
तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन तुर्की को ओटोमन साम्राज्य की तरह फैलाना चाहते हैं.
तुर्की अपने इतिहास में फिर से लौटना चाहता है, राष्ट्रपति एर्दोगन ऑटोमन साम्राज्य को फिर से स्थापित करने की चाहत रखते हैं, इसे नव ओटोमनवाद का नाम दिया गया है, जिसका प्रभाव तुर्की की विदेश नीति पर दिखता है. ऐसा माना जाता है कि सीरिया को जिस तरह से तुर्की फंसा रहा है, यह उसके नव ओटोमनवाद का ही एक हिस्सा है. पहले बशर अल असद को सत्ता से हटाना और फिर सीरिया के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर तुर्की धीरे-धीरे अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रहा है.
ऑटोमन साम्राज्य को तुर्क साम्राज्य भी कहा जाता है, यह विश्व इतिहास में अब तक का सबसे मजबूत और निर्दयी साम्राज्य रहा है. कई इतिहासकार तो इसे मुगलों से भी ज्यादा घातक मानते रहे हैं. इसकी स्थापना तुर्की जनजातियों ने की थी, मिडिल ईस्ट के अलावा दक्षिण-पूर्वी यूरोप, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्से इस साम्राज्य का हिस्सा थे. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन कई बार इस साम्राज्य की वापसी का जिक्र कर चुके हैं. वह अपने समर्थकों को ऑटोमन्स का ग्रांड चिल्ड्रन कहते रहे हैं.
क्या है ऑटोमन साम्राज्य का इतिहास?
ऑटोमन साम्राज्य की स्थापना तुर्की जनजातियों ने की थी, जिन्होंने अपनी सैन्य कुशलता और इस्लाम के प्रचार प्रसार के माध्यम से अपने साम्राज्य का विस्तार किया. इसकी स्थापना 13 वीं शताब्दी में हुई थी, 14 वी शताब्दी में यह साम्राज्य यूरोप में पहुंच और वहां गैलीपोली, एड्रियानोपोल और अन्य क्षेत्रों पर अधिकार किया. इसके बाद 1453 में कांस्टेंटिनोपल जिसे इंस्ताबुल के नाम से जाना जाता है, की विजय ने साम्राज्य के इतिहास को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंचाया और इसे ऑटोमन साम्राज्य की राजधानी बन गई. इसके बाद तुर्की लड़ाके रुके नहीं और बाल्कन प्रायद्वीप, मिडिल ईस्ट, उत्तरी अफ्रीका और यूरोप पर अपना नियंत्रण स्थापित किया. इनमें सिर्फ विएना आक्रण ऐसा था जिससे यूरोप में विस्तार की महत्वाकांक्षा कम हो गई. 16 वीं शताब्दी में सुल्तान सुलेमान के निधन के बाद ऑटोमन साम्राज्य की जानिसारी सेना कमजोर पड़ गई.यूरोपीय शक्तियों के उदय ने भी ऑटोमन साम्राज्य पर दबाव बढ़ाया. 17वीं शताब्दी तक, साम्राज्य का पतन होता रहा और धीरे-धीरे 19वीं शताब्दी में इस साम्राज्य का पतन हो गया.
सीरिया से लेकर इजराइल सब ऑटोमन साम्राज्य की जद में
ऑटोमन साम्राज्य का मूल क्षेत्र अनातोलिया था, जो आधुनिक तुर्की कहा जाता है, इसकी राजधानी इंस्ताबुल थी, जिसे उस वक्त कांस्टेंटिनोपल कहा जाता था. 1453 से लेकर साम्राज्य के अंत तक सत्ता की बागडोर तुर्की में ही रही, जबकि मिडिल ईस्ट, यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के देश इसका हिस्सा थे. मिडिल ईस्ट में ही देखें तो आज जहां सीरिया, इजराइल, लेबनान, फिलिस्तीन, इराक, जॉर्डन और सऊदी अरब तथा यमन हैं वह सारा इलाका ऑटोमन साम्राज्य का ही हिस्सा था. इसके अलावा दक्षणपूर्वी यूरोप में ग्रीस, बुल्गारिया, रोमानिया, मकदूनिया, अल्बानिया, सर्बिया, मेंटेनेग्रो और हंगरी के कुछ हिस्से अलावा उतरी अफ्रीका में मिस्र, लीबिया, ट्यूनीशिया और अल्जीरिया के कुछ हिस्से शामिल थे.
एर्दोगन ने क्यों छेड़ा नव ओटोमनवाद का शिगूफा
नव-ओटोमनवाद तुर्की की विदेश नीति है, इसके तहत एर्दोगन ओटोमन साम्राज्य के प्रभाव को फिर से स्थापित करना चाहते हैं. इसका उद्देश्य तुर्की को एक क्षेत्रीय और वैश्विक ताकत के तौर पर स्थापित करना है. इसके अलावा दुनिया के तुर्की के सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाना है. भूममध्यसागर, बाल्कन और मिडिल ईस्ट में तुर्की जिस तरह से हस्तक्षेप कर रहा है उसे इस नव ओटोमनवाद की विस्तारवादी नीति से ही जोड़ा जा रहा है. एर्दोगन का मानना है कि नवओटोमनवाद तुर्की के लिए महान शक्ति के तौर पर अपनी भूमिका को फिर से हासिल करने का तरीका है.
एर्दोगन का क्या है कहना?
एर्दोगन कई बार ओटोमन साम्राज्य की पूर्व सीमा और प्रभुत्व का संदर्भ देते हुए क्षेत्रीय महतव पर जोर देते हैं, Algemeiner की एक रिपोर्ट में उनके हवाले से कहा गया है कि तुर्की एक राष्ट्र में रूप में सिर्फ 782,000 वग किमी तक सीमित नहीं है, हमारा मिशन इतिहास के बड़े भूभाग का हिस्सा बनने की प्रेरणा देता है. वह कहते हैं कि ओटोमन वंश की परंपराओं को फिर से सक्रिय करने की आवश्यकता है. विदेश नीति में भी वह पांचदिशात्मक बढ़ोतरी की नीति अपनाई है, वह सीरिया, लीबिया और पूर्वी भूमध्य सागर में सक्रियता बढ़ा रहे हैं, इसे ही नव ओटोमनवाद कह रहे हैं. इंस्ताबुल की एक रैली में उन्होंने ओटोमन साम्राज्य के याद दिलाते हुए कहा था कि गाजा हमारे अदाना की तरह था, इस तरह के मामले दोबारा न हों, इसलिए तुर्की का विस्तार करना होगा.
सीरिया में कैसे पैठ बढ़ा रहे एर्दोगन
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन सीरिया में पैठ बढ़ा रहे हैं, उन्होंने पिछले साल अक्टूबर में ही ये ऐलान कर दिया था कि सीरिया से अच्छी खबर आने वाली है, इसके ठीक बाद ही HTS विद्रोहियों ने बशर अल असद को भागने को मजबूर कर दिया था. बेशक तुर्की ने प्रत्यक्ष रूप से इसमें शामिल नहीं था, मगर दुनिया जानती है कि HTS को एर्दोगन का खुला समर्थन प्राप्त है. अंकारा के साथ इस संगठन के मजबूत संबंध रहे हैं. ये संगठन मदद और सुरक्षा के लिए तुर्की पर ही निर्भर है. अब सीरिया की सत्ता अहमद अल शरा के साथ हैं जो HTS के ही नेता रहे हैं. तुर्की की चाहत है कि वे सीरिया को तुर्की की एक छवि के तौर पर उभारें. सिर्फ विचारधारा ही नहीं बल्कि वह आर्थिक तौर पर भी सीरिया में दिलचस्पी रख रहे हैं. दलअसल ISIS के पतन के बाद उन्हें उम्मीद है सीरिया पर लगे प्रतिबंधों से राहत मिलेगी, ऐसे में तुर्की सीरिया के पुनर्निर्माण का नेतृत्व करने की इच्छा रखता है. दरसल दमिश्क के वर्तमान शासकों के इस्लामी झुकाव पर सवालों के बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ ने सीरिया पर लगे कठोर आर्थिक प्रतिबंधों में सावधानीपूर्वक ढील देने पर सहमति व्यक्त की है , ताकि सीरिया फिर अपने पैरों पर खड़ा हो सके.
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