
Religious Significance of Sindur DanImage Credit source: IndiaPix/IndiaPicture/Getty Images
Sindur Dan : हिंदू धर्म में विवाह एक पवित्र बंधन माना जाता है, जिसमें कई महत्वपूर्ण रस्में निभाई जाती हैं. इनमें से एक महत्वपूर्ण रस्म है ‘सिंदूर दान’. यह रस्म न केवल विवाह को पूर्णता प्रदान करती है, बल्कि इसका गहरा सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व भी है. सिंदूर दान हिंदू विवाह परंपरा का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह न केवल एक रस्म है, बल्कि यह विवाहित जीवन के मूल्यों, प्रेम, समर्पण, सुरक्षा और सौभाग्य का प्रतीक भी है. आज भी, यह रस्म उसी श्रद्धा और महत्व के साथ निभाई जाती है और भारतीय संस्कृति में इसका गहरा स्थान है. आइए, इस खबर के माध्यम से जानते हैं कि हिंदू परंपरा में सिंदूर दान क्या होता है और इसका क्या महत्व है.
सिंदूर दान क्या है?
सिंदूर दान विवाह की एक महत्वपूर्ण रस्म है, जिसमें वर (दूल्हा) वधू (दुल्हन) की मांग में पहली बार सिंदूर भरता है. यह रस्म आमतौर पर विवाह मंडप में, अन्य महत्वपूर्ण रस्मों जैसे कन्यादान और फेरों के बाद संपन्न होती है. सिंदूर, जो कि लाल या नारंगी-लाल रंग का पाउडर होता है, सुहाग का प्रतीक माना जाता है.
सिंदूर दान का महत्व
- वैवाहिक स्थिति का प्रतीक
सिंदूर दान के बाद, वधू विवाहित स्त्री के रूप में पहचानी जाती है. यह उसके विवाहित जीवन की शुरुआत का प्रतीक है. विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए प्रतिदिन अपनी मांग में सिंदूर लगाती हैं.
- प्रेम और समर्पण का प्रतीक
सिंदूर का लाल रंग प्रेम, जुनून और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है. जब वर वधू की मांग में सिंदूर भरता है, तो यह उनके बीच अटूट प्रेम और समर्पण के बंधन को दर्शाता है.
- सुरक्षा और सौभाग्य का प्रतीक
हिंदू परंपरा में यह माना जाता है कि सिंदूर लगाने से विवाहित महिला और उसके पति दोनों बुरी नजर और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षित रहते हैं. यह सौभाग्य और समृद्धि का भी प्रतीक है.
- शारीरिक और आध्यात्मिक महत्व
आयुर्वेद के अनुसार, सिंदूर में मौजूद कुछ तत्व (जैसे पारंपरिक रूप से हल्दी और चूना) महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकते हैं. आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, सिंदूर लगाने का स्थान आज्ञा चक्र (माथे के मध्य में) के पास होता है, जिसे ऊर्जा का केंद्र माना जाता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सिंदूर दान का महत्व
वैदिक परंपरा में स्थान
सिंदूर दान का उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है. इसे विवाह के सोलह संस्कारों में से एक माना गया है. मान्यता है कि यह स्त्री के मंगल और उसकी दीर्घायु वैवाहिक जीवन का प्रतीक होता है.
शिव-पार्वती की कथा से जुड़ाव
एक पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. विवाह के समय स्वयं शिव ने पार्वती की मांग में सिंदूर भरा था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है.
सिंदूर दान की रस्म कैसे होती है?
सिंदूर दान की रस्म के दौरान, दूल्हा एक चुटकी सिंदूर लेता है और उसे दुल्हन की मांग के बीच में भरता है. कुछ क्षेत्रों में, दूल्हा यह रस्म किसी सिक्के या अंगूठी की मदद से भी निभाता है. यह क्षण बहुत ही भावनात्मक और पवित्र माना जाता है, जो नवविवाहित जोड़े के जीवन में एक नई शुरुआत का प्रतीक होता है.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.
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