पीएम मोदी, राष्ट्रपति जेलेंस्की (फाइल फोटो)
तेईस अगस्त यानी आज का दिन यूक्रेन के लिए काफी अहम है. इस दिन यहां राष्ट्रीय झंडा दिवस मनाया जाता है और इस ऐतिहासिक मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंच रहे हैं. यानी यूक्रेन के ऐतिहासिक महोत्सव पर एक और नया इतिहास रचे जाने की पूरी संभावना है. युद्धग्रस्त यूक्रेन की धरती पर उतरने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस, अमेरिका, चीन के साथ-साथ ग्लोबल साउथ के देशों को आखिर क्या संदेश देते हैं, ये तो साफ-साफ कुछ ही घंटों के बाद पता चल जाएगा लेकिन उससे पहले पोलैंड यात्रा के दौरान उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स को देखें तो तस्वीर कुछ हद तक साफ हो जाती है. उनका मैसेज था- भारत बुद्ध की विरासत वाली धरती है, जो युद्ध नहीं शांति पर विश्वास करती है. यकीनन यहां भगवान बुद्ध का जिक्र यूं ही नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी कई मौकों पर गौतम बुद्ध का संदेश व्यक्त कर चुके हैं लेकिन यूक्रेन यात्रा से पहले उनका बुद्ध का संदेश महज शांति नहीं बल्कि वैश्विक संतुलन के लिए भी है. जिसकी दुनिया को आज ज्यादा दरकार है.
गौरतलब है कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को दो ध्रुवों में बांट दिया. कोई देश युद्ध रोकने की पहल नहीं कर सका. बल्कि दो ध्रुवीय होकर तमाम मुल्कों ने अपने अपने हित को आगे रखा. लेकिन भारत ने विश्व मानवता के हित को श्रेष्ठ स्थान दिया. भारत ने बहुत पहले ही युद्ध खत्म करने और शांति स्थापना की अपील की. भारत ने हमेशा कहा कि युद्ध मानवता का दुश्मन है. इस युद्ध को लेकर भारत न कभी अमेरिका, नाटो के आगे झुका और न रूस से एकतरफा संबंध बनाया. प्रधानमंत्री मोदी इससे पहले भी जेलेंस्की से मिल चुके हैं और जुलाई के पहले हफ्ते से पहले पुतिन से भी. इन मुलाकातों में प्रधानमंत्री ने कभी भी किसी एक देश के हित का साथ नहीं दिया. दोनों देशों से भारत से द्विपकक्षीय संबंध हो सकते हैं लेकिन युद्ध के मोर्चे पर भारत ने मानवता के आगे तटस्थ रखना मुनासिब समझा. अब फिर प्रधानमंत्री मोदी पोलैंड के रास्ते यूक्रेन पहुंचने से पहले भगवान बुद्ध का संदेश प्रसारित करते हैं और विश्व बंधुत्व की भी बात कहते हैं तो ये बात और भी अहम हो जाती है.
जेलेंस्की से पहले पुतिन से की थी मुलाकात
आखिर प्रधानमंत्री ने रूस यात्रा के महज डेढ़ महीने के भीतर ही यूक्रेन की यात्रा क्यों की, यह अहम प्रश्न है और दुनिया भर के मीडिया में गर्मागरम चर्चा का विषय भी. पूरी दुनिया भारत के इस कदम की अपने अपने हिसाब से व्याख्या कर रही है. कोई भारत के ऊपर अमेरिका का दवाब बता रहा है तो कोई यूरोपीय संघ का. लेकिन उससे पहले मोदी के के संदेश के सार को समझना भी बेहद जरूरी है. भगवान बुद्ध का सारा दर्शन शांति और बंधुत्व पर टिका है लेकिन इसके लिए उन्होंने मध्यम मार्ग अपनाने पर जोर दिया था. आखिर यह मध्यम मार्ग क्या है. वास्तव में यह मध्यम मार्ग संतुलन ही है. और इसका संदेश वही देश दुनिया को दे सकता है जहां बुद्ध, महावीर और गांधी जैसी महापुरुषों ने जन्म लिया.
भारत का इतिहास युद्ध की विभीषिकाओं से भरा है. युद्ध का दुष्परिणाम क्या होता है, यह भारत दुनिया को बताने में सक्षम है. जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी का दौरा उस धरती पर हो रहा है जहां पिछले ढाई साल से केवल युद्ध और विध्वंस देखा गया है, वहां मानवता को कुचल दिया गया है. तो वहां जाने से पहले पीएम ने कहा कि भारत का मत एकदम साफ है कि यह युग युद्ध का नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी इसके बाद कहते हैं- आज का भारत सबसे जुड़ना चाहता है, आज का भारत सबके विकास की बात करता है, आज का भारत सबके हित की सोचता है और यही वजह है कि आज दुनिया भारत को विश्वबंधु के रूप में सम्मान दे रही है.
भारत ने इंटरनेशनल दवाब को किया खारिज
वैसे तो भारत और यूक्रेन के प्रतिनिधियों ने कहा कि राष्ट्रीय झंडा दिवस के मौके पर पीएम मोदी की यात्रा आधिकारिक तौर पर आर्थिक संबंधों के अलावा रक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए है. लेकिन जानकारों की राय में यह यात्रा पीएम मोदी की पिछले दिनों की गई मॉस्को यात्रा के बाद सामने आई प्रतिक्रियाओं के बाद उपजे हालात का नतीजा है. अंतरराष्ट्रीय मीडिया लिख रहा है रूस के साथ अपने पुराने और नजदीकी रिश्ते के मद्देनजर भारत एक बार फिर से तटस्थ रुख दिखाने की कोशिश कर रहा है. भारत यह दिखाना चाहता है कि वह रूस के भी साथ है और अमेरिका के भी. क्योंकि नाटो बैठक के माहौल में प्रधानमंत्री मोदी की मॉस्को यात्रा के बाद अमेरिका ने भी कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया था और भारत-अमेरिका संबंध पर करीबी नजर रखने वाले देशों ने भी इसे नापसंद किया था.
हालांकि उस वक्त भी भारत ने इन टिप्पणियों की परवाह नहीं की. लेकिन टिप्पणीकार मानते हैं यह दौरा भारत का डैमेज कंट्रोल है. अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने वाला है. अब से कुछ दिनों पहले तक रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप सर्वे में आगे चल रहे थे लेकिन अब डेमोक्रेट्स प्रत्याशी कमला हैरिस ट्रंप से दो प्वॉइंट आगे चल रही हैं. द न्यू यॉर्क टाइम्स के मुताबिक 22 अगस्त को ट्रंप 47 फीसदी तो कमला हैरिस को 49 फीसदी वोट पर हैं. पिछली बार मोदी जब पुतिन से मिले थे उस वक्त ट्रंप काफी आगे चल रहे थे और बाइडेन की युद्ध नीति के चलते उनसे नाराजगी देखी जा रही थी लिहाजा बाइडेन का ग्राफ नीचे थे. लेकिन कमला के सामने आने के बाद तस्वीर बदल गई है.
भारत ने यूक्रेन को भी दी है अहमियत
8-9 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी की मॉस्को यात्रा के दौरान रूस ने यूक्रेन पर मिसाइल भी दागे थे, जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी. उस वक्त पुतिन के साथ मोदी की बैठक को लेकर यूक्रेन की सरकार की तरफ से गहरी निराशा जताई गई थी. यूक्रेन ने भारत के रुख पर अफसोस जताया था. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बयान में युद्ध, हिंसा और हमले में निर्दोष लोगों के मारे जाने पर गंभीर चिंता जताई थी और इसे तुरंत रोके जाने का भी आह्वान किया था. हालांकि यह तथ्यात्मक तौर पर सही है कि रूस के मुकाबले यूक्रेन के साथ भारत के द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते काफी कम हैं. यह भी सही है कि रूस से तेल का आयात भारत के लिए भी काफी अहम है. लेकिन भारत ने यूक्रेन को भी उतनी ही अहमियत दी है. मानवता के नाते भारत ने यूक्रेन की मदद की है.
भारत की नजर ग्लोबल साउथ के हित पर भी
रूसी हमले के बाद भारत सरकार ने यूक्रेन को कई स्तर पर मानवीय सहायता प्रदान की है. भारत जानता है कि यूक्रेन की धरती सूर्यमुखी के तेल और गेहूं की उपज के लिए काफी अहम है. इसकी खपत ना केवल भारत समेत यूरोपीय देशों में होती रही है बल्कि ग्लोबल साउथ के देशों को भी इसकी उतनी ही जरूरत रही है. प्रधानमंत्री मोदी ग्लोबल साउथ के देशों में खासतौर पर दक्षिण अफ्रीका के हितों की व्यापक तौर पर चिंता जता चुके हैं. यूक्रेन की उपज यहां के देशों को भी मिलती रहे, ताकि गरीब मुल्कों और यूक्रेन का व्यापार भी फलता फूलता रहे.
ऐसे में साफ है कि युद्ध की समाप्ति के लिए भारत ना केवल रूस और अमेरिका के बीच संतुलन बनाकर चलना चाहता है बल्कि भारत ग्लोबल साउथ में चीन के विस्तारवाद को रोकने के लिए भी प्रयासरत है. अमेरिका इस मुद्दे पर भारत के साथ है. भारत इस मोर्चे पर भी संतुलन बनाकर चलना चाहता है. भारत मानता है कि दुनिया को शांति और संतुलन की राह दिखाते रहने से ही एक दिन युद्ध समाप्त होगा. इसी वजह से प्रधानमंत्री मोदी बार बार विश्ववंधुत्व की बात दोहराते हैं. उन्होंने फिर कहा कि भारत सदा से ही मानता रहा कि उसके लिए दुनिया एक परिवार है. वसुधैव कुटुंबकम. और जहां परिवार होता है वहां वॉर के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. और यही इस यात्रा का मकसद है.
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