
जयराम रमेश
वरिष्ठ कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने रविवार को मोदी सरकार से आरटीआई अधिनियम, 2005 में किए गए परिवर्तनों को रोकने, समीक्षा करने और निरस्त करने का आग्रह किया, जो सार्वजनिक हित में व्यक्तिगत जानकारी हासिल करने में बाधा पैदा करेंगे. इसके साथ ही जयराम रमेश ने केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के आरटीआई एक्ट में संशोधन के बचाव के तर्क को खारिज कर दिया.
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्ट एक्ट, 2023 के माध्यम से आरटीआई अधिनियम में संशोधन पर जयराम रमेश के एक पत्र के जवाब में, मंत्री ने कहा था कि व्यक्तिगत विवरण, जो विभिन्न कानूनों के तहत सार्वजनिक प्रकटीकरण के अधीन हैं, डीपीडीपी अधिनियम की धारा 44 (3) के बावजूद आरटीआई अधिनियम के तहत खुलासा किया जाना जारी रहेगा.
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हालांकि जयराम रमेश ने कहा कि मंत्री का यह तर्क कि डीपीडीपी अधिनियम की धारा 3 आरटीआई के तहत खुलासे की रक्षा करेगी, “पूरी तरह अप्रासंगिक” हो गया है, क्योंकि आरटीआई अधिनियम, 2005 के प्रावधानों में “काफी” संशोधन किया गया है और यह डीपीडीपी धारा केवल संशोधित संस्करण को ही कवर करेगी.
My response to the Minister for Railways, Electronics, and IT, Ashwini Vaishnaw on his letter dated April 10th, 2025 regarding the changes in the RTI through the DPDP Act pic.twitter.com/Lb4r8muJ4x
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) April 13, 2025
आरटीआई अधिनियम की मूल धारा 8(1)(जे) के तहत, व्यक्तिगत जानकारी किसी भी सार्वजनिक गतिविधि या हित से संबंधित नहीं होगी या जिसके परिणामस्वरूप गोपनीयता का अनुचित उल्लंघन होगा. हालांकि, ऐसी जानकारी का खुलासा किया जा सकता है यदि इससे व्यापक जनहित प्रभावित हो. डीपीडीपी अधिनियम की धारा 44(3) ने इस आरटीआई अनुभाग में संशोधन किया, जिससे सार्वजनिक हित या किसी अन्य अपवाद पर विचार किए बिना सभी व्यक्तिगत जानकारी को रोके रखने की अनुमति मिल गई.
जयराम रमेश ने लिखा पत्र, कही ये बात
अपने पत्र में रमेश ने यह भी तर्क दिया कि आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन से यह प्रदर्शित होता है कि वह व्यक्तिगत सूचना के प्रकटीकरण को रोकने में सक्षम है, जिसका किसी सार्वजनिक गतिविधि या सार्वजनिक हित से कोई संबंध नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि अधिनियम में नागरिकों के सूचना के अधिकार को विधायकों के समान मानने वाले प्रावधान को हटाना “पूरी तरह से अनुचित” है.
वर्तमान में, कोई भी नागरिक किसी सांसद या विधायक के पास उपलब्ध किसी भी जानकारी तक पहुंच सकता है. मंत्री ने अपने पत्र में सर्वोच्च न्यायालय के पुट्टस्वामी फैसले का उल्लेख किया, जबकि रमेश ने कहा कि फैसले में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि आरटीआई अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता है.
रमेश ने कहा, “यह निर्णय इस बात पर बल देता है कि व्यक्तिगत गोपनीयता की सुरक्षा और संस्थागत पारदर्शिता को बढ़ावा देना परस्पर अनन्य नहीं हैं, बल्कि संयुक्त रूप से आवश्यक हैं.”
RTI एक्ट में संशोधन निरस्त करने की मांग
उन्होंने कहा, “इसलिए मैं आपसे पुनः दृढ़तापूर्वक आग्रह करता हूं कि आरटीआई अधिनियम, 2005 में किए गए संशोधन को ‘रोकें, समीक्षा करें और निरस्त करें’. जैसा कि आपने देखा होगा कि इस मुद्दे पर नागरिक समाज, शिक्षाविदों और राजनीतिक दलों के व्यापक लोगों ने भी विचार-विमर्श किया है.”
पिछले सप्ताह विपक्षी इंडिया गठबंधन ने लगभग 130 सांसदों का एक पत्र सार्वजनिक किया था, जिसमें आरटीआई अधिनियम में किए गए परिवर्तनों पर आपत्ति जताई गई थी तथा दावा किया गया था कि यह पारदर्शिता व्यवस्था को नष्ट कर देता है.
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