टैक्सेबल इनकम का कैलकुलेशनImage Credit source: Unsplash
इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने की आखिरी तारीख 31 जुलाई एक दम करीब आ चुकी है. अगर आप सैलरीड एम्प्लॉई हैं और आपको रिटर्न फाइल करने के लिए टैक्सेबल इनकम को कैलकुलेट करने में दिक्कत आ रही है, तो चलिए हम आपको इसका पूरा प्रोसेस बता देते हैं.
सबसे पहले तो ये जान लेना जरूरी है कि आपकी जो सैलरी होती है या आप सालभर में जितना कमाते हैं, वह पूरी इनकम टैक्सेबल नहीं होती है. इसमें कई तरह की टैक्स छूट आपको मिलती हैं. जब आप उसका डिडक्शन करते हैं, तब आपकी वास्तविक टैक्सेबल इनकम निकल कर आती है.
टैक्सेबल इनकम को कैलकुलेट करने के लिए ये भी देखना होगा कि आप न्यू टैक्स रिजीम के तहत आईटीआर फाइल कर रहे हैं या ओल्ड टैक्स रिजीम के तहत. चलिए समझते हैं टैक्सेबल इनकम का ये गणित…
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कौन-कौन सी इनकम होती है टैक्सेबल?
अगर आपकी इनकम सिर्फ सैलरी से होती है, तो टैक्सेबल इनकम का कैलकुलेशन डिडक्शंस के बाद सिर्फ उसी से होगा. नहीं तो, इनकम टैक्स कानून के मुताबिक सैलरी के अलावा घर या दुकान का रेंट, शेयर बाजार में इंवेस्टमेंट पर हुआ कैपिटल गेन या फ्रीलांस काम से आया पैसा और किसी अन्य प्रोफेशनल सर्विस से हुई कमाई भी टैक्स के दायरे में आती है. इस टोटल इनकम में से भी आपको अलग-अलग तरह की सेविंग पर टैक्स डिडक्शन का फायदा मिलता है.
अगर आप न्यू टैक्स रिजीम के तहत आईटीआर फाइल करने जा रहे हैं. तब आपकी ये सारी इनकम जुड़ जाएंगी और सिर्फ 50,000 रुपए के स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा आपको मिलेगा. हालांकि इस रिजीम में टैक्स फ्री इनकम की लिमिट 7 लाख रुपए है और स्टैंडर्ड डिडक्शन को मिलाकर वह 7.50 लाख रुपए हो जाती है.
ओल्ड टैक्स रिजीम में टैक्सेबल इनकम का कैलकुलेशन
वैसे तो सैलरी क्लास को टैक्सेबल इनकम कैलकुलेशन करने में आपका ऑफिस ही काफी मदद करता है. अगर आपकी सैलरी से टीडीएस या एडवांस टैक्स की कटौती होती है तो आपका ऑफिस आपके टैक्स डिडक्शन कैलकुलेट करके फॉर्म-16 देता है. लेकिन अगर फॉर्म-16 ना मिले तो भी वो इनकम टैक्स की साइट से एआईएस (एनुअल इनकम स्टेटमेंट) निकालकर अपनी टैक्सेबल इनकम कैलकुलेट कर सकते हैं. इतना ही नहीं कई बार फॉर्म-16 में आपकी रेंट से इनकम, कैपिटल गेन, फ्रीलांस इनकम का कैलकुलेशन नहीं होता. तब आप ये स्टेप बाई स्टेप प्रोसेस फॉलो कर सकते हैं…
- टैक्सेबल इनकम कैलकुलेट करने के लिए आपको सबसे पहले अपनी सैलरी में से हाउस रेंट अलाउंस घटाना होता है. अगर आपने होम लोन लिया है, तब इस छूट का फायदा नहीं मिलता है, बल्कि आपको होम लोन पर चुकाए ब्याज पर टैक्स कट मिल जाता है.
- इसके बाद आप सैलरी में मिलने वाले बच्चों की पढ़ाई के अलाउंस को सैलरी से घटा सकते हैं. इसकी एक फिक्स लिमिट होती है.
- इसके अलावा आपको लीव ट्रैवल अलाउंस मिलता है. ये भी टैक्स डिडक्शन का हिस्सा होता है.
- इसके बाद आप 80C के तहत की गई सेविंग, हेल्थ इंश्योरेंस के प्रीमियम और अन्य टैक्स सेविंग डिडक्शन को कैलकुलेट करके, उसे अपनी टोटल इनकम से कम कर सकते हैं.
- अगर आप अपनी किसी प्रॉपर्टी को रेंट आउट करते हैं, तब आप स्टैंडर्ड डिडक्शन के अलावा म्युनिसिपालिटी को चुकाए गए टैक्स पर छूट के लिए क्लेम कर सकते हैं.
- अब बारी आती है कैपिटल गेन की, अगर आपने शेयर ट्रेडिंग में शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (एक साल से कम के निवेश) किया है, तब आपको 15% और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (एक साल से ज्यादा के निवेश पर) के लिए 10% टैक्स देना होता है. इसमें बस एक फायदा ये मिलता है कि आपको शेयर मार्केट में जो नुकसान हुआ है, उसे अपने कैपिटल गेन से सेट ऑफ कर सकते हैं.
- इसके अलावा अगर आप हर साल NPS में पैसा डालते हैं, तो 50,000 रुपए का एक्स्ट्रा टैक्स छूट क्लेम कर सकते हैं. वहीं स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा इस रिजीम में भी मिलता है. इन सभी डिडक्शंस को हटाने के बाद आपकी जो इनकम बचेगी, उस पर टैक्स स्लैब के आधार पर आपको टैक्स चुकाना होगा.
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