
इन कलाकारों का पैतृक घर पाकिस्तान और बांग्लादेश में था
बांग्लादेशी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक सत्यजित राय के पूर्वजों का घर पिछले करीब दस साल से जर्जर हालत में था. वहां स्कूल चल रहा था. रिपोर्ट में दावा यह भी किया गया है कि इसकी जगह नई इमारत का निर्माण होगा. केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से इस ध्वस्तीकरण पर सवाल उठाए गए और सत्यजित राय की विरासत के संरक्षण की मांग की गई. अब आगे पूरे मामले में कब और क्या-क्या होगा, इसका अनुमान अभी तो नहीं लगाया जा सकता लेकिन दो बातें साफ हैं. एक ये कि पिछले दस साल से अगर घर जर्जर हालत में है तो अब तक उदासीनता क्यों बरती गईं. दूसरे कि इस ध्वस्तीकरण के बाद भी क्या सत्यजीत राय की जड़ों को यहां से मिटाया जा सकेगा? उनकी यादों को भुलाया जा सकेगा? शायद नहीं.
सत्यजित राय भारत रत्न थे, ऑस्कर पुरस्कार से भी सम्मानित थे. वर्ल्ड सिनेमा उनकी उपलब्धियों पर गुमान करती हैं, जिन्होंने पाथेर पांचाली से लेकर शतंरज के खिलाड़ी तक कई महान फिल्मों का सृजन किया, दुनिया भर के सिनेमा प्रेमियों और कलाकारों के बीच जिनकी सिने कला की अपनी-सी प्रतिष्ठा है. और यही वजह है कि मैमनसिंह शहर यह घर ना केवल भारत बल्कि बांग्लादेश के भी इतिहास का हिस्सा है, जैसे कि पाकिस्तान के पेशावर में दिलीप कुमार और राज कपूर का पुश्तैनी घर तो लाहौर में देव आनंद का मकान. अब देखना ये होगा कि बांग्लादेश सरकार अपने इतिहास और उस विरासत को लेकर कितनी गंभीर है, जिसकी दुनिया में अपनी पहचान है.
विरासत और उपलब्धियां
मुझे इस संदर्भ में राज कपूर की फिल्म श्री420 के गाने की एक पंक्ति की याद आ रही है. यह पंक्ति है- हम ना रहेंगे, तुम ना रहोगे फिर भी रहेगी निशानियां. ये गाना भले ही राज कपूर की फिल्म का है लेकिन आज इसे विस्तृत परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है. पलायन और पराभव किसी व्यक्ति का होता है, उसकी यादों का कभी नहीं. यादें अपनी जड़ों से जुड़ी होती हैं. और इन जड़ों की निशानियां जेहन से कभी नहीं जातीं. शैलेन्द्र ने इसे बहुत ही दूरदर्शी सोच के साथ लिखा था. सत्यजित राय के घर ध्वस्त कर दिए गए, निशानियां नेस्तनाबूद कर दी गईं लेकिन यादों और उपलब्धियों को भला कौन और कैसे कुचल सकता है.
हमारे कई दिग्गज फिल्मकारों की निशानियां और यादें पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और बांग्लादेश से जुड़ी हैं. ये कहानियां सौ साल से भी ज्यादा पुरानी हैं. तब भारत का विभाजन नहीं हुआ था. अंग्रेजों के शासन काल में संयुक्त भारत था. आजादी के साथ ही पहले पाकिस्तान बना फिर सन् 1971 में बांग्लादेश. इन दिग्गज फिल्मी हस्तियों का जन्म अविभाजित भारत में हुआ था. जो पेशावर, लाहौर और झेलम में जन्में उनमें ज्यादातर मुंबई चले गए वहीं जिनका जन्म ढाका या फरीदपुर में हुआ उन्होंने वाया कोलकाता मुंबई को अपना पेशेवर ठिकाना बनाया.
जिनके पूर्वज बांग्लादेश से थे
बात पहले उन कुछ दिग्गज फिल्मी हस्तियों की करते हैं, जिनके पूर्वज बांग्लादेश से थे. जहां आज भी उनकी जमीन-जायदाद, घर-बंगलों की यादें हैं. दो बीघा जमीन, सुजाता, बंदिनी और मधुमती जैसी क्लासिक फिल्में बनाने वाले बिमल रॉय का जन्म भी सन् 1909 में ढाका में हुआ था. ढाका से कई और कलाकारों का गहरा संबंध था. प्रसिद्ध फिल्मकार ऋत्विक घटक, जिनकी इस साल जन्म शताब्दी मनाई जा रही है, उनका जन्म भी सन् 1925 में ढाका में ही हुआ था.
वहीं मशहूर फिल्म डायरेक्टर मृणाल सेन और प्रसिद्ध गायिका, अभिनेत्री और गुरु दत्त की पत्नी गीता दत्त (मूल नाम गीता घोष रॉय चौधरी) का जन्म बांग्लादेश के फरीदपुर में हुआ था. इनके अलावा गौतम घोष का जन्म भले ही कोलकाता में हुआ लेकिन उनके पूर्वज बांग्लादेश से ताल्लुक रखते थे. गौरतलब है कि इन सभी कलाकारों ने कालांतर में भारतीय फिल्मउद्योग में अपना स्थान बनाया. इन सभी कलाकारों की पैतृक संपत्ति का बांग्लादेश में क्या हुआ, इसका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है.
जिनके पूर्वज पाकिस्तान में थे
अब उन बड़े फिल्म कलाकारों की बात करते हैं जिनकी जड़ें संयुक्त भारत के दौरान पेशावर, लाहौर या कि झेलम में रहीं, जोकि अब पाकिस्तान में हैं. इनमें दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, सुनील दत्त और मनोज कुमार जैसे कलाकारों के नाम लिये जाते हैं. विभाजन के बाद इन सभी ने भारत में रहना पसंद किया. पेशावर में दिलीप कुमार और राज कपूर का पुश्तैनी निवास है. पाकिस्तान सरकार ने दिलीप कुमार को निशान-ए-इम्तियाज उपाधि से तो नवाजा और साल 2013 में उस घर को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा भी दिया लेकिन उनकी विरासत का कितना संरक्षण कर पाई, इसका कोई वजूद नहीं.
इसी तरह महान शो मैन कहे जाने वाले राज कपूर का भी पैतृक निवास पेशावर में हैं. उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने पहले कोलकाता फिर मुंबई का रुख किया था. कपूर खानदान की आज की पीढ़ियां अपने पूर्वज की यादों से लैस हैं भले ही उन निशानियों के देख पाने से महरूम हैं. सन् 1990 में शशि कपूर अपने पूरे परिवार के साथ अपने दादा बसेश्वर नाथ कपूर की बनवाई हवेली को देखने पहुंचे थे. पाकिस्तान की सरकार ने इस हवेली को भी सांस्कृतिक विरासत घोषित किया था लेकिन आज उसके वजूद की भी कोई ठोस जानकारी नहीं.
विरासत में इतिहास की झांकी
इसी तरह देव आनंद का संबंध लाहौर से था, जहां उन्होंने शिक्षा हासिल की. सुनील दत्त की विरासत झेलम में थी और काका यानी हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना के पिता पाकिस्तान के बुडेवाल शहर के एक स्कूल में हेडमास्टर थे. इस सूची में कई और कलाकार हैं जिनका संबंध विभाजन पूर्व पाकिस्तान और बांग्लादेश से था, जहां उनकी यादें और निशानियां हैं. वहां की सरकारों को इन हवेलियों को अपनी राष्ट्रीय विरासत मान कर संरक्षित करना चाहिए. आने वाली पीढियां इनमें अपने इतिहास की तलाश करेंगी.
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