NGT ने उत्तराखंड के 2 बड़े अफसरों से मांगा जवाब
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal, NGT) ने आज सोमवार को उत्तराखंड के पर्यावरण और शहरी विकास सचिवों को सीवेज उपचार संयंत्रों ( Sewage Treatment Plants) की स्थापना के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी देने को कहा है.
एनजीटी बद्रीनाथ में अपर्याप्त सीवेज उपचार संयंत्रों (STP) के कारण अलकनंदा नदी में गंदा पानी के गिरने से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा था. सुनवाई के दौरान एनजीटी ने राज्य के अधिकारियों से बद्रीनाथ में हर दिन उत्पन्न होने वाले सीवेज की मात्रा का भी पता लगाने को भी कहा है.
मौजूदा STP क्षमता पर्याप्त नहीं: NGT
हाल में एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की बेंच ने कहा कि उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और उत्तराखंड पेयजल निगम ने इस संबंध में जो रिपोर्ट पेश की है, उसके अनुसार वहां सिर्फ दो एसटीपी ही मौजूद हैं, जिनकी क्षमता 0.23 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) और एक एमएलडी है.
बेंच ने इस बारे में कहा, “मौजूदा एसटीपी क्षमता पर्याप्त नहीं लग रही है और इसमें बहुत बड़ा अंतर है. साथ ही बिना उपचारित सीवेज नदी में बह सकता है. इसके अलावा, दोनों एसटीपी में हर दिन कितनी मात्रा में सीवेज आ रहा है, इसका भी खुलासा नहीं किया गया है.”
अगली सुनवाई में उपस्थित हों दोनों अफसरः NGT
एनजीटी ने कहा, “उपचारित अपशिष्ट जल के रिजल्ट यह बताते हैं कि कलेक्शन टैंक से आंशिक रिसाव हुआ है और अपशिष्ट जल सीधे अलकनंदा नदी में बहाया जा रहा है.” बेंच ने उत्तराखंड के जल निगम के एक अधिकारी की इस दलील पर संज्ञान भी लिया कि अतिरिक्त एसटीपी स्थापित करने के लिए फिलहाल कोई परियोजना या प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है.
बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2017 में एसटीपी स्थापित करने के लिए तीन साल की समयसीमा तय की थी और देश की सबसे बड़ी अदालत की ओर से राज्य के पर्यावरण सचिव को इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी दी गई थी.
एनजीटी ने अपने आदेश में कहा, “हम चाहते हैं कि राज्य के शहरी विकास सचिव और पर्यावरण सचिव अगली सुनवाई (13 अक्टूबर) पर उपस्थित हों और इस बारे में जानकारी दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन के लिए क्या कदम उठाए गए हैं. साथ ही, रोजाना आने वाले पर्यटकों और स्थानीय आबादी को ध्यान में रखते हुए रोजाना होने वाले सीवेज उत्पादन की मात्रा भी साफ तरीके से बताएं.” ट्रिब्यूनल ने कहा, “हमने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया है कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (Solid Waste Management) के संबंध में भी कोई संतोषजनक जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है.”
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