सुप्रीम कोर्ट.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के एक नियम की आलोचना की है. इस नियम के मुताबिक किसी आपराधिक मामले की जांच में पुलिस अधिकारियों के आचरण के लिए उनकी निंदा करने में ट्रायल कोर्ट की शक्तियों को सीमित करता है. इस नियम में कहा गया है कि अदालतों के लिए पुलिस अधिकारियों के कार्यों की निंदा वाली टिप्पणियां करना अवांछनीय हैं, जब तक कि टिप्पणियां मामले के लिए पूरी तरह से प्रासंगिक न हों.
हाई कोर्ट के इस नियम की आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि यह नियम यह तय करता दिखता है कि ट्रायल कोर्ट को अपने फैसले कैसे लिखने चाहिए. इसलिए इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए.
जिला न्यायाधीशों की पेंशन का मामला
एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जिला न्यायाधीशों को दी जा रही पेंशन का केंद्र से जल्द से जल्द समाधान करने के लिए कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम जिला न्यायपालिका के संरक्षक होने के नाते अटार्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से आग्रह करते हैं कि न्यायमित्र के साथ बैठकर कोई रास्ता निकालें.
सीजेआई ने कहा कि कुछ मामले बहुत पेचीदा हैं. कैंसर से पीड़ित एक जिला जज के मामले का उल्लेख किया. कहा कि पेंशन से संबंधित शिकायतों को उठाते हुए जिला न्यायाधीशों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की जा रही हैं.
60 साल की उम्र में वो वकालत भी नहीं कर सकते
पीठ ने कहा कि जिला न्यायाधीशों को केवल 15 हजार रुपये पेंशन मिल रही है. जिला जज हाई कोर्ट में आते हैं. आमतौर पर उन्हें 56 और 57 वर्ष की आयु में हाई कोर्ट में पदोन्नत किया जाता है. वो 30 हजार रुपये प्रति माह पेंशन को लेकर रिटायर होते हैं. हाई कोर्ट के बहुत कम जज को मध्यस्थता के मामले मिलते हैं. 60 साल की आयु होने पर वो वकालत भी नहीं कर सकते. सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर ने जिला अदालत के जज के पेंशन संबंधी मामले पर बहस करने के लिए कुछ समय मांगा है.
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