इंडिया गठबंधन.
पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप-कांग्रेस में दो फाड़ और अब बीएमसी इलेक्शन में उद्धव ठाकरे के अकेले लड़ने के ऐलान ने इंडिया की टूट में मजबूत कील ठोक दी है. गठबंधन से जुड़े 4 बड़े नेता अब तक इंडिया अलायंस के खत्म होने या खत्म करने की बात कह चुके हैं. इनमें एक तो देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस से जुड़े हैं.
कांग्रेस के मीडिया प्रभारी पवन खेड़ा ने शुक्रवार को अपने एक बयान में कहा कि इंडिया गठबंधन सिर्फ लोकसभा के लिए ही था. यही बात आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी कह चुके हैं. वहीं कुछ दल अभी भी इसकी आधिकारिक घोषणा का इंतजार कर रहे हैं.
टूट के मुहाने पर कैसे पहुंचा इंडिया गठबंधन?
2023 के जुलाई महीने में बेंगलुरु में इंडिया गठबंधन की नींव रखी गई थी. इस गठबंधन में 26 पार्टी शामिल हुए थे. लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने एनडीए को महाराष्ट्र, यूपी, बंगाल, झारखंड, बिहार जैसे राज्यों में कड़ी चुनौती पेश की. नतीजन, बीजेपी अकेले दम पर बहुमत नहीं ला पाई.
चुनाव में एनडीए को 296 तो इंडिया को 230 सीटों पर जीत मिली. इंडिया गठबंधन ने इसे भी जीत के तौर पर लिया, लेकिन लोकसभा के 8 महीने बाद ही अब गठबंधन टूट के मुहाने पर पहुंच चुका है. बस इसकी आधिकारिक घोषणा शेष है. इंडिया गठबंधन के टूटने की 4 बड़ी वजहें बताई जा रही हैं.
1. इंडिया के सहयोगी दल आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी के मुताबिक इंडिया में तनातनी हरियाणा चुनाव के बाद से ही बढ़ने लगी थी. हरियाणा में कांग्रेस अपने अड़ियल रवैए की वजह से जीता हुआ चुनाव हार गई. गठबंधन को लेकर भी उसका रवैया ठीक नहीं था. हरियाणा रिजल्ट के बाद सहयोगी अलर्ट हो गए. इंडिया में नए नेता की मांग शुरू हो गई.
हरियाणा के चुनाव परिणाम के ठीक एक दिन बाद यूपी में अखिलेश यादव ने उपचुनाव को लेकर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी. यूपी में 10 सीटों पर उस वक्त उपचुनाव प्रस्तावित थे, जिसमें से 2 सीट कांग्रेस को दिए जाने की चर्चा थी, लेकिन अखिलेश ने कांग्रेस को सीट देने से इनकार कर दिया.
2. विपक्षी गठबंधन के एक नेता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं- लोकसभा रिजल्ट के बाद कांग्रेस ओवर कॉन्फिडेंस में आ गई. सहयोगियों के साथ लचीलापन रवैया अपनाने के बजाय कांग्रेस और ज्यादा सख्त हो गई. हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में भी इसी तरह का मामला देखने को मिला.
संसद में भी पहले किसी मुद्दे को उठाने से पहले सहयोगियों की सलाह ली जाती थी, लेकिन शीतकालीन सत्र में सहयोगियों के सलाह को मानने की परिपाटी खत्म हो गई. कांग्रेस के कुछ नेता अपने तरीके से मुद्दे उठाते थे.
दरअसल, संसद सत्र के दौरान सपा, तृणमूल और एनसीपी जैसे दलों का कहना था कि कांग्रेस हठधर्मिता की वजह से उद्योगपति गौतम अडानी का मुद्दा उठा रही है. इन दलों ने खुले तौर पर अडानी मुद्दे पर कांग्रेस को समर्थन न देने की बात कही थी.
3. अडानी के मुद्दे पर कांग्रेस भी सहयोगियों के रुख से नाराज है. कांग्रेस को लगता है कि अडानी जैसे बड़े मुद्दे पर जिस तरीके से उसके कुछ सहयोगी साथ छोड़ देते हैं, उससे पार्टी की किरकिरी हो रही है.
यही वजह है कि कांग्रेस ने भी उन सहयोगियों को भाव देना छोड़ दिया, जो उद्योगपति गौतम अडानी के मुद्दे पर मुखर नहीं थे.
4. गठबंधन में टूट की एक वजह कांग्रेस की महत्वाकांक्षा भी है. लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस अपना जनाधार बढ़ाने में जुटी है. इसी वजह से पार्टी हरियाणा में जहां अकेले मैदान में उतरी, वहीं महाराष्ट्र में ज्यादा दबाव बनाकर ज्यादा सीटों पर दावेदारी कर दी. हालांकि, दोनों ही राज्यों में कांग्रेस को सफलता नहीं मिल पाई.
कांग्रेस के सहयोगी आरजेडी को 2025 में बिहार तो तृणमूल कांग्रेस को 2026 में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के प्रेशर पॉलिटिक्स का डर सता रहा है. छोटी पार्टियों का कहना है कि जिस राज्य में उसके पास जनाधार है, वहां उसे गठबंधन में ड्राइविंग सीट पर बैठने का मौका मिले.
छोटी पार्टियां इसके लिए एनडीए का उदाहरण दे रही है. एनडीए में आंध्र में टीडीपी तो बिहार में नीतीश कुमार की जेडीयू ड्राइविंग सीट पर है.
गठन के बाद से ही न कन्वेनर न दफ्तर
जुलाई 2023 में जब इंडिया का गठबंधन तैयार हुआ, तब इसके नेता और कन्वेनर बनाए जाने की बात कही गई, लेकिन 18 महीने से यह पद रिक्त है. ममता बनर्जी ने इंडिया में नेता यानी अध्यक्ष बनने की इच्छा जताई थी, लेकिन कांग्रेस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
इतना ही नहीं, इंडिया गठबंधन का कोई आधिकारिक दफ्तर भी नहीं है. पहले दिल्ली में इसके दफ्तर बनाए जाने की बात कही गई थी.
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