग्स पर काबू पाने की सरकारी कोशिशें अक्सर नाकाम रही हैं. पहली बार 1890 में मॉर्फिन और अफीम पर टैक्स लगाया गया, लेकिन इसका उलटा असर हुआ. 1890 से 1902 के बीच कोकेन का इस्तेमाल 700% तक बढ़ गया. कोकेन इतना लोकप्रिय था कि इसे कोका-कोला जैसे ड्रिंक्स में भी मिलाया जाता था.
इसके बाद 1909 में अफीम स्मोकिंग पर बैन लगा, 1937 में मैरीजुआना टैक्स एक्ट आया और 1970 में कंट्रोल्ड सब्सटेंस एक्ट लागू हुआ. 1971 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने वॉर ऑन ड्रग्स का ऐलान किया, और 1986 में अमेरिकी कांग्रेस ने $1.7 अरब की लागत से एंटी-ड्रग अब्यूज़ एक्ट पास किया. इन सख्त कानूनों के बावजूद, ड्रग्स की सप्लाई और इस्तेमाल पर खास असर नहीं पड़ा, बल्कि इससे कई समुदायों, खासकर रंगभेद झेल रहे लोगों को भारी नुकसान हुआ.
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