
महामहोपाध्याय स्वामी भद्रेशदास विद्यामहामनीषी सम्मान से सम्मानित.
नेपाल शिक्षण परिषद और नेपाल पंडित महासभा, इन दोनों संस्थाओं ने संयुक्त रूप से नेपाल में अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन का स्वागत, सम्मान और स्थापना किया. स्वामिनारायणभाष्य के रचयिता महामहोपाध्याय स्वामी भद्रेशदास को विद्यामहामनीषी सम्मान से अलंकृत किया. इस ऐतिहासिक कार्यक्रम की शुरुआत भगवान पशुपतिनाथ के श्रीचरणों में भाष्य समर्पण से हुआ. इसके बाद इस कार्यक्रम की मुख्य सभा का आयोजन हुआ, जिसमें नेपाल के वेद, वेदांत, व्याकरण, न्याय, ज्योतिष आदि विविध विषय के मूर्धन्य विद्वानों की उपस्थिति रही.
विश्व संस्कृत सम्मेलन के राष्ट्रीय संयोजक और नेपाल के प्रसिद्ध विद्वान प्रो. काशीनाथ ने कहा कि हमने अन्य आचार्यों के दर्शन नहीं किए हैं, लेकिन आज हम प्रस्थानत्रयी के स्वामिनारायण भाष्यकार के साक्षात दर्शन कर रहे हैं, यही हमारा सौभाग्य है. हम उनके युग में हैं, ऐसा हम कह सकते हैं.
प्रो. धनेश्वर नेपाल ने कहा कि अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन का पठन-पाठन भारत के विश्वविद्यालयों में हो रहा है, और आज नेपाल में भी इस दर्शन की स्थापना हुई है. इस दर्शन को विश्वव्यापी बनाने के लिए यहां के विश्वविद्यालयों में भी इसका पठन-पाठन आरंभ होना चाहिए.
नेपाल शिक्षण परिषद तैयार
नेपाल शिक्षण परिषद के अध्यक्ष प्रो. रामकृष्ण तिमलसिना ने कहा कि अब अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन को केंद्रबिंदु मानकर एक नया अध्ययन अध्यापन का प्रकल्प शुरू करने के लिए नेपाल शिक्षण परिषद तैयार है. डॉ. देवमणि भट्ट ने कहा कि अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन दिव्य है. अपने मन और जीवन की सरलता और सार्थकता इसी दर्शन से प्राप्त हो सकती है.
नेपाल शिक्षण परिषद् के महामंत्री ने कहा कि डॉ. वासुदेवकृष्ण शास्त्री ने कहा कि यह अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन नेपाल में स्थापित होने जा रहा है. यह अत्यंत सौभाग्य का विषय है. इस दर्शन की परंपरा आने वाले समय में हजारों वर्षों तक नेपाल के जन-जन तक पहुंचेगी और सनातन हिंदू वैदिक संस्कृति में आस्था रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में व्याप्त हो जाएगी.
वैदिक संस्कृति का अंग स्वामिनारायण संप्रदाय
वहीं प्रो. सुकांत कुमार सेनापति ने कहा कि हमारी संस्कृति वैदिक संस्कृति है, स्वामिनारायण संप्रदाय भी वेदिक संस्कृति का अभिन्न अंग है. इस दर्शन का मूल आधार गुरुपरंपरा है. यह गुरुपरंपरा भी वैदिक संस्कृति के अनुरूप है. यह दर्शन भी श्रुति स्मृति और भगवान स्वामिनारायण के वचनामृत आधारित है, इसलिए प्रमाण विषयक और सिद्धांत विषयक कोई संदेह नहीं है. प्रो. गुल्लपल्ली श्रीरामकृष्ण मूर्ति ने कहा कि यह दर्शन समसामयिक है और लोकोपयोगी है, इस दर्शन का प्रचार करना मेरा और विश्वविद्यालय का लक्ष्य है.
दरअसल विश्व संस्कृत सम्मेलन संस्कृत भाषा को समर्पित एक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जो दुनिया की सबसे प्राचीन और गहन भाषाओं में से एक का उत्सव है. हर तीन साल में विभिन्न देशों में आयोजित होने वाला यह सम्मेलन दुनिया भर के हजारों विद्वानों को संस्कृत भाषा, साहित्य और दर्शन पर शोध प्रस्तुत करने और सार्थक संवाद करने के लिए एक मंच पर लाता है.
नेपाल के राष्ट्रपति ने किया उद्घाटन
इस साल, पांच दिवसीय सम्मेलन के 19वें संस्करण का उद्घाटन नेपाल के राष्ट्रपति ने किया. भगवान स्वामीनारायण के साथ नेपाल के पवित्र संबंध को दर्शाते हुए, आयोजकों ने अक्षर पुरुषोत्तम दर्शन- भगवान स्वामीनारायण के दिए गए अद्वितीय वेदांत दर्शन पर एक विशेष सत्र समर्पित किया.
18वीं शताब्दी में, भगवान स्वामीनारायण ने लगभग तीन वर्षों तक नेपाल की यात्रा की और अपनी तपस्या, योग साधना और दिव्य ज्ञान से इस भूमि को पवित्र किया. इसी पवित्र यात्रा के दौरान उन्होंने अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन के मूल सिद्धांतों की व्याख्या की, जो तब से वेदान्तिक विचारधारा का एक प्रतिष्ठित दर्शन बन गया है.
28 जून को अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन पर विशेष शैक्षणिक सत्र में नेपाल, भारत, अमेरिका, चीन, जापान और विभिन्न यूरोपीय देशों के प्रतिष्ठित विद्वानों ने भाग लिया. सत्र की अध्यक्षता महामहोपाध्याय स्वामी भद्रेशदास ने की, जो प्रस्थानत्रयी पर भाष्य लिखने वाले स्वामीनारायण भाष्य के रचयिता और वेदांत के विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त विद्वान हैं.
सत्र में ये विद्वान हुए शामिल
- काशीनाथ न्याउपाने – विश्व संस्कृत सम्मेलन के राष्ट्रीय संयोजक और नेपाल के प्रसिद्ध विद्वान.
- प्रोफेसर श्रीनिवास वरखेड़ी – कुलपति, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली
- प्रो. मुरली मनोहर पाठक – कुलपति, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली
- प्रो. जी.एस. मूर्ति – कुलपति, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरूपति
- प्रो भाग्येश झा – प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान और पूर्व आईएएस अधिकारी
- प्रो. सुकांत सेनापति – कुलपति, सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय, गुजरात
- प्रो. रानी सदाशिव मूर्ति – कुलपति, वैदिक विश्वविद्यालय, तिरूपति
- प्रो. हरेराम त्रिपाठी – कुलपति, कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, नागपुर
- प्रो. रामसेवक दुबे – कुलपति, जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय
- प्रो. विजय कुमार सी.जी. – कुलपति, महर्षि पाणिनि संस्कृत और वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन
- प्रो. रामनारायण द्विवेदी – महासचिव, काशी विद्वत परिषद
- डॉ. सच्चिदानंद मिश्र – सदस्य सचिव, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर)
नेपाली संगठनों के प्रतिनिधि शामिल
नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय धर्म जागरण अभियान, जयतु संस्कृतम्, नेपाल शिक्षण परिषद, नेपाल पंचांग निर्णायक विकास समिति, नेपाल पंडित महासभा, नेपाल महर्षि वैदिक फाउंडेशन और वाल्मीकि विद्यापीठ सहित कई प्रमुख नेपाली संगठनों के प्रतिनिधि भी इसमें शामिल हुए.
इस सत्र की एक विशिष्ट विशेषता यह थी कि भगवान स्वामीनारायण द्वारा प्रकट अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन को पहली बार नेपाल में विद्वान समुदाय के समक्ष औपचारिक रूप से प्रस्तुत किया गया. इस ऐतिहासिक अवसर पर, परम पूज्य महंत स्वामी महाराज ने एक भावपूर्ण वीडियो संदेश के माध्यम से पूरे सम्मेलन की सफलता के लिए अपना आशीर्वाद और प्रार्थना व्यक्त की.
इन विद्वानों ने प्रस्तुत किए शोध पत्र
- प्रोफेसर डॉ. आत्मतृप्तदास स्वामी: 21वीं सदी के संस्कृत साहित्य में प्रस्थानत्रयी पर स्वामीनारायण भाष्य की रचना प्रक्रिया पर एक अध्ययन.
- प्रो. डॉ. अक्षरानंददास स्वामी: अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन का भगवद गीता में धर्म का विश्लेषण.
- प्रो. आचार्य ब्रह्मानंददास स्वामी: परब्रह्म भगवान स्वामीनारायण द्वारा प्रकट अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन में दिव्य अभिव्यक्ति की अवधारणा
- प्रो. डॉ. ज्ञानतृप्तदास स्वामी: भगवान स्वामीनारायण के वचनामृत में अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन
- प्रो. डॉ. सागर आचार्य: अक्षरब्रह्म के परिप्रेक्ष्य से प्रस्थानत्रयी पर स्वामीनारायण भाष्य की एकीकृत दार्शनिक संरचना.
- प्रो. आचार्य तरूण ढोला: अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन के अनुसार ब्रह्म-परब्रह्म संबंध पर एक अध्ययन
- प्रो. आचार्य हरिकृष्ण पेधड़िया: अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन के गीता भाष्य में ब्रह्म-आत्म एकता
- आचार्य तेजस कोरिया: भगवद गीता पर आधारित विशिष्टाद्वैत और अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन में अक्षर की अवधारणा का तुलनात्मक अध्ययन
पाठ्यक्रम में किया शामिल
अपने मुख्य भाषण में, प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने परब्रह्म भगवान स्वामीनारायण द्वारा प्रकट किए गए अक्षर-पुरुषोत्तम सिद्धांत की वैदिक दार्शनिक परंपरा में एक विशिष्ट और मौलिक योगदान के रूप में प्रशंसा की. उन्होंने ऐलान किया कि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने इस शैक्षणिक वर्ष से अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन को औपचारिक रूप से अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है.
भगवान स्वामी नारायण की यात्रा
अपने समापन भाषण में, महामहोपाध्याय स्वामी भद्रेशदास ने नेपाल की पवित्रता, भगवान स्वामी नारायण की यात्रा और अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन के दिव्य सत्यों पर जोर दिया, जिन्हें उन्होंने साधकों के साथ साझा किया. उन्होंने सनातन वैदिक परंपरा के अविरल प्रवाह पर भी प्रकाश डाला, जो समय के साथ नई अंतर्दृष्टि और विचारधाराओं को जन्म देता रहा है.
आज, दुनिया भर में अनगिनत साधक अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन के सिद्धांतों को आत्मसात करने का प्रयास कर रहे हैं. प्रमुख विद्वानों ने इसे वैदिक सनातन धर्म में एक अद्वितीय और आधारभूत योगदान के रूप में मान्यता दी है. उल्लेखनीय रूप से, अनेक वैश्विक विश्वविद्यालय अब इस विचारधारा पर केंद्रित पाठ्यक्रम और शैक्षणिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे इसकी पहुंच को बढ़ावा मिल रहा है.
अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन का स्वागत
इस अवसर को याद करते हुए, विश्व संस्कृत सम्मेलन के राष्ट्रीय समन्वयक, काशीनाथ न्यौपाने ने औपचारिक रूप से घोषणा की कि आज, हम नेपाल में अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन का स्वागत, सम्मान और स्थापना करते हैं. इस तरह, 19वें विश्व संस्कृत सम्मेलन में अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन पर विशेष सत्र वेदान्त दर्शन के नजरिए से और भगवान स्वामीनारायण और नेपाल की आध्यात्मिक भूमि के बीच पवित्र बंधन के संदर्भ में एक यादगार अवसर बन गया.
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