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हमें जीने दो… मुर्शिदाबाद में महिला आयोग के सामने फफक-फफककर रोने लगीं महिलाएं

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Apr 19, 2025    150812 views     Online Now 448
हमें जीने दो... मुर्शिदाबाद में महिला आयोग के सामने फफक-फफककर रोने लगीं महिलाएं

मुर्शिदाबाद में महिला आयोग के सामने फफक-फफककर रोने लगीं महिलाएं

हिंसा प्रभावित मुर्शिदाबाद के धुलियान से जो तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं, वो वाकई हैरान और परेशान करने वाले हैं. वहां की पीड़ित महिलाएं राष्ट्रीय महिला आयोग के सदस्यों के सामने जमीन पर लेटकर रो रही हैं. उनका बस इतना ही कहना है कि उन्हें जीने दिया जाए. पिछले हफ्ते शुक्रवार को वक्फ कानून के विरोध में हमले और अंधाधुंध हिंसा हुई. उस हमले के निशान आज भी गांव के जले हुए घरों में मौजूद हैं. कई लोगों ने अपनी जमीन खो दी है.

शनिवार को गांव की महिलाएं राष्ट्रीय महिला आयोग के प्रतिनिधियों को अपने सामने देखकर रो पड़ीं. वे जमीन पर लेटकर रोने लगीं. उनकी एकमात्र मांग धुलियान में एक स्थायी बीएसएफ शिविर स्थापित करने की है. धुलियान के निवासी कह रहे हैं अगर आवश्यक हुआ तो हम अपने घर बीएसएफ कैंप को दे देंगे. पीड़ित महिलाओं ने कहा बीएसएफ को यहां शिविर लगाना ही होगा, अन्यथा हम जीवित नहीं रह पाएंगे.

उन्होंने कहा कि यदि आवश्यक हुआ तो हम शिविर के लिए अपना घर देने को तैयार हैं. धुलियान के बाद यही तस्वीर दिघरी में भी देखने को मिली. वहां के भी लोगों का कहना है कि जब मुझे मरना ही है तो एक बार ही मरूंगा. महिला आयोग के प्रतिनिधियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे केंद्र से सारी रिपोर्ट उपलब्ध करा देंगे और रिपोर्ट में बीएसएफ कैंप का भी जिक्र करेंगे. प्रतिनिधियों ने कहा कि हम आपके साथ खड़े हैं. केंद्र की सभी टीमों ने जिम्मेदारी ले ली है. पूरा देश आपके साथ है. चिंता न करें.

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दंगों ने उनका सब कुछ छीन लिया- विजया रहातकर

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहातकर ट्वीट कर कहा कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद दंगा पीड़ित महिलाओं से मिलीं, उनके चेहरों पर दर्द की सैकड़ों कहानियां लिखी थीं. दंगों ने उनका सब कुछ छीन लिया. घर, परिवार, सपने. उनकी बातें सुनकर दिल रो पड़ा. दंगों से सबसे ज्यादा प्रभावित महिला और बच्चे होते हैं. मालदा जिले में स्थित राहत शिविर की स्थिति देखकर ख्याल आया कि, हमारा समाज कब तक चुप रहेगा? हमारे ही देश में, हमारे ही प्रदेश में, हमारे ही जिले में हमें ही निर्वासित होना पड़ता है. इस से ज्यादा दर्द हो नहीं सकता.

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