
भारतीय संविधान की रचना कर इतिहास में अपना नाम अमर करने वाली महिलाएं.
बेगम एजाज रसूल. संविधान सभा की एक मात्र मुस्लिम महिला सदस्य. मुस्लिम लीग के टिकट से चुनी गई थीं. लेकिन विभाजन के बाद उन्होंने भारत को चुना. संविधान सभा में मुस्लिमों के आरक्षण के सवाल पर उन्होंने कहा था, “पाकिस्तान बन गया है. भारत में जो मुसलमान हैं, उनके हितों का तकाजा है कि वे अलग-थलग न रहें. भारत की मुख्यधारा में रहने का विचार बनाए. इसलिए आरक्षण की मांग छोड़ देना बेहतर होगा.”
महिला दिवस के अवसर पर पढ़िए संविधान सभा की कुछ महिला सदस्यों के विषय में जिन्होंने आजादी की लड़ाई, फिर संविधान रचना और आगे देश-समाज के हित में सराहनीय योगदान किया.
संविधान सभा में 15 महिला सदस्य शामिल
299 सदस्यीय संविधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या 15 यानी संख्या बल का लगभग पांच फीसद थी. संविधान यात्रा के 75 वर्ष पूर्ण होने पर वर्तमान 18वीं 543 सदस्यीय लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या 74 यानी 13.62 फीसद है. लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के 1/3 आरक्षण का कानून बन चुका है , हालांकि यह अभी लागू नहीं हुआ है. जिन महिलाओं को संविधान सभा में प्रतिनिधित्व का अवसर मिल , उसमें मुस्लिम समाज की ओर से इकलौती सदस्य सदस्य बेगम एजाज रसूल थीं.
सभा में अपनी मेधा और श्रम का योगदान देने वाली अन्य महिला सदस्य अम्मू स्वामीनाथन, दक्षियाणी बेलायुद्धन, दुर्गाबाई देशमुख, हंसा मेहता, कमला चौधरी, लीला राय, मालती चौधरी, पूर्णिमा बनर्जी, राजकुमारी अमृत कौर, रेणुका रे, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, विजय लक्ष्मी पंडित और एनी मेसकरीन थीं. हालांकि आबादी के लिहाज से संविधान सभा में महिलाओं की हिस्सेदारी बेहद मामूली थी लेकिन इन महिला सदस्यों का योगदान सराहनीय था. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और उनकी बेहतरी के उपाय संविधान में सुनिश्चित कराने के साथ ही अन्य तमाम पहलुओं पर भी मजबूती से अपनी बात रखी थी.

बेगम ऐजाज रसूल, राजकुमारी अमृतकौर, सुचेता कृपलानी और अम्मु स्वामीनाथन.
मजबूत स्टैंड से एजाज रसूल ने बनाया इतिहास
बेशक बेगम एजाज रसूल सभा की एक मात्र मुस्लिम सदस्य थीं लेकिन मुस्लिमों के आरक्षण जैसे नाजुक सवाल पर उनके मजबूत स्टैंड ने इतिहास में उनका नाम दर्ज कर दिया. 1935 में वे अपने पति के साथ मुस्लिम लीग में शामिल हुईं. मौलवियों के विरोध से बेपरवाह पर्दे से बाहर निकलकर 1937 में जनरल सीट से यू.पी. काउंसिल के लिए चुनी गईं.
1946-50 के बीच संविधान सभा की सदस्य रहीं. सभा में वे पहले मुस्लिम लीग की उपनेता थीं. ख़लीकुज्जमा के पाकिस्तान जाने के बाद लीग की नेता बनीं. उन्होंने लीग के तमाम नेताओं के उलट सिर्फ भारत में रहना ही नहीं चुना बल्कि संविधान सभा की कार्यवाही में सक्रिय भागीदारी की. वे संविधान में अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों की सलाहकार समिति की सदस्य थीं और वहां इस वर्ग के अधिकारों की फिक्र करते हुए इस बात को लेकर सचेत थीं कि पाकिस्तान बन जाने के बाद अब ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए , जिससे मुसलमान अलग -थलग दिखें.
बेगम एजाज ने कहा मुसलमान मुख्यधारा में रहें
1909 में अंग्रेजों ने पृथक निर्वाचन प्रणाली लागू की. 1932 के कम्युनल अवॉर्ड ने आरक्षण और पृथक निर्वाचन को आगे बढ़ाया. 1935 के गवर्नमेंट इंडिया एक्ट का यह महत्वपूर्ण हिस्सा था. विभाजन के बाद अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सलाहकार समिति इन प्रावधानों को खत्म करने के पक्ष में थी. लेकिन सरदार पटेल इसमें अल्पसंख्यकों की सहमति चाहते थे. पाकिस्तान के वजूद में आने के बाद भारत को चुनने वाले तजम्मुल हुसैन और बेगम एजाज रसूल लीग के प्रतिनिधि के तौर पर सलाहकार समिति के सदस्य बनाए गए.
तजम्मुल हसनैन ने मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन और आरक्षण की व्यवस्था के विरोध में कहा, “अतीत को भूल जाएं. सेक्युलर राज बनाने में मदद करें.” बेगम भी इस सवाल पर दो टूक थीं. उन्होंने कहा, “पाकिस्तान बन गया है. भारत में जो मुसलमान हैं, उनके हितों का तकाजा है कि वे अलग-थलग न रहे. बल्कि भारत की मुख्यधारा में रहने का विचार बनाएं. इसके लिए आरक्षण की मांग छोड़ देना बेहतर होगा. “बेगम ने आगे लंबी राजनीतिक पारी खेली. वे राज्यसभा की भी सदस्य रहीं. 1950 में कांग्रेस में शामिल हो गईं. 1952 में शाहाबाद से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुनी गईं . 1969 से 1989 तक लगातार विधानसभा सदस्य रहीं. 1969-71 में वे राज्य मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और समाज कल्याण विभाग की मंत्री थीं. बीस वर्षों तक भारतीय महिला हॉकी संघ के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने महिलाओं की हॉकी टीम को मजबूत करने और नई खिलाड़ियों को इससे जोड़ने के सार्थक प्रयास किए. 2001में उन्हें देश के दूसरे बड़े नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया.

299 सदस्यीय संविधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या मात्र 15 थी.
अद्भुत थीं अम्मु स्वामीनाथन
अद्भुत थीं अम्मु स्वामीनाथन. कदम-कदम पर संघर्ष. जीवन-पर्यंत महिलाओं के मान-सम्मान और अधिकारों के लिए समर्पित. 1894 में जन्मी अम्मु नायर (पिछड़ी जाति) की थीं. तब 13 साल की थीं. ब्राह्मण सुब्रह्मण्यम स्वामीनाथन (ब्राह्मण) ने विवाह प्रस्ताव किया. वे इस शर्त पर राजी हुईं कि शहर में रखना होगा.लेकिन पंडित शादी कराने को तैयार नहीं हुए. कोर्ट मैरिज की. फिर जमकर पढ़ीं और काबिल बनीं. बहुत विरोध था. बच्चों तक से भेदभाव हुआ. घुटने नहीं टेके. देवदासियों के कल्याण के लिए काम किया. महात्मा गांधी से जुड़ीं. 1934 में कांग्रेस में शामिल हुईं.
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में लंबी जेल यात्रा की. संविधान सभा में उनकी सक्रियता गजब की थी. हिंदू कोड बिल, शारदा कानून, बाल विवाह पर रोक, लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र, नौकरी पेशा महिलाओं के मातृत्व अवकाश जैसे महिलाओं से जुड़े हर सवाल पर संविधान सभा में अम्मु मुखर रहीं. 1952 में वे लोकसभा के लिए चुनी गईं. 1957-60 में वे राज्यसभा की सदस्य रहीं. आजाद हिंद फौज की कैप्टन लक्ष्मी सहगल को कोई कैसे भूल सकता है ! और भरत नाट्यम की मशहूर नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई भी. दोनों ही महान मां अम्मु स्वामीनाथन की बेटियां थीं.
वैभव छोड़ राजकौर अमृत कौर निकलीं संघर्ष के सफर में
कपूरथला के राजपरिवार में 1889 में जन्मी और ऑक्सफोर्ड में पढ़ीं राजकुमारी अमृतकौर ने वैभव और ऐश्वर्य का जीवन छोड़ महात्मा गांधी जी का सादगी, त्याग और समर्पण का रास्ता चुना. 1915 में कांग्रेस के बंबई अधिवेशन में उन्होंने गांधी जी को पहली बार सुना. उनकी ओर आकर्षित हुईं. उनसे जुड़ीं. एक दशक से अधिक समय तक उनकी वैयक्तिक सहायक रहीं. नमक सत्याग्रह और अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में सजा भुगती. संविधान सभा की सक्रिय सदस्य रहीं. अंतरिम सरकार और फिर 1962 तक मंत्री रहीं. स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर दिल्ली एम्स का सपना उन्हीं का था. दिल्ली के लेडी इरविन अस्पताल और मेडिकल कॉलेज की स्थापना में भी उनकी बड़ी भूमिका थी. महिला अधिकारों के लिए वे लगातार संघर्षरत रहीं. बाल विवाह, परदा प्रथा के विरोध में वे मुखर रहीं. वे जन्म से ईसाई थीं. लेकिन उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक 1964 में निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार हिन्दू/सिख रीति -रिवाजों के अनुसार हुआ.
हर भूमिका में शानदार सुचेता कृपलानी
संविधान सभा में सुचेता कृपलानी की भूमिका शानदार थी. लेकिन इसके पहले लंबे समय से वे आजादी के आंदोलन में सक्रिय थीं. महात्मा गांधी जी के संपर्क में आने के साथ वे विभिन्न आंदोलनों और रचनात्मक कार्यक्रमों का हिस्सा रहीं. महात्मा गांधी की असहमति के बाद भी आचार्य कृपलानी से विवाह किया. लेकिन इस विवाह ने आजादी के संघर्ष में उनकी सक्रियता में कोई कमी नहीं की. विभाजन के बाद विस्थापितों के पुनर्वास की अनथक कोशिशों के लिए भी वे याद की जाती हैं.
उत्तर प्रदेश से संविधान सभा की सदस्य और फिर पहली दो लोकसभा के कार्यकालों में सांसद के तौर पर वे काफ़ी मुखर थीं. आचार्य कृपलानी ने अपनी आत्मकथा “माइ टाइम्स” में लिखा है कि संसद में भाषण के पूर्व सुचेताजी देर रात तक तैयारी करतीं थीं. कांग्रेस ने 1962 में उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में भेजा. सी.बी.गुप्त मन्त्रिमण्डल में वे श्रम और उद्योग मंत्री रहीं. 1963 में कामराज योजना में कई मुख्यमंत्रियों और केन्द्र के मंत्रियों के इस्तीफे हुए.
कांग्रेस हाइकमान ने सुचेता को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी.2 अक्टूबर 1963 से 13 मार्च 1967 तक का मुख्यमंत्री का उनका कार्यकाल दृढ़ता-कुशल प्रशासन और उनकी सादगी-ईमानदारी के लिए याद किया जाता है. 1967 में उन्होंने लोकसभा में गोंडा सीट का प्रतिनिधित्व किया. 1971 में फैजाबाद से चुनाव में वे पराजित हो गई थीं. लेकिन वे थमी नहीं . 1974 में जेपी के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में सक्रियता के बीच उनका निधन हुआ.
यह भी पढ़ें: कौन थी औरंगजेब की वो हिन्दू पत्नी जो सती होना चाहती थी?
[ Achchhikhar.in Join Whatsapp Channal –
https://www.whatsapp.com/channel/0029VaB80fC8Pgs8CkpRmN3X
Join Telegram – https://t.me/smartrservices
Join Algo Trading – https://smart-algo.in/login
Join Stock Market Trading – https://onstock.in/login
Join Social marketing campaigns – https://www.startmarket.in/login