
माहौल जरा नाजुक है

नेताओं और अफसरों के ठिकानों पर छापे पड़ रहे हैं. राज्य सरकार ने जांच एजेंसी को कुछ नेताओं और अफसरों के खिलाफ सट्टे की बुरी लत लगने के मामले की जांच का जिम्मा सौंपा था. इसलिए छापा डालना जरूरी था. सीबीआई ने पूर्व सीएम, चार आईपीएस अफसर, दो एडिशनल एसपी समेत एक दर्जन से ज्यादा लोगों के ठिकानों पर दबिश दी थी. अचानक एक रोज सुबह-सुबह सीबीआई ने नामजद लोगों के घरों की घंटी बजाई. दरवाजा खोलने वालों से पूछा- चाय लोगे या चार्जशीट? यह समझते देर नहीं लगी कि यह छापा है. अब पूछताछ और जांच-पड़ताल का उपक्रम चल रहा है. सुना है कि पुलिस ऑफिसर्स मेस में बनाए गए कैम्प कार्यालय में अफसरों से पूछताछ चल रही है. सीडी कांड मामले की जांच के वक्त इसी मेस में पूछताछ की गई थी. उस पर अब तक कुछ हुआ नहीं. फिलवक्त जिस घटना का जिक्र हो रहा है, उसे लेकर बाजार की चर्चा गर्म है. सच क्या है. शायद ही कोई जानता होगा, लेकिन चर्चा किस तरह की है सुनिए. (1) एक आईपीएस के घर 70 लाख कैश बरामद हुआ. (2) सीबीआई ने एक आईपीएस को दो थप्पड़ रसीद किए. झूमाझटकी हुई. (3) एक आईपीएस सरकारी गवाह बनने के लिए तैयार है. (4) एक एडिशनल एसपी की अरेस्टिंग हो गई है. दरअसल हाई प्रोफाइल लोगों के ठिकानों पर पड़ने वाले छापे की चर्चा भी हाई प्रोफाइल होती है. कई बार यह चर्चा सच से कोसों दूर होती है. कई बार झूठ, सच लगता है और कई बार सच, झूठ. जांच एजेंसी भी खूब माहौल बनाती है. सीबीआई के तौर तरीके बाकी जांच एजेंसियों से थोड़े अलग होते हैं. सीबीआई मिजाज में सख्त होती है. जांच पर्दे के उस पार है. जाहिर है, पर्दे के उस पार क्या चल रहा है, यह फिलहाल कोई नहीं जानता. मगर पर्दे के इस पार चर्चा के कैनवास पर पूरी तस्वीर उकेरी जा रही है. इन सबको देखकर एक सीनियर आईपीएस ने ‘पाॅवर सेंटर’ लिखने वाले इस स्तंभकार से कहा, जिंदगी में कुछ नहीं रखा है. अब न ‘कैश’ चाहिए और न ही ‘केस’, अब बस शांति चाहिए. वह आगे कहते हैं, सूबे का माहौल जरा नाजुक है.
जिले-दर-जिले
राज्यपाल खूब दौरे कर रहे हैं. वह जिले-दर-जिले घूम रहे हैं. अफसरों को तलब कर सरकारी योजनाओं की समीक्षा बैठक ले रहे हैं. राज्यपाल के इस तरह के दौरों पर यकीनन सरकार यह सोचकर अपना दिमाग कुरेद रही होगी कि आखिर यह चल क्या रहा है? संविधान में राज्यपाल का अधिकार क्षेत्र स्पष्ट रूप से परिभाषित है. संविधान के अनुच्छेद 153 से 162 में राज्यपाल की नियुक्ति, शक्ति और उनके कार्यों का ब्यौरा है. राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख जरूर है, लेकिन कार्यपालिका की शक्तियां मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट में है. राज्यपाल का काम संवैधानिक निगरानी और संविधान का संरक्षण करने भर का है. जानकार कहते हैं कि राज्यपाल प्रोटोकाल के तहत राज्य का दौरा कर सकते हैं. सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत का निरीक्षण कर सकते हैं, लेकिन अधिकारियों को सीधे तलब करना और समीक्षा बैठक लेना राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. यह बात और है कि अपवाद या विशेष परिस्थितियों जैसे- संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत यदि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है, तो राज्यपाल को विस्तृत प्रशासनिक अधिकार मिल जाते हैं. एक व्यावहारिक पक्ष और है. राज्यपाल सार्वजनिक मंचों पर प्रशासनिक कार्यों की आलोचना कर सकते हैं या सुझाव दे सकते हैं, लेकिन यह भूमिका भी सीमित होती है. राज्य का प्रशासनिक नियंत्रण पूरी तरह से राज्य सरकार के अधीन होता है. मगर सरकार भी क्या करे? राज्यपाल की पृष्ठभूमि ऐसी है कि मन मसोसकर बैठने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है. खासतौर पर तब तक, जब तक केंद्र राज्यपाल की इस मैराथन पारी पर नजर-ए-इनायत न कर ले.
आर्थिक दर्द
गरीबों की खैरख्वाह सरकार ने कम से कम शराब के मामले में अमीरों की सुध ली है. सरकार ने अंग्रेजी शराब की कीमतों में 4 फीसदी से लेकर 9.5 फीसदी तक की कटौती की है. महंगी शराब सस्ती हो गई है. दिलचस्प पहलू यह है कि शराब से सरकार को होने वाली कमाई का 60 फीसदी हिस्सा देसी शराब की बिक्री से आता है. गरीब, मजदूर, किसान, आदिवासी वर्ग देसी शराब पर ही टिका है. देसी शराब की एक बाटल करीब 90 रुपए की आती है. बताते हैं कि डिस्टलरी वालों को इसे बनाने का खर्चा महज 9-10 रुपए पड़ता है. पहले से कटी-फटी जेब वाला गरीब तबका शराब के मामले में भी आर्थिक चोट ही खाता है. कोई बताए कि देसी शराब दुकानों पर उमड़ रही इस ‘गरीब भीड़’ का दर्द हुक्मरानों तक कैसे पहुंचे? इस आर्थिक दर्द की उनमें गहरी पीड़ा है भाई. अब अंग्रेजी शराब की कीमतों में हुई कटौती को देखकर आशंका बढ़ गई है कि कहीं देसी शराब पीने वाला वर्ग देसी शराब की कीमतों में कटौती की मांग को लेकर आंदोलन का ऐलान न कर दें. खैर, सरकार जानती है कि इस वर्ग में विरोध का साहस नहीं. विरोध के लिए आंदोलन का रास्ता अख्तियार करना पड़ता है. आंदोलन की पहली अनिवार्य शर्त है, सतत् संघर्ष. गरीब मजदूरों के हिस्से हर दिन की रोजी रोटी जुटाने का संघर्ष नियति ने पहले ही तय कर रखा है. खैर, देसी शराब की दुकानों पर घुमकर आइएगा तो मालूम पड़ेगा कि अंग्रेजी शराब सस्ती होने की गरीब तबके की पीड़ा दो घूट गले के नीचे उतरने के बाद किन-किन शब्दों के रूप में बाहर आ रही हैं. न ही सुने तो बेहतर होगा.
सरकार का घाटा
नई आबकारी नीति में सरकार ने शराब पर लगने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर सेस और अतिरिक्त उत्पाद शुल्क हटा दिया है. इस वजह से अंग्रेजी शराब की दरों में गिरावट आई. इसका असर सरकार की कमाई पर सीधे पड़ेगा. करीब एक हजार करोड़ रुपए की कमाई घट जाएगी. मगर सरकार का मानना है कि शराब की दरों में कमी और 67 नए शराब दुकानों से न केवल यह घाटा भर लिया जाएगा बल्कि शराब से सरकार की बंपर कमाई भी होगी. शराब सरकार के राजस्व का एक अहम हिस्सा है. इस साल सरकार ने करीब 15 हजार करोड़ रुपए कमाने का लक्ष्य रखा है. इधर सरकार शराब से कमाई का अपना लक्ष्य बढ़ा रही है, उधर दूसरी ओर स्टार होटल्स हो और हाई प्रोफाइल पार्टीज में दूसरे राज्यों की शराब की बड़ी खेप सरकार के खजाने पर चोट कर रही है. ओडिशा, मध्यप्रदेश, हरियाणा जैसे राज्यों से पहुंच रही अवैध शराब जमकर बह रही है. राज्य सरकार के हिस्से आने वाली कमाई भी अवैध शराब के बहाव में तेजी से बह रही है. यह अवैध शराब है, जो टैक्स नहीं देती. इस पर सरकार अंकुश लगा दे, तो समझिए सीधे डेढ़ से दो हजार करोड़ रुपए की बंपर कमाई सरकार के खजाने में बढ़ जाएगी. अब सरकार जाने क्या करना है और क्या नहीं. वैसे भी यह सरकार का सिरदर्द है ?
सीआईसी कौन?
छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग में नए सीआईसी के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनी सर्च कमेटी ने इंटरव्यू की प्रक्रिया पूरी कर ली है. सर्च कमेटी अब नामों का पैनल बनाकर सरकार को भेजेगी. मुख्य सचिव अमिताभ जैन, पूर्व डीजीपी अशोक जुनेजा सरीके कई बड़े नाम इंटरव्यू में शामिल हुए. कई बड़े नाम थे, जिन्होंने मैदान से हटना मुनासिब समझा. सीआईसी के लिए सबसे मजबूत दावेदारी अमिताभ जैन की है. सीआईसी के लिए जारी किए गए विज्ञापन के बीच आनन-फानन में उन्होंने अपना आवेदन जमा किया था. हालांकि अशोक जुनेजा की दावेदारी ने चिंतकों को सोचने पर थोड़ा मजबूर जरूर कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक सर्च कमेटी के इंटरव्यू लिए जाने के दो हफ्तों के भीतर नए सीआईसी के नाम का ऐलान करना है. दो हफ्ते की मियाद 8 अप्रैल को पूरी हो जाएगी. सरकार 4-5 अप्रैल तक व्यस्त है. केंद्रीय गृह मंत्री का दौरा प्रस्तावित है. यानी यह तय है कि सीआईसी पर अंतिम फैसला इसके बाद ही होगा. मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सरकार द्वारा अधिकृत किए गए एक मंत्री की कमेटी किसी एक नाम पर अंतिम मुहर लगाएगी. इन सबके बीच एक बड़ा सवाल यह है कि अगर अमिताभ जैन के नाम पर ही अंतिम मुहर लगती है, तो इससे पहले सरकार को राज्य के नए मुख्य सचिव के नाम पर भी विचार करना होगा. सरकार के सूत्र बताते हैं कि नए मुख्य सचिव के नाम पर सरकार चौंकाने वाला फैसला ले सकती है.
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