
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ याचिका दायर पर सुप्रीम कोर्ट 24 मार्च को सुनवाई करेगा, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा है कि स्तन पकड़ने और पायजामे का नाड़ा खोलना दुष्कर्म नहीं है, बल्कि यौन उत्पीड़न है. यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील अंजलि पटेल की ओर से दायर की गई. याचिका में हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करने की मांग की गई हैं. साथ ही जजों को लेकर भी दिशा निर्देश जारी करने की मांग की गई है.
बता दें हाल में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल में कहा था कि पीड़िता के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना किसी आरोपी पर बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है.
इस तरह के कृत्य को गंभीर यौन उत्पीड़न के रूप में वर्णित किया, जबकि सम्मन आदेश को संशोधित किया और दो आरोपियों के खिलाफ आरोपों में बदलाव किया.
जानें हाईकोर्ट ने क्या कहा था
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया था कि शिकायत के बयान को अगर सच मान लिया जाए तो भी आईपीसी की धारा 376 के तहत कोई अपराध नहीं किया गया है और यह मामला आईपीसी की धारा 354, 354(बी) और पोक्सो अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों के दायरे से बाहर नहीं जाता है.
दोनों आरोपियों को शुरू में आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और पोक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए जिला अदालत द्वारा बुलाया गया था, लेकिन इसके बजाय हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि आरोपियों पर आईपीसी की धारा 354-बी (नंगा करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और पोक्सो अधिनियम की धारा 9/10 के तहत मुकदमा चलाया जाए.
अदालत ने कहा कि आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ लगाए गए आरोप और मामले के तथ्य इस मामले में बलात्कार के प्रयास का अपराध नहीं बनाते हैं.
आरोपी पर लगे थे ये आरोप
न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि अपराध करने की तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच मुख्य रूप से दृढ़ संकल्प की अधिक डिग्री होती है, क्योंकि इसने तीन आरोपियों द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया.
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, आरोपियों (पवन और आकाश) ने 11 वर्षीय पीड़िता के स्तनों को पकड़ा और उनमें से एक, आकाश ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे यूपी के कासगंज में पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की. हालांकि, इस बीच, राहगीरों/गवाहों के हस्तक्षेप के कारण, आरोपी व्यक्ति पीड़िता को छोड़कर मौके से भाग गए.
याचिकाकर्ता वकील ने तर्क दिया कि शिकायत के बयान को अगर सच मान लिया जाए तो भी आईपीसी की धारा 376 के तहत कोई अपराध नहीं किया गया है और यह मामला आईपीसी की धारा 354, 354(बी) और पोक्सो अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों से आगे नहीं जाता है.
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