
ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची
चीन के तिआनजिन में अगस्त में SCO 2025 (Shanghai Cooperation Organization) समिट पूरा होगा. इस समिट में कई अहम फैसले लिए जा रहे हैं, जिसके लिए बैठकों का दौर शुरू हो गया है. जिसमें शामिल होने के लिए ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची भी पहुंचे, जहां उन्होंने सदस्य देशों के सामने एक खास योजना बनाने के प्रस्ताव रखा है. जिसके बनने से अमेरिका-इजराइल के साथ कई पश्चिमी देशों में डर पैदा हो सकता है.
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने चीन में SCO में समूह के देशों से सुरक्षा समन्वय का आग्रह किया है, जिसमें चीन और रूस भी शामिल हैं. मेहर न्यूज एजेंसी के मुताबिक अराघची ने मंगलवार को SCO की बैठक में सैन्य आक्रमण, तोड़फोड़ की गतिविधियों, राज्य आतंकवाद और सदस्य देशों की राष्ट्रीय संप्रभुता के उल्लंघन के जवाबों की निगरानी, दस्तावेजीकरण और समन्वय के लिए एक स्थायी तंत्र की स्थापना का रखा.
SCO में 10 सदस्य देश हैं- भारत, चीन, रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिज़स्तान, पाकिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और बेलारूस शामिल है. बेलारूस 2024 में ही समूह का हिस्सा बना है.
क्या नाटो जैसा संगठन बनाने चाह रहा ईरान?
अराघची ने शिखर सम्मेलन तेहरान के बीजिंग और मॉस्को के साथ बढ़ते संबंधों पर जोर दिया, जो हाल ही में इजराइल के साथ हुए संघर्ष के बाद और गहरे हो गए हैं. चीन का समर्थन ईरान को महत्वपूर्ण आर्थिक और सैन्य समर्थन प्रदान करता है जो अमेरिका की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों और नियंत्रण प्रयासों को कमजोर कर सकता है.
अब अराघची की ये मांग की इन 10 देशों का एक साथ मिलकर एक सुरक्षा संगठन बने, इसका निर्देश सीधे तौर पर पश्चिमी देशों के NATO जैसे गठबंधनों का बदल तेयार करना है. अगर SCO सदस्य देश ऐसा करने में कामयाब हो जाते हैं, इसके 10 देश अपस में सुरक्षा सहयोग करेंगे, जिससे किसी भी बढ़े खतरे के समय ये देश अपने सदस्य देश के लिए अपनी सेनाएं भेज सकते है. हालांकि नाटो बेहद ताकतवर संगठन है, लेकिन ये आंदोलन इजराइल जैसे देशों के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं.
ईरान के लिए SCO का महत्व
ईरान के लिए SCO की मेंबरशिप पश्चिम देशों से परे राजनयिक और आर्थिक संबंधों के रास्ते खोलती है, जिससे तेहरान को अपने मौजूदा अलगाव से उभरने में मदद मिल रही है. पिछले हफ़्ते, ब्राज़ील में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ईरान को उसके परमाणु प्रतिष्ठानों पर इजराइल-अमेरिका के हमलों के बाद एक बड़ा कूटनीतिक बढ़ावा मिला. चीन और रूस दोनों ने एकमत होने का संकेत दिया.
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