
अनिल अंबानी
अनिल अंबानी समूह की दो प्रमुख कंपनियों रिलायंस पावर और रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) की देशभर में चली कई दिनों की छापेमारी आखिरकार खत्म हो गई है. इन कंपनियों पर यह कार्रवाई 24,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के कथित मनी लॉन्ड्रिंग केस के तहत की गई थी. रविवार को कंपनी ने एक आधिकारिक बयान जारी कर इस बात की पुष्टि की कि ED की छापेमारी अब सभी स्थानों पर समाप्त हो चुकी है.
कंपनी ने साफ कहा है कि वह जांच एजेंसी के साथ पूरा सहयोग कर रही है और भविष्य में भी करती रहेगी. साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि इस कार्रवाई का न तो कंपनी के कारोबार पर असर पड़ा है, न ही वित्तीय प्रदर्शन, निवेशकों, कर्मचारियों या किसी भी अन्य हितधारक पर.
जांच किस मामले को लेकर हुई?
गुरुवार से शुरू हुई यह छापेमारी अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप (ADAG) से जुड़ी कई कंपनियों और व्यक्तियों पर की गई. प्रवर्तन निदेशालय ने यह कार्रवाई यस बैंक, केनरा बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा से मिले लोन और रिलायंस म्यूचुअल फंड द्वारा यस बैंक के बॉन्ड्स में किए गए निवेश की जांच के सिलसिले में की थी. ED को संदेह है कि इन लेन-देन में रिश्वत और फंड डायवर्ज़न जैसी गंभीर गड़बड़ियां हो सकती हैं.
इस छापेमारी के दायरे में देश के 35 से ज्यादा ठिकानों, 50 से अधिक कंपनियों और 25 से अधिक लोगों के नाम आए. हालांकि, अनिल अंबानी का मुंबई स्थित आवास इस जांच की रडार में शामिल नहीं था.
कंपनी ने क्या सफाई दी?
रिलायंस पावर और रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर दोनों ने अपने साझा बयान में कहा कि जिन लेन-देन को लेकर जांच चल रही है, वे रिलायंस कम्युनिकेशन (RCOM) और रिलायंस होम फाइनेंस (RHFL) से जुड़े हैं, जिनका रिलायंस पावर और इंफ्रा की मौजूदा गतिविधियों से कोई लेना-देना नहीं है.
बयान में यह भी दोहराया गया कि अनिल अंबानी इन दोनों कंपनियों के बोर्ड का हिस्सा नहीं हैं. वे 2019 में दिवालिया हो चुकी RCOM के बोर्ड से इस्तीफा दे चुके हैं और अब किसी भी ADAG कंपनी में डायरेक्टर नहीं हैं.
कितनी बड़ी है जांच?
सूत्रों के मुताबिक, 2017 से 2019 के बीच ADAG से जुड़ी कुछ कंपनियों द्वारा करीब 3,000 करोड़ रुपये के लोन डायवर्ट किए गए थे. ED को इस बात के सबूत मिले हैं कि लोन मंजूर होने से ठीक पहले कुछ फर्मों से यस बैंक प्रमोटर्स के लिंक वाले खातों में पैसा ट्रांसफर हुआ था, जिससे किकबैक की आशंका जताई जा रही है.
इसके अलावा जांच में यह भी सामने आया है कि कई ऐसी कंपनियों को लोन दिया गया, जो पहले से वित्तीय रूप से कमजोर थीं. कुछ मामलों में तो एक ही दिन में लोन मंजूर और जारी कर दिए गए, साथ ही एक जैसी निदेशक और पते वाली कंपनियों को बार-बार लोन देकर लोन की एवरग्रीनिंग भी की गई.
खतरें मे समूह की विश्वसनीयता?
भले ही रिलायंस पावर और इंफ्रा ने फिलहाल यह दावा किया है कि छापेमारी का उनके संचालन पर कोई असर नहीं पड़ा लेकिन बाजार और निवेशकों की नजरें इस केस की अगली कड़ी पर टिकी रहेंगी. खासकर तब, जब अनिल अंबानी के खिलाफ IBC के तहत पर्सनल इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया भी चल रही है, जिसकी सुनवाई NCLT, मुंबई में हो रही है. इस पूरी स्थिति को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि भले ही जांच किसी एक हिस्से पर केंद्रित हो, लेकिन उसका असर पूरे समूह की विश्वसनीयता पर पड़ सकता है.
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