
कैश कांड को लेकर जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है
जस्टिस यशवंत वर्मा कैश कांड मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते अपने बचाव में पुलिस की चूक का हवाला दिया है. याचिका में दलील दी गई है कि पुलिस ने न तो नकदी जब्त की है और न ही पंचनामा तैयार किया है. पुलिस ने अपनी खोज को किसी कानूनी तरीके से याद रखने के लायक नहीं बनाया है. इस मामले में केवल कुछ अधिकारियों की ओर से ली गईं कुछ तस्वीरें-वीडियो आगे की घटनाओं के लिए मुख्य साक्ष्य और आधार बनीं.
जस्टिस वर्मा की ओर से दायर याचिका में और भी कई पहलुओं का जिक्र किया और पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाया है. इसमें तीन मुख्य बिंदु हैं जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में दलील पेश की गई है. याचिका में कहा गया है कि आंतरिक प्रक्रिया एक्स्ट्रा-कांस्टीट्यूशनल है. साथ ही साथ सर्वोच्च न्यायालय या मुख्य न्यायाधीश को न्यायाधीशों पर अधीक्षण का कोई अधिकार नहीं है. सबसे अहम दावा ये किया गया है कि घटना को लेकर आंतरिक समिति की जांच अवैध है और ये प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.
याचिका में उठाए गए महत्वपूर्ण पहलू-
1. आंतरिक प्रक्रिया एक्स्ट्रा-कांस्टीट्यूशनल है
जस्टिस वर्मा ने तर्क दिया है कि न्यायाधीशों के विरुद्ध शिकायतों के निपटारे के लिए 1999 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनाई गई आंतरिक प्रक्रिया, अनुचित रूप से स्व-नियमन और तथ्य-खोज के दायरे से परे है.
याचिका में कहा गया है कि यह एक समानांतर, संविधानेतर तंत्र का निर्माण करती है जो संविधान के अनुच्छेद 124 और 218 के तहत अनिवार्य ढांचे का उल्लंघन करती है, जो संसद को न्यायाधीशों को हटाने का विशेष अधिकार प्रदान करते हैं.
उन्होंने तर्क दिया है कि न्यायाधीश (जांच) अधिनियम इस संबंध में कड़े सुरक्षा उपायों के साथ एक व्यापक प्रक्रिया प्रदान करता है, जबकि आंतरिक प्रक्रिया संसदीय प्राधिकार का ‘अतिक्रमण’ करती है और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करती है.
2. SC या CJI को न्यायाधीशों पर अधीक्षण का कोई अधिकार नहीं है
जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में यह भी तर्क दिया है कि संविधान सुप्रीम कोर्ट या मुख्य न्यायाधीश को हाई कोर्ट या उनके न्यायाधीशों पर कोई अधीक्षण या अनुशासनात्मक शक्तियां प्रदान नहीं करता है.
न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा है कि स्व-नियमन प्रक्रियाएं, जैसे कि आंतरिक प्रक्रिया, हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के संवैधानिक रूप से संरक्षित कार्यकाल को बाधित या रद्द नहीं कर सकती हैं, या मुख्य न्यायाधीश को अन्य न्यायाधीशों के भाग्य का निर्णायक बनने का अनियमित अधिकार नहीं दे सकती हैं.
3. आंतरिक समिति की जांच अवैध, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन
जस्टिस वर्मा ने यह भी तर्क दिया है कि उनके विरुद्ध आंतरिक प्रक्रिया का प्रयोग अपने आप में अनुचित था, क्योंकि कोई औपचारिक शिकायत नहीं थी, बल्कि केवल ‘अनुमानित प्रश्न’ थे जो निराधार आरोपों पर आधारित थे कि आग लगने के बाद जो नकदी मिली थी, वह उनकी थी और आग लगने के बाद उसके अवशेष भी उन्हीं ने निकाले थे.
उन्होंने आरोप लगाया है कि तीन जजों वाली समिति ने उन्हें अपनी निर्धारित प्रक्रिया के बारे में सूचित नहीं किया और उन्हें इकट्ठाकिए जाने वाले साक्ष्यों पर जानकारी देने का कोई अवसर नहीं दिया. उन्होंने यह भी कहा है कि गवाहों से उनकी अनुपस्थिति में पूछताछ की गई और उन्हें वीडियो रिकॉर्डिंग के बजाय उनके ‘संक्षेप में दिए गए बयान’ उपलब्ध कराए गए.
यह भी तर्क दिया गया है कि आंतरिक समिति सीसीटीवी फुटेज जैसे प्रासंगिक और दोषमुक्ति साक्ष्य एकत्र करने में विफल रही. जस्टिस वर्मा ने यह भी तर्क दिया है कि चूंकि नकदी मामले के केंद्र में थी, इसलिए उसके स्रोत और मात्रा का पता लगाना महत्वपूर्ण था. उन्होंने तर्क दिया है कि समिति यह उत्तर देने में विफल रही कि वह नकदी किसकी थी और कितनी नकदी मिली थी.
4. समिति की रिपोर्ट की समीक्षा के लिए समय नहीं दिया गया
यह तर्क दिया गया है कि मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश करने से पहले समिति की अंतिम रिपोर्ट की समीक्षा के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया.
उन्होंने तर्क दिया है कि पैनल की रिपोर्ट के आधार पर कोई भी सलाह देने से पहले मुख्य न्यायाधीश और अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समक्ष व्यक्तिगत सुनवाई आवश्यक थी.
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति वर्मा को एक अनावश्यक रूप से सीमित समय सीमा के भीतर इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के लिए कहा गया.
5. मीडिया ट्रायल
जस्टिस वर्मा ने यह भी तर्क दिया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनके खिलाफ आरोपों का अभूतपूर्व खुलासा उन्हें मीडिया ट्रायल का शिकार बना रहा है, जिससे एक न्यायिक अधिकारी के रूप में उनकी प्रतिष्ठा और करियर को अपूरणीय क्षति पहुंची है. उन्होंने कहा है कि इस तरह का सार्वजनिक खुलासा अनुपातहीन है और सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा निर्धारित कानून का उल्लंघन है. उनके अनुसार समिति की अंतिम रिपोर्ट के मीडिया लीक और उसके निष्कर्षों की विकृत रिपोर्टिंग को अनदेखा कर दिया गाय है और इस आंतरिक प्रक्रिया की गोपनीयता भंग हुई.
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