बारिश की कमी से बढ़ सकती है महंगाई
भारत में फसलों का चक्र अभी भी बहुत हद तक मानूसन पर निर्भर करता है. ये खरीफ की फसल का मौसम है और सभी को तपती गर्मी से राहत के लिए बारिश चाहिए यानी कि खेतों की सूखती जमीन को भी. मानसून की ये बारिश सिर्फ खेत-खलिहानों या आम आदमी को गर्मी से ही राहत नहीं बल्कि उसकी जेब को भी महंगाई की मार से बचाएगी.
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर देश में मानसून कमजोर रहता है, या बारिश सही समय से नहीं होती है. तो महंगाई को नियत्रंण में लाने की लड़ाई लंबी खिंच सकती है. इतना ही नहीं ये कुछ समय के लिए और बढ़ भी सकती है.
12 महीने के निचले स्तर पर आई महंगाई
आरबीआई के रेपो रेट में करीब एक साल तक बदलाव नहीं करने की वजह से महंगाई एक साल के निचले स्तर पर आई है. मई के महीने में देश के अंदर महंगाई की दर 4.75 प्रतिशत रही है, जो 12 महीने का निचला स्तर है. जबकि फूड इंफ्लेशन टस से मस नहीं हुई है और ये 8 प्रतिशत से ऊपर यानी 8.69 प्रतिशत के स्तर पर ही रही है.
मानसून और महंगाई की मार
कोटक महिंद्रा बैंक की चीफ इकोनॉमिस्ट उपासना भारद्वाज के हवाले से ईटी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के दिनों में सब्जियों की कीमत में एक अचानक से तेजी देखने को मिली है. ये फूड इंफ्लेशन के और ऊपर जाने के जोखिम को दिखाता है.
भारतीय मौसम विभाग का अनुमान है कि जून के महीने में मानसूनी बारिश सामान्य से कम रह सकती है. जून के महीने में मानसून टुक ड़ों-टुकड़ों में आ रहा है और इसमें देरी हो सकती है. जून के आखिर या जुलाई की शुरुआत में बारिश की स्थिति ठीक रह सकती है. उपासना भारद्वाज इस पर कहती हैं कि ये स्थिति निश्चित तौर पर फूड इंफ्लेशन को प्रभावित करेगी.
अगर बारिश सही समय पर नहीं आती है, तो इससे खरीफ की फसलों को भारी नुकसान होगा. खाद्यान्न की उपज पर असर होगा. जिससे कीमतें बढ़ने के आसार बन सकते हैं.
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