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जीवन का उद्देश्य ही उसकी पूरी गहराई का अनुभव करना है… गुरु पूर्णिमा पर बोले सद्गुरु | Sadhguru Jagdish Jaggi Vasudev told the role of a Guru in life

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Jul 21, 2024    150852 views     Online Now 239

जीवन में गुरु का काम क्या होता है? मेरा काम लोगों को सिर्फ तसल्ली देना नहीं है. मैं यहां लोगों को उनकी उच्चतम क्षमता के प्रति जागरूक करने के लिए हूं. आध्यात्मिक विज्ञान का पूरा उद्देश्य आदमी को उसकी उच्चतम संभावना के प्रति जागृत करना है ताकि वह शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक रूप से सभी स्तरों पर एक पूर्ण जीवन जी सके. वह एक पूर्ण मानव बन सके. क्योंकि जीवन का उद्देश्य ही जीवन की उसकी पूरी गहराई और आयाम में अनुभव करना है. यह कहना है ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु का.

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर उन्होंने आगे कहा कि अभी आध्यात्मिकता के नाम पर लोग यह सिखाने में लगे हैं कि जीवन से कैसे बचा जाए. लोग तसल्ली के बारे में बात कर रहे हैं, लोग संतुष्टि के बारे में बात कर रहे हैं, लोग जीवन से पीछे हटने के बारे में बात कर रहे हैं. मेरा मानना है कि जीवन का अनुभव केवल इंवॉल्वमेंट (सहभागिता) से किया जा सकता है. जीवन के साथ आपका जुड़ाव जितना गहरा होगा आप जीवन के बारे में उतना ही अधिक जान पाएंगे. इसलिए स्पिरिचुअलिटी का अर्थ है जीवन के साथ अंतिम जुड़ाव, न कि जीवन से विमुख होना.

सद्गुरु ने कहा कि अगर आप जीवन का अनुभव करना चाहते हैं तो इसका एकमात्र तरीका है खुद को इसमें शामिल करना, लेकिन कुछ लोगों को इसमें शामिल होने में डर होता है क्योंकि वो उलझने से डरते हैं. लोगों को उलझने का डर केवल इसलिए होता है क्योंकि उनकी भागीदारी भेदभावपूर्ण होती है.

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Sadhguru Jagdish Jaggi Vasudev

‘हर चीज में भागीदारी से उलझने का डर खत्म हो जाएगा’

यदि मैं केवल आपके साथ ही इंवॉल्व रहूं और मेरे आसपास कुछ भी न हो, तो मैं निश्चित रूप से आपसे उलझ जाऊंगा. लेकिन आपकी हर चीज में भागीदारी है जिससे आप संपर्क में हैं, जिस हवा में आप सांस लेते हैं, जिस धरती पर आप चल रहे हैं, अगर आप पूरी तरह से हर उस चीज में शामिल हैं जिसे आप देख सकते हैं, सुन सकते हैं, छू सकते हैं, सूंघ सकते हैं, उसका स्वाद ले सकते हैं तो आप उससे आनंदित हो जाएंगे और हर चीज से फ्री हो जाएंगे और चीजों में शामिल होने को लेकर बिल्कुल भी डर नहीं रह जाएगा.

डर को संभाल के रखने की जरूरत नहीं है: सद्गुरु

उन्होंने आगे कहा कि डर कोई स्वाभाविक अवस्था नहीं है. डर एक ऐसी चीज है जिसे आपने अपनी सीमित धारणा के कारण विकसित किया है. इसलिए यदि जीवन को उसके वास्तविक रूप में देखने की आपकी क्षमता बढ़ती है, जैसे आप जीवन को अधिक स्पष्टता के साथ देखते हैं तो आपके भीतर का डर कम होगा. डर कोई ऐसी चीज नहीं जिसे आपको संभालने की जरूरत है. आपको अपने जीवन में स्पष्टता लाने की जरूरत है. योग का पूरा विज्ञान केवल इसी पर केंद्रित है ताकि आपकी जो धारणा है उसे अंतिम संभावना तक बढ़ाया जा सके.

‘शिव पहले योगी और पहले गुरु भी हैं’

योग में हम शिव को आदियोगी और आदि गुरु के रूप में देखते हैं. इसका मतलब है वह पहले योगी भी है और पहले गुरु भी हैं. इसलिए हमेशा उन्हें तीसरी आंख वाले के रूप में चित्रित किया जाता है. तीसरी आंख का मतलब यह नहीं है कि उनके माथे पर क्रेक है. इसका सीधा सा मतलब यह है कि उनकी धारणा अपनी उच्चतम संभावना तक पहुंच गई है. इसलिए आपकी धारणा जितनी स्पष्ट होगी, आपके जीवन से डर उतना ही जल्दी गायब हो जाएगा.

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