बेटे तेजस्वी के साथ लालू यादव
सत्ता वापसी की कवायद में जुटे लालू यादव ने 18 जनवरी को पटना के एक निजी होटल में राष्ट्रीय जनता दल की अहम बैठक बुलाई है. इस बैठक के लिए लालू यादव ने सभी बड़े नेताओं को बुलाया है. चुनावी साल होने की वजह से इस बैठक को लेकर दिल्ली से पटना तक सियासी गहमागहमी है.
बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभा की 243 सीटों के लिए चुनाव होने हैं. जहां आरजेडी गठबंधन का मुख्य मुकाबला एनडीए से होगा. आरजेडी के साथ वर्तमान में कांग्रेस, वीआईपी, माले और सीपीएम-सीपीआई जैसी पार्टियां है.
पहले जानिए बैठक अहम क्यों?
बिहार में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं, जहां लालू सत्ता की वापसी में जुटे हैं. बैठक जिस अंदाज में बुलाई गई है, उसकी भी चर्चा है. 2015 में भी लालू यादव ने पटना के इसी होटल में आरजेडी की बैठक बुलाई थी. उस वक्त सियासी गलियारों में लालू यादव के उत्तराधिकारी का सवाल सुर्खियों में था.
बैठक के शुरू होते ही मधेपुरा के तत्कालीन सांसद पप्पू यादव ने उत्तराधिकारी का मुद्दा छेड़ दिया, जिस पर लालू ने खुलकर कहा कि पिता की सियासी विरासत बेटे को ही मिलती है. लालू के इतना कहते ही आरजेडी समर्थक पप्पू पर टूट पड़े. पप्पू इसके बाद आरजेडी से बाहर किए गए.
पप्पू के बाहर जाते ही लालू ने अपने दोनों बेटे (तेज प्रताप और तेजस्वी यादव) को चुनावी अखाड़े में उतार दिया. उस वक्त लालू और नीतीश का बिहार में मजबूत जोड़ था. चुनाव में जीत के बाद लालू ने अपने छोटे बेटे तेजस्वी को उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया.
सवाल- इस बार बैठक में क्या होगा?
लालू यादव ने 2025 चुनाव से पहले जिस तरीके से आरजेडी की बैठक बुलाई है, उससे चर्चा तेज है कि आखिर इस बैठक में क्या होगा? आरजेडी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बैठक में 2 बातों पर फैसला संभव है.
1. पहली चर्चा आरजेडी के भीतर तेजस्वी यादव को अधिकृत रूप से दूसरे नंबर का पद देने की है. कहा जा रहा है कि झामुमो की तर्ज पर लालू अपने बेटे तेजस्वी को कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप सकते हैं. 2012-13 में अस्वस्थ चल रहे शिबू सोरेन ने हेमंत सोरेन को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया था. इसके बाद पार्टी के सभी बड़े फैसले हेमंत सोरेन खुद लेते हैं.
अध्यक्ष शिबू सोरेन सिर्फ सलाहकार की भूमिका में हैं. कहा जा रहा है कि लालू भी इसी फॉर्मूले को अपनाने की कवायद में लगे हैं. ऐसा करने की एक वजह पार्टी के भीतर आंतरिक घमासान को रोकना भी है. लोकसभा चुनाव 2024 में टिकट बंटवारे के बाद कई सीटों पर बागी मैदान में उतर गए.
इस वजह से सीवान, झंझारपुर और नावादा जैसी सीटों पर आरजेडी मुकाबला भी नहीं कर पाई. विधानसभा चुनाव से पहले आरजेडी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. वहीं अगर कार्यकारी अध्यक्ष जैसा पद बनाया जाता है तो इसके लिए पार्टी के संविधान में भी बदलाव की जरूरत पड़ सकती है.
2. दूसरी चर्चा नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर है. वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह उम्र का हवाला देकर पार्टी के कामकाज से खुद को दूर कर लिया है. सियासी गलियारों में जगदानंद के नाराजगी की भी खबरें हैं. 80 साल के जगदानंद को लालू यादव का करीबी माना जाता है. जगदा राबड़ी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. वे बक्सर से एक बार सांसद भी रह चुके हैं.
जगदा के निष्क्रिय होने की वजह से नए अध्यक्ष की खोज हो रही है. चुनावी साल में पार्टी के लिए नए अध्यक्ष की जरूरत इसलिए भी है, क्योंकि उसके जरिए कई समीकरण को एक साथ साधा जा सकता है.
आरजेडी का नया प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा, यह खोजना भी आसान नहीं है. जगदानंद सिंह राजपूत बिरादरी से आते हैं. जगदा के बाद कई राजपूत नेता अध्यक्ष बनने की होड़ में शामिल हैं. इसी तरह मुस्लिम समुदाय से भी नए अध्यक्ष बनाए जाने की मांग उठ रही है.
दलित समुदाय के भी कई नेता रेस में शामिल हैं. इसी तरह कुशवाहा और गैर-यादव ओबीसी समुदाय के नेताओं की नजर भी अध्यक्ष की कुर्सी पर है.
लंबे वक्त से लालू परिवार के पास नहीं है सत्ता
2005 में लालू परिवार के हाथ से बिहार की सत्ता चली गई. 2009 में लालू केंद्र से भी रूखसत हो गए. तब से अब तक 2 बार लालू परिवार को सत्ता में आने का जरूर मौका मिला, लेकिन सहयोगी के भूमिका में ही.
2015 में नीतीश कुमार के साथ लालू परिवार को बिहार की सत्ता मिली. 2 साल के बाद फिर से सत्ता लालू परिवार से खिसक गई. 2022 में लालू परिवार को फिर से सत्ता में आने का मौका मिला, लेकिन 2024 में सरकार फिर चली गई.
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