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Sawan Somvar Vrat Katha: सावन के दूसरे सोमवार के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, शीघ्र विवाह के बनेंगे योग! | Sawan Dusra Somvar Vrat katha 2024 in Hindi Must listen this sawan somvar vrat katha

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Jul 29, 2024    150862 views     Online Now 164
Sawan Somvar Vrat Katha: सावन के दूसरे सोमवार के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, शीघ्र विवाह के बनेंगे योग!

सावन सोमवार व्रत कथा

Sawan Somwar Vrat Katha: फिलहाल सावन का पवित्र महीना चल रहा है. 22 जुलाई को सावन माह का पहला सोमवार व्रत रखा गया था. सोमवार व्रत का सावन महीने में खास महत्व है. सावन सोमवार व्रत में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की विशेष पूजा की जाती है. महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना के लिए सावन सोमवार व्रत करती हैं, जबकि अविवाहित युवतियां भोलेनाथ की विशेष पूजा करती हैं जिससे वे एक अच्छा वर पा सकें. हिंदू कलेंडर में श्रावण महीने का बहुत महत्व है. यह महीना भगवान शिव को समर्पित है क्योंकि यह मास उन्हें बहुत प्रिय है.

यह महीना देवों के देव महादेव भगवान शिव को समर्पित है. धार्मिक मान्यता है कि इस महीने शिवजी की पूजा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.पुरुष और महिलाएं दोनों ही सावन सोमवार को व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा करते हैं. सावन के पांच सोमवार पड़ रहे हैं. हिंदू धर्म में उपवास का बहुत धार्मिक महत्व है. पुराणों के अनुसार, हर देवता को समर्पित एक कथा है, जिसे पढ़े बिना उपवास का महत्व समाप्त हो जाता है. सोमवार भगवान शिव को समर्पित है, इसलिए सावन के दौरान उपवास करना महत्वपूर्ण है. ऐसा माना जाता है कि सावन सोमवार व्रत में भगवान शिव की कथा पढ़ना और सुनना बहुत महत्वपूर्ण है, अन्यथा व्रत अधूरा रह सकता है.

आज सावन सोमवार का दूसरा व्रत है और इस व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अपार सुख की प्राप्ति होती है. सावन सोमवार के व्रत को करने वाले भक्तों के लिए इस कथा का पाठ करना अनिवार्य है. ऐसी मान्यता है कि सावन सोमवार के व्रत में कथा का पाठ किए बिना वत का पूर्ण फल नहीं मिलता है. अगर आप भी सावन के दूसरे सोमवार के दिन व्रत रख रहे हैं, तो इस दिन व्रत कथा को जरूर पढ़ें.

सावन के दूसरे सोमवार पर पढ़ें यह व्रत कथा

एक बार मृत्युलोक में महादेव जी पार्वती के साथ अमरावती नगरी में आए. राजा ने वहां एक भव्य और मनोरम शिव मंदिर बनाया, जो मन को शांत करता था. यात्रा के दौरान शिव-पार्वती भी वहीं ठहर गए.

पार्वती जी ने शिव जी से कहा, हे नाथ! आओ, आज इसी स्थान पर चौसर-पांसे खेलें. इसके बाद खेल शुरू हुआ. भगवान शिव ने कहा कि इसमें मैं जीतूंगा. इस तरह वे आपस में बोलने लगे. तब पुजारी पूजा करने आए. ब्राह्मण ने पुजारी से पूछा, “पुजारीजी, आप बताइए किसकी जीत होगी?” पुजारी ने कहा कि महादेवजी ही जीतेंगे क्योंकि वे इस खेल में सबसे निपुण हैं. लेकिन पार्वती जीत गईं. पुजारी की इस टिप्पणी से आहत होकर माता पार्वती ने पुजारी को कोढ़ी होने का श्राप दिया.

अब पुजारी कोढ़ी हो गया. फिर भगवान शिव और माता पार्वती दोनों वापस चले गए. इसके बाद एक दिन अप्सराएं उस मंदिर में पूजा करने आईं. अप्सराओं ने पुजारी से कोढ़ी होने का कारण पूछा. पुजारी ने सब कुछ बताया.

अप्सराओं ने पुजारी से कहा कि पुजारीजी, आप सावन सोमवार का व्रत करें. इससे शिवजी प्रसन्न होकर आपका संकट दूर करेंगे. पुजारी ने अप्सराओं से व्रत करने का तरीका पूछा. अप्सराओं ने व्रत करने और उद्यापन करने की पूरी प्रक्रिया बताई. पुजारी ने व्रत को विधिपूर्वक श्रद्धापूर्वक शुरू किया और अंत में इसका उद्यापन भी किया. इस व्रत के प्रभाव से पुजारीजी बीमार नहीं होते थे.

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कुछ दिनों बाद शंकर-पार्वतजी फिर से उस मंदिर में आए. पुजारी को बीमारी से मुक्त देखकर पार्वतीजी ने पूछा कि उन्होंने मेरे दिए हुए श्राप से बचने के लिए क्या किया? पुजारी ने कहा, “हे प्रभु! अप्सराओं द्वारा बताए गए 16 सोमवार के व्रत करने से मेरा यह कष्ट दूर हुआ है. ” कार्तिकेय जी भी इससे प्रसन्न हुए और सोमवार को पार्वती जी के लिए व्रत किया.

कार्तिकेय जी ने माता से पूछा कि मेरा मन हर समय आपके चरणों में लगा रहता है. कार्तिकेय जी को माता पार्वती ने सोमवार के व्रत का माहात्म्य और विधि बताई. कार्तिकेय जी ने भी इस व्रत को किया. इस व्रत के प्रभाव से उनका खोया हुआ दोस्त मिल गया. इसके बाद उस दोस्त ने भी सावन सोमवार व्रत को विवाह होने की इच्छा से पूरा किया.

इसके बाद वह दोस्त बाहर गया. वहां राजा की कन्या का विवाह था. राजा ने वादा किया था कि जिस हथिनी के गले में वरमाला डाल दी जाएगी, उसी से राजकुमारी का विवाह होगा. यह ब्राह्मण दोस्त भी स्वयंवर देखने के लिए वहां एक ओर जाकर बैठ गया. राजा ने अपनी राजकुमारी को इसी ब्राह्मण मित्र से विवाह कर दिया. जब हथिनी ने उसे माला पहनाई. तब से दोनों खुश रहने लगे.

एक दिन हथिनी ने नाथ के गले में वरमाला पहनाकर राजकन्या से पूछा, “हे नाथ! आपने कौन-सा पुण्य किया?” ब्राह्मण पति ने कहा कि कार्तिकेय जी के कहने पर मैंने सावन सोमवार को पूरी विधि-विधान सहित श्रद्धा-भक्ति से व्रत किया, जिसके फलस्वरूप मुझे तुम्हारे जैसी सौभाग्यशाली पत्नी मिली. अब राजकन्या ने सत्य-पुत्र पाने के लिए यह व्रत पूरा किया और उन्होंने सर्वगुण संपन्न पुत्र प्राप्त किया. जब वह बड़ा हो गया, तो उस पुत्र ने भी राज्य पाने की इच्छा से सावन सोमवार का व्रत लिया.

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राजा के देवलोक होने पर भी इसी ब्राह्मण पुत्र को राजगद्दी मिली, फिर भी वह इस व्रत को करता रहा. एक दिन उसने अपनी पत्नी से पूजा सामग्री शिवालय ले चलने को कहा, लेकिन उसने अपनी दासियों को भेजा. राजा ने पूजन पूरा करने के बाद आकाशवाणी से कहा कि अगर वह इस पत्नी को नहीं त्यागता तो उसे राजपाट से धोना पड़ेगा.

दूतों ने राजा को आश्रम में रानी को देखकर बताया. तब राजा वहां गया और गुसांईजी से कहा कि यह मेरी पत्नी है, महाराज. मैंने इसे छोड़ दिया था. इसे मेरे साथ चलने की कृपा करें. शिवजी की कृपा से वे हर वर्ष साल सोमवार का व्रत करते हुए खुश रहने लगे और अंत में दोनों को मोक्ष (स्वर्ग) की प्राप्ति हुई.

इस प्रकार, जो व्यक्ति सावन में सोमवार के व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है, भगवान शिव की कृपा से उसी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस कथा को सुनने या पढ़ने के बाद ॐ जय शिव ओंकारा आरती करें.

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