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संघी सिफारिशों की धूल झड़ाई

तबादला सिफारिशों की पेंडेंसी पर कहासुनी अभी भी जारी है। बीते दिनों ही टॉप लेवल मीटिंग तो आप सब जानते ही हैं। इसमें सरकार और संगठन पर संघ नेताओं ने सीधी-सीधी बात की गई थी। बातचीत में यह ज़िक्र भी आया कि संघ के पदाधिकारियों की तरफ से की गई सिफारिशों पर धूल पड़ रही हैं। कुछ दस्तावेज मंत्रियों के दफ्तर में पड़े हुए हैं तो कुछ अफसरों के टेबल पर। तबादले खुलने के दौरान किए गए ये सिफारिशी लैटर्स पर लगातार यह आश्वासन दिया जा रहा है कि जल्द ही आदेश निकाला जाएगा। यह बात जब बैठक में सामने लाई गई तब इसे गंभीरता से लिया गया है। ऊपर से अधिकारियों को सीधे लहजे में सवाल पूछा गया कि ऐसा आखिर हुआ क्यों? जवाब की प्रतीक्षा करने की बजाय अब सीधे आदेश निकालने के निर्देश दे दिए गए हैं। इसके बाद मंत्रालय में ऐसे सभी सिफारिशों की तलाश शुरू हो गई है। जिस तेजी से काम चल रहा है उससे लगता है कि इसी महीने इस शिकायत को खत्म करने का काम पूरा हो जाएगा। इसलिए जो लोग संघ नेताओं की चौखट पर पहुंचे थे, उनके लिए अच्छे दिन जल्द ही आने वाले हैं। सभी दफ्तरों में इन आदेशों को आगे बढ़ाने का काम शुरू हो गया है। उम्मीद की जा रही है कि अप्रैल का दूसरा पखवाड़ा कई परिवारों के चेहरे पर खुशियां ला सकता है।

लीकेज प्रूफ 9 सिविल लाइंस

9 सिविल लाइंस, जी हां यह कमलनाथ के बंगले का ही पता है। कांग्रेस में रणनीति का पूरा कामकाज यहीं से होता है। यहां बैठकें भी होती हैं और वन टू वन चर्चा भी। आधे घंटे में हॉल की मीटिंग खत्म होती है और वन टू वन मीटिंग में 15 से 20 मिनिट एकांत चर्चा होती है। बैठक कमलनाथ ही लेते हैं। कमलनाथ अपना ज्यादा ध्यान वन टू वन मीटिंग में दे रहे हैं। इन मीटिंग्स में क्या हो रहा है यह केवल उसी को पता है, जो इसमें शामिल है। कमलनाथ के बेहद करीबियों के अलावा अन्य कांग्रेसी को यह भी पता नहीं होता है कि मीटिंग किसकी और क्यों हो रही है। हॉल की मीटिंग में भोपाल के किसी नेता को शामिल नहीं किया जाता है। करीबियों को पता है कि उनका दायरा कहां तक है। इसलिए जिस जगह जाने के निर्देश नहीं हो वहां फटकते भी नहीं हैं। कांग्रेस में यह परंपरा से विपरीत है, लेकिन इस 9 सिविल लाइंस में हो यही रहा है। बाहर क्या संदेश देना है, इसका भी एक प्रॉपर सिस्टम है। तस्वीरें भी नापतौल कर साझा की जा रही हैं। जो मिलना चाहता है उसके मुलाकात का पूरा ध्यान रखने के लिए एक प्रॉपर सिस्टम तैयार किया गया है। प्रवक्ताओं और हर जगह दिखाई देने वाले नेता भी इन दिनों इस सिस्टम का पालन कर रहे हैं। यह सारे इनपुट्स मिला दिए जाएं तो 9 सिविल लाइंस को एक लीकेज प्रूफ बंगला बनाने की दिशा में काम हो गया है। यहां की बातों का बाहर आना लगभग नामुमकिन है। लेकिन कमलनाथ उन कांग्रेसियों से कैसे निपटेंगे जो हर जगह दिखाई देने की होड़ में लगे रहते हैं।

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विधायक का रिपीट आयोजन

इन दिनों प्रदेश भर में धार्मिक आयोजनों और कथाओं की बाढ़ सी आ गई है। नवरात्रि और रामनवमी के दौरान कुछ लोगों ने बड़े बड़े आयोजन किए। सिलसिला अब तलक जारी है। ऐसा ही एक आयोजन महाकौशल में हो गया। आयोजन ज़बरदस्त हुआ लेकिन इसमें इलाके के दिग्गज विधायकजी की भूमिका नदारद रही इसलिए चाहकर भी वे इसका क्रेडिट नहीं ले सके। नेताजी की भूमिका के बगैर हुए भव्य आयोजन का क्रेडिट उनके विरोधी भी लेने की कोशिश कर रहे हैं। अब विधायक पर ज़बरदस्त दबाव आ गया है कि यही धार्मिक आयोजन पूरी तरह उनकी देखरेख में एक बार फिर रहे। मज़े की बात यह है कि इसके लिए भी विधायक उन्हीं पर दबाव बना रहे हैं, जो यही आयोजन इस इलाके में करा चुके हैं। अब आयोजकों पर दोहरी मार पड़ने के आसार हैं। दबंग विधायक को इनकार करने के लिए आयोजक तरह-तरह के बहाने बना चुके हैं, जिसमें से एक भी कारगर नहीं हो पाया है। चुनाव करीब आ रहे हैं, विधायक को अपने रसूख की चिंता है इसलिए दबाव लगातार बढ़ाया जा रहा है।

वीकेंड पर पहुंच जाते हैं इंदौरी ठिए

एक बार जो इंदौर रह गया, वह उसे छोड़ नहीं पाता है। सरकारी नौकरी में रहते हुए इंदौर से कहीं तबादला हो जाए तो कुछ किया ही नहीं जा सकता है। लेकिन सरकारी अफसरों ने इसका तोड़ भी निकाल लिया है, वे प्रदेश में जहां भी तैनात हों, वीकेंड इंदौर में ही मनाया जाता है। बड़े अफसर अक्सर वीकेंड पर इंदौर की सीक्रेट विजिट करते हैं और सोमवार को रीफ्रेश होकर अपने कामकाज में जुट जाते हैं। कोरोना के पहले तो यह यदाकदा ही होता था, लेकिन सरकार के फाइव डे वर्किंग फॉर्मूले के बाद यह काम और आसान हो गया है। अब आलम यह है कि इंदौर से ग्वालियर-चंबल ट्रांसफर हुए अफसर भी वीकेंड पर इंदौर पहुंच जाते हैं। आईएएस अफसरों से ज्यादा आईपीएस अफसरों में इंदौरी के लिए क्रेजिनेस ज्यादा है। इंदौरी दोस्त-यार ही ऐसे हैं जिनकी महफिलें एक बार फिर जिंदादिल बना देती है। इंदौरी तो आवभगत के लिए जाने ही जाते हैं। अक्सर फोन लगाकर इंदौर आने का मानमनौवल करते ही रहते हैं। अफसर भी आग्रह ठुकरा नहीं पाते हैं। सारा बंदोबस्त इंदौरी ही करते हैं। दो दिन की रीफ्रेशिंग पार्टीज का अंदाज़ ही कुछ ऐसा होता है कि फ्रेशनेस दुनिया में जहां भी हो, अफसर के पास खिंची चली आती है। कभी सोमवार को आपके जिले के साहब भी रीफ्रेश देखें तो वजह आप समझ जाइएगा।

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‘गोलू’ का काम निखारेंगी ‘शोभा’

पीसीसी में फिर शोभा बढ़ने वाली है। जी हां, बीते चुनाव में मीडिया कमेटी के चेयरमेन के तौर पर तैनात रही शोभा ओझा की सक्रियता अब पीसीसी में देखने को मिलने वाली हैं। उनके लिए चैंबर की तलाश पूरी हो गई है। फिलहाल शोभा ओझा कांग्रेस को मोर्चा संगठन के बीच समन्वय का काम सौंपा है। बीते विधानसभा चुनाव में उन्होंने कमलनाथ का पूरा मीडिया मैनेजमेंट देखा। उनकी मीडिया में अपनी टीम है। इस बार वे बड़ी जिम्मेदारी के साथ पीसीसी में बैठने वाली हैं। खबर यह भी है कि सुनील कानूगोलू की एजेंसी के साथ तालमेल बैठाकर उन्हें लागू करने की जिम्मेदारी भी शोभा ओझा के पास ही रहेगी। मैडम अपनी तेजतर्रार शैली के लिए जानी जाती हैं। उनके लिए कक्ष भी बढ़िया तलाशा गया है। सुनील कानूगोलू प्रशांत किशोर की टीम में रहे हैं। अब वे कांग्रेस के साथ चुनावी रणनीति पर काम कर रहे हैं। पहले यह कक्ष मीडिया कमेटी की वजह से गुलज़ार था। मीडिया कमेटी के बेसमेंट में शिफ्ट होने के बाद यहां फैला सूनापन खत्म करने का दारोमदार शोभा ओझा पर रहेगा।

भाजपाई पंडितजी कांग्रेसियों की पसंद

टीवी बहस में एक दूसरे को लताड़ने वाले प्रवक्ताओं के बीच एक दिलचस्प चर्चा सुनाई दे रही हैं। भाजपा के एक प्रवक्ता पंडितजी के प्रति कांग्रेस के प्रवक्ता सहानुभूति दिखाते नजर आ रहे हैं। दरअसल, पंडितजी रोजाना किसी न किसी चैनल पर बहस करते देखे तो जाते ही हैं। बीजेपी दफ्तर में सक्रिय रूप से नियमित आने वाले प्रवक्ताओं में से भी एक हैं। यही नहीं, उनकी सक्रियता नरेंद्र सिंह तोमर के प्रदेश अध्यक्ष के पहले कार्यकाल के दौरान से देखी जा रही है। इसी वजह से तब से अब तक निगम मंडल के हर दावेदारों में उनका नाम लिया ही जाता है। एक बार तो लाल बत्ती तय भी हो गई थी, लिस्ट में नाम था लेकिन वक्त से पहले नाम सार्वजनिक हो गया और पार्टी में ही उनके विरोधियों ने नाम कटवा दिया। इस बार की सूची में भी अब तक पंडितजी का नाम नहीं आया है। लिहाजा हर टीवी बहस में जब भी चर्चा होती है, पंडितजी की 18-20 साल की सक्रियता के बावजूद लालबत्ती से महरूम होने के घाव पर मरहम लगाते नजर आते हैं। पंडित जी भी यह कह कर लगातार पार्टी को अब भी बचा रहे हैं कि मेरे बारे में मेरी पार्टी चिंता करती है, आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। कहने की बात और है, लेकिन पंडितजी का काम अब तक नहीं हो पाया है। दर्द अब भी कायम है।

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दुमछल्ला…

बीते कुछ महीनों से इंदौर और मालवा के नेताओं की दिलचस्पी स्क्रैप बिजनेस में ज्यादा दिखाई दे रही है। कई नेताओं ने कबाड़ के जरिए अपने भविष्य को सुनहरा करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। यह ऐसा धंधा है, जिसमें केवल हाथ डालने की ही देर है। बाकी सब काम कारोबारियों की चैन कर देती है। इंदौर समेत मालवा के कई नेताओं ने पीथमपुर की बंद हुई फैक्ट्रियों पर निगाह डाल दी है। इन बंद युनिट्स के ज़रिए स्क्रैप बिजनेस में कदम रखा गया है। इंदौर के कई लीडर इन दिनों पीथमपुर की तरफ रुख करते हुए दिखाई देने लगे हैं। इसके जरिए भारी मुनाफा कमाया जा रहा है। एक नेताजी तो इतने फल-फूल गए हैं कि वे चुनावी तैयारी में भी जुट गए हैं। फिज़ूल के कबाड़ से जीवन में बहार लाने की तैयारी है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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