
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 नवंबर, 2009 को हर साल 18 जुलाई को “नेल्सन मंडेला अंतर्राष्ट्रीय दिवस” मनाने की घोषणा की.Image Credit source: Getty Images
आज यानी 18 जुलाई को पूरी दुनिया नेल्सन मंडेला दिवस के रूप में मनाती है. यह सिलसिला साल 2009 से शुरू हुआ और अब तक चल रहा है. युगों-युगों तक चलने वाला है. दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति, रंगभेद के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक, और मानवता के लिए मिसाल बन चुके नेल्सन मंडेला का जीवन साहस, त्याग और प्रेरणा की मिसाल है.
उनका जन्म 18 जुलाई 1918 को हुआ था. वे होते तो 108 साल के हो चुके होते. पर, वे ऐसी हस्ती थे कि सशरीर भले नहीं हैं लेकिन उनके विचार से दुनिया आज भी आलोकित हो रही है और युगों-युगों तक होती रहेगी.आइए, जन्म जयंती पर उनके जीवन से जुड़े कुछ अनसुने पहलुओं, सवालों और रोचक किस्सों को विस्तार से जानते हैं.
गिरफ्तारी के लिए खुफिया एजेंसी की मदद क्यों लेनी पड़ी?
नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ सबसे मुखर और प्रभावशाली नेता बन चुके थे. 1960 के दशक में उन्होंने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत की. सरकार को डर था कि मंडेला की लोकप्रियता और नेतृत्व से रंगभेदी शासन गिर सकता है.
मंडेला भूमिगत हो गए, वे लगातार जगह बदलते रहते, भेष बदलकर यात्रा करते थे और गुप्त बैठकों में हिस्सा लेते थे. उन्हें पकड़ना सरकार के लिए चुनौती बन गया था. इसी वजह से दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने ब्रिटिश और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की मदद ली. सरकार ने उन्हें कम्युनिस्ट घोषित कर दिया था. ऐसी ही रिपोर्ट अमेरिका और पश्चिमी देशों को भी दी गई थी. ऐसे में वहां की खुफिया एजेंसियां भी लग गईं. साल 1962 में CIA ने मंडेला की लोकेशन की जानकारी दक्षिण अफ्रीकी पुलिस को दी, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उस समय वे अपनी कार खुद चला रहे थे.
मंडेला से क्यों डरता था अमेरिका?
शीत युद्ध के दौर में अमेरिका को डर था कि अफ्रीका में कम्युनिस्ट विचारधारा न फैल जाए. मंडेला और अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के कई नेता समाजवाद और सोवियत संघ के करीब माने जाते थे. अमेरिका को आशंका थी कि अगर मंडेला सत्ता में आए, तो दक्षिण अफ्रीका सोवियत संघ के प्रभाव में जा सकता है, जिससे अमेरिका के रणनीतिक और आर्थिक हितों को नुकसान हो सकता है. इसी वजह से अमेरिका ने मंडेला और ANC को “आतंकवादी” सूची में डाल दिया था. साल 2008 तक मंडेला का नाम अमेरिकी आतंकवादी वॉच लिस्ट में था, जिसे बाद में हटाया गया.
मंडेला अपने पीछे कितनी संपत्ति छोड़कर गए?
नेल्सन मंडेला ने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा जेल, संघर्ष और समाज सेवा में बिताया. उनके पास कोई बड़ी निजी संपत्ति नहीं थी. 2013 में उनकी मृत्यु के बाद उनकी वसीयत के अनुसार, उन्होंने लगभग 4.1 मिलियन डॉलर (लगभग 25 करोड़ रुपये) की संपत्ति छोड़ी थी. इस संपत्ति में उनकी किताबों की रॉयल्टी, पुरस्कार राशि, कुछ रियल एस्टेट और व्यक्तिगत वस्तुएं शामिल थीं. उन्होंने अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा परिवार, सहयोगियों, कर्मचारियों और शिक्षा व स्वास्थ्य से जुड़े ट्रस्टों को दान कर दिया.

मंडेला ने अपने जीवन के 27 साल जेल में बिताए. फोटो: Getty Images
उन्हें मदीबा क्यों कहा जाता था?
मदीबा नेल्सन मंडेला का कबीलाई नाम है. दक्षिण अफ्रीका में मदीबा उनके पूर्वजों के कबीले का नाम है, जो सम्मान और प्यार का प्रतीक है. वहां परंपरा है कि बुजुर्गों और आदरणीय लोगों को उनके कबीलाई नाम से पुकारा जाता है. मंडेला को मदीबा कहने का अर्थ है, उन्हें परिवार के बुजुर्ग, मार्गदर्शक और सम्माननीय व्यक्ति के रूप में देखना. दक्षिण अफ्रीका में आज भी लोग उन्हें प्यार से मदीबा कहते हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने की नेल्सन मंडेला दिवस मनाने की घोषणा
यह उस महान हस्ती के विचारों का प्रभाव था कि जो देश अमेरिका उन्हें आतंकवादी कहता था, उसी धरती पर मौजूद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 नवंबर 2009 को एक प्रस्ताव पारित करके हर साल 18 जुलाई को “नेल्सन मंडेला अंतर्राष्ट्रीय दिवस” के रूप में मनाने की घोषणा की. यह दिन मंडेला के जन्मदिन पर मनाया जाता है और उनके मूल्यों, शांति, स्वतंत्रता, न्याय और मानवाधिकारों के प्रति उनके समर्पण को याद करने के लिए समर्पित है.
27 साल जेल में बिताए
मंडेला ने अपने जीवन के 27 साल जेल में बिताए. इनमें से 18 साल रोबेन आइलैंड की जेल में रहे, जहां उन्हें कठोर श्रम करना पड़ता था. जेल में उन्हें पत्थर तोड़ने का काम दिया गया था. वहां की सख्त परिस्थितियों के बावजूद, मंडेला ने कभी हार नहीं मानी.
मंडेला ने जेल में रहते हुए साथी कैदियों को पढ़ाया, उन्हें कानून, राजनीति और मानवाधिकारों की शिक्षा दी. रोबेन आइलैंड की जेल को मंडेला यूनिवर्सिटी भी कहा जाता था, क्योंकि वहां से कई कैदी पढ़-लिखकर बाहर निकले.
जेल से रिहा होने के बाद मंडेला ने अपने जेलर को राष्ट्रपति भवन में चाय पर बुलाया. उन्होंने कहा, अगर मैं जेल से नफरत लेकर बाहर आता, तो मैं आज भी कैदी ही रहता। उन्होंने अपने विरोधियों को माफ कर दिया और देश में मेल-मिलाप की नई शुरुआत की.
साल 1995 में दक्षिण अफ्रीका में रग्बी वर्ल्ड कप हुआ. मंडेला ने श्वेत खिलाड़ियों की टीम को समर्थन दिया, जबकि अश्वेत लोग इसे रंगभेदी खेल मानते थे. फाइनल में मंडेला ने टीम की जर्सी पहनकर ट्रॉफी दी, जिससे देश में एकता और मेल-मिलाप का संदेश गया. इस घटना पर इनविक्टस नामक फिल्म भी बनी है.

नेल्सन मंडेला ने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा जेल, संघर्ष और समाज सेवा में बिताया. फोटो: Getty Images
नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न
साल 1993 में नेल्सन मंडेला और तत्कालीन राष्ट्रपति एफ.डब्ल्यू. डी क्लार्क को संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार मिला. यह पुरस्कार रंगभेद खत्म करने और लोकतंत्र स्थापित करने के लिए दिया गया. भारत सरकार ने भी उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था.
मंडेला का मानना था कि बड़ा बदलाव एक साथ नहीं आता, बल्कि छोटे-छोटे कदमों से आता है. उन्होंने कहा था, It always seems impossible until its done. (यह हमेशा असंभव लगता है, जब तक कि वह हो न जाए.) मंडेला की निजी जिंदगी भी संघर्षों से भरी रही. उनका पहली पत्नी से तलाक हो गया था. दूसरी पत्नी विनी मंडेला के साथ भी संबंधों में उतार-चढ़ाव रहे. जेल में रहने के कारण वे अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय नहीं बिता सके.
मंडेला पहले अश्वेत वकील थे, जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू की. उन्होंने अश्वेतों के अधिकारों के लिए कई मुकदमे लड़े और लोगों को न्याय दिलाया. राष्ट्रपति बनने के बाद भी मंडेला ने सादगी नहीं छोड़ी. वे खुद अपने कपड़े प्रेस करते थे, खुद खाना बनाते थे और आम लोगों से मिलना पसंद करते थे.
मंडेला ने अपनी वसीयत में लिखा था कि उनकी मृत्यु के बाद कोई भव्य स्मारक न बनाया जाए, बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम किया जाए. नेल्सन मंडेला का जीवन हमें सिखाता है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उम्मीद, धैर्य और माफी की ताकत से बदलाव लाया जा सकता है. वे न केवल दक्षिण अफ्रीका, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा हैं. उनकी कहानी बताती है कि एक व्यक्ति भी इतिहास की धारा बदल सकता है, बशर्ते उसके इरादे मजबूत हों और दिल में सबके लिए जगह हो. मंडेला आज भी मदीबा के रूप में लोगों के दिलों में संघर्ष, माफी और मानवता के प्रतीक के रूप में जिंदा हैं.
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