
मजनूं-अकबर जैसे किरदारों में याद रहेंगे ऋषि कपूर
ऋषि कपूर हिंदी फिल्मों के पहले लवर बॉय थे. बॉबी इस लिहाज से सबसे अव्वल फिल्म थी. परंपरागत प्रेम कहानियों की लीक से हटकर. ना गांव और न राजमहल की चहारदीवारी. एकदम शहरी किशोर जोड़े की प्रेम कहानी. नतीजा- फिल्म सदाबहार सुपर हिट साबित हुई. डिंपल कपाड़िया के साथ उनकी जोड़ी ने मिसाल पेश की. ऋषि नये जमाने के प्रेमी युवा कहलाए. ऋषि कपूर हिंदी फिल्मों के पहले रॉक स्टार भी थे. कर्ज इस हिसाब से सबसे हिट फिल्म थी. एक हसीना थी, एक दीवाना था…वाकई ये नॉस्टेल्जिया जगाने वाला अनोखा तराना था. और जब लैला के मजनूं बने तो दर्शकों को जैसे पागल ही बना दिया. जो लिखकर माशूका का नाम जमीं पर हरदम लैला-लैला करता था.
एच एस रवैल के निर्देशन में सन् 1976 की ब्लॉकबस्टर लैला मजनूं ऋषि कपूर की कई मायने में अलहदा फिल्म है. उन्होंने जिस अंदाज में अपने रोल को निभाया, उसे देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि मजनूं मतलब ऋषि कपूर. ना तो इससे पहले और ना ही इसके बाद फिल्मी पर्दे पर कोई दूसरा कलाकार इस जैसा मजनूं हो सका. मजनूं का मतलब ही होता है- जो अपनी लैला की याद में एकदम पागल जैसा हो जाए. फटी पोशाक, बिखरे बाल, सूखे-मुरझाए चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ियां, कई-कई दिनों से भूखा-प्यासा, नंगे पांव दर दर का भटकाव… ये सबकुछ बताने के लिए था कि मजनूं आखिर किसे कहते हैं.
मजनूं के पर्याय बन गए ऋषि कपूर
ऋषि कपूर मजनूं के किरदार को जीकर हमेशा-हमेशा के लिए इसे जीवंत कर गए. आगे चलकर मजनूं के पर्याय बन गए. उस फिल्म के रिलीज के 49 साल बाद आज भी जब कभी मजनूं का जिक्र होता है- हर किसी के जेहन में बस ऋषि कपूर का ही चेहरा प्रतिबिंब बना लेता है. ऋषि के अपोजिट लैला के किरदार में रंजीता ने भी बेमिसाल अदाकारी से इस अमर प्रेम कहानी को अलग ही अमरता प्रदान की. फिल्म की पटकथा अबरार अल्बी ने लिखी थी और गाने लिखे थे- साहिर लुधियानवी ने, जिसका संगीत मदन मोहन और बाद में जयदेव ने तैयार किया था.
इस फिल्म की कहानी, कलाकारों की अदाकारी, संवाद, गीत-संगीत, कॉस्ट्यूम, सेट, बैकड्रॉप आदि सबने मिलकर एक ऐसा ऐतिहासिक समां तैयार किया था जो दर्शकों के दिलो दिमाग में सालों साल तक रचा बसा रहा. कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को… इस रेशमी पाजेब की झनकार के सदके… तेरे दर पे आया हूं… या कि अब अगर हमसे खुदाई भी खफा हो जाए… जैसे मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर की आवाज में गाए युगल गीत आज भी लोगों को मुरीद बनाते हैं और ऋषि कपूर की उम्दा अदाकारी के कायल हो जाते हैं.
खन्ना-बच्चन के दौर में भी पॉपुलर
सबसे खास बात ये कि ऋषि कपूर की ये फिल्में उस दौर में आती हैं जब हिंदी सिनेमा में पहले राजेश खन्ना और फिर अमिताभ बच्चन का जादू चल रहा होता है. बॉबी के दौर में राजेश खन्ना बुलंदी पर थे तो आगे चलकर कर्ज, लैला मजनूं, सरगम, प्रेम रोग या नगीना के समय अमिताभ बच्चन शिखर पर आसीन थे. अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता के दौर में दूसरे सितारों की ज्यादातर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं होती थीं. लेकिन जो सफलता हासिल करती थीं वे एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी होती थीं. अमिताभ काल में ऋषि कपूर की कई फिल्मों ने रिकॉर्ड बनाया.
शायर अकबर को अमर कर दिया
अव्वल तो ये कि ऋषि कपूर और अमिताभ बच्चन कई फिल्मों में साथ-साथ भी आए. दोनों की साथ वाली फिल्मों का सिलसिला कभी कभी से शुरू होता है. हालांकि इस फिल्म में ऋषि कपूर अमिताभ के सामने नई पीढ़ी के युवा किरदार बने हैं लेकिन आगे चलकर अमर अकबर एंथॉनी, कुली, नसीब और फिर 2017 की फिल्म 102 नॉट आउट में कड़ी टक्कर देने वाले कलाकार के तौर पर सामने आते हैं. अमर अकबर एंथॉनी का अकबर इलाहाबादी का किरदार भी लैला मजनूं के किरदार से कम नहीं. इस फिल्म में भी ऋषि कपूर ने अकबर की जैसी भूमिका निभाई है, वह हमेशा के लिए यादगार है. मंच पर पान चबाकर, गुलाब फेंककर और तालियां बजाते हुए कव्वाली गाकर उन्होंने शायर अकबर को अमर कर दिया. मजनूं की तरह अकबर को भी उन्होंने सदा बहार बना दिया.
अमिताभ के साथ जोड़ी रही हिट
इसके बाद कुली फिल्म में लंबू जी अमिताभ बच्चन के आगे टिंगू जी के तौर पर भी उन्होंने वही जलवा कायम रखा. जैसे मजनूं और अकबर मतलब ऋषि कपूर उसी तरह टिंगू जी मतलब ऋषि कपूर. वहीं नसीब में बड़ा भाई-छोटा भाई की जोड़ी हो या फिर 102 नॉट आउट में बाप-बेटे की जोड़ी- ऋषि कपूर हमेशा उन फिल्मों में अमिताभ के किरदार के पूरक प्रतीत होते हैं जिसमें दोनों ने साथ-साथ अभिनय किया था. हां, यह सही है कि अमिताभ बच्चन के बतौर एक्शन हीरो के सामने ऋषि कपूर की कोई खास इमेज नहीं बनी. वो हमेशा लवर बॉय बन कर ही आते रहे.
राउफ लाला-मुराद अली ने इमेज तोड़ी
लेकिन अभिनय की दूसरी पारी में ऋषि कपूर भी अमिताभ बच्चन की तरह ही बेहतरीन फिल्मों में उम्दा किरदारों को निभाते दिखे. दो दुनी चार का संतोष दुग्गल हो, अग्निपथ का राउफ लाला हो, कपूर एंड संस का अमरजीत कपूर हो, मुल्क का मुराद अली हो, राजमा चावल का राज माथुर हो या फिर निधन के बाद आई 2022 की आखिरी फिल्म शर्मा जी नमकीन के बृज गोपाल शर्मा हों. इन फिल्मों के किरदारों के जरिए ऋषि कपूर ने अपनी परंपरागत छवि तोड़ी. वे उस इमेज से बाहर निकले जो उनकी पहली पारी के किरदारों पर चस्पां थी. उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा भी था कि दूसरी पारी में उन्होंने ज्यादा अच्छी फिल्में की हैं. यकीनन ऋषि कपूर अपनी दूसरी पारी की फिल्मों से ज्यादा जाने जाएंगे लेकिन जिन फिल्मों ने उन्हें स्टार बनाया, वे फिल्में तो उनकी बुनियाद हैं.
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