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अंग्रेजों की भारत लूट से जालियांवाला नरसंहार तक, शशि थरूर कब-कैसे बने भारत की आवाज?

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May 25, 2025    15086 views     Online Now 199
अंग्रेजों की भारत लूट से जालियांवाला नरसंहार तक, शशि थरूर कब-कैसे बने भारत की आवाज?

आतंकवाद पर पाकिस्तान को बेनकाब करने के लिए कांगेस सांसद शशि थरूर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ विदेश दौरे पर हैं.

सिर्फ युद्ध के समय नहीं देश के स्वाभिमान और सम्मान के सवाल पर शशि थरूर हर मौके पर सजग और सचेत रहे हैं. मई 2015 में ऑक्सफोर्ड यूनियन में दिए गए उनके भाषण की सिर्फ भारत नहीं दुनिया के तमाम देशों में चर्चा हुई थी. थरूर ने ब्रिटेन से भारत पर अपने लगभग दो सौ वर्षों के शासन के दौरान किए तमाम अत्याचारों और शोषण के लिए माफी और प्रतीकात्मक हर्जाने की मांग करके हलचल मचा दी थी. इसी सिलसिले में थरूर ने “अंधकार काल: भारत में ब्रिटिश साम्राज्य” किताब लिखी और भारत को अपने चंगुल में रखने के लिए अंग्रेज हुकूमत की कारगुज़ारियों की तथ्यात्मक फेहरिस्त पेश की.

थरूर ने अपने भाषण में और फिर किताब में ब्रिटिश सरकार से उम्मीद जाहिर की कि जालियांवाला कांड जैसे जघन्य अपराधों के लिए प्रायश्चित स्वरूप उसे निष्कपट क्षमा याचना करनी चाहिए. उपनिवेशवाद के दौरान कोहिनूर सहित भारत से उसने जो बहुमूल्य लूटा, उसमें कुछ वापस भी करना चाहिए.

पक्ष में या विपक्ष में, हमेशा खबरों में

शशि थरूर पक्ष-विपक्ष कहीं रहें लेकिन खबरों में बने रहते हैं. एक दौर में निजी जीवन के विवाद उनका पीछा करते रहे. पिछले तीन साल से गांधी परिवार से उनके रिश्तों पर सवाल हैं. 2022 में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़कर संदेश दिया था कि नेतृत्व का वे आंख मूंदकर अनुसरण नहीं करते. बेशक चुनाव में वे पराजित हो गए थे लेकिन इस पराजय के बीच भी भारतीय राजनीति में उनका कद काफी बढ़ गया.

प्रायः पार्टी लाइन से इतर उनके बयान विशेषकर गांधी परिवार को असहज करते रहते हैं. सिर्फ विरोध के लिए विरोध के वे कायल नहीं हैं. विरोध वे सरकार की नीतियों का करते हैं लेकिन इस विरोध को वे व्यक्तिगत नहीं होने देना चाहते . जब तब पार्टी लाइन से हटकर मोदी सरकार के कुछ फैसलों को वे उचित भी ठहरा देते हैं. कांग्रेस इसे लेकर परेशान होती है. लेकिन फिलहाल थरूर कांग्रेस में ही हैं. हालांकि एक मौके पर वे अपने पास विकल्प उपलब्ध होने का संदेश दे चुके हैं.

Shashi Tharoor

कांग्रेस सांसद शशि थरूर का कहना है, ब्रिटेन को जालियांवाला बाग जैसे जघन्य अपराधों के लिए एक निष्कपट क्षमा याचना तो करनी ही चाहिए.

बात देश की तब कोई नहीं सवाल

पहलगाम की जघन्य आतंकी वारदात के बाद थरूर खुलकर सरकार के साथ खड़े हो गए. उन्होंने माना कि सरकार से सवाल हो सकते हैं लेकिन यह सवाल का समय नहीं है. ऑपरेशन सिंदूर से लेकर सीज फायर तक हर मुद्दे पर सरकार के कदम को उन्होंने सही ठहराया. इस दौरान अन्य विपक्षी दलों के साथ कांग्रेस भी देश की एकजुटता का संदेश देती रही लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस प्रवक्ताओं के बयान समर्थन से ज्यादा सरकार को घेरते नजर आए.

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दुनिया के तमाम देशों के बीच भारत का पक्ष रखने के लिए सांसदों के डेलीगेशन भारत से रवाना हुए हैं. कांग्रेस की सूची में थरूर का नाम न होने के बाद भी सरकार ने अमेरिका जैसे महत्वपूर्ण देश भेजे जा रहे डेलीगेशन की अगुवाई थरूर को सौंपी. थरूर की काबिलियत के कारण आमतौर पर लोगों ने इसे पसंद किया. लेकिन कांग्रेस नेतृत्व इसे पचा नहीं पाया. असलियत में थरूर अरसे से गांधी परिवार को चुभ रहे हैं. क्या मोदी सरकार ने थरूर का चयन कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में उनका कद बढ़ाने के लिए किया? पहलगाम की घटना के बाद से मोदी सरकार के पक्ष में थरूर के बयान भी क्या इसी राजनीति का हिस्सा हैं? थरूर को सुनने और पढ़ने वाले शायद ही ऐसी धारणा से सहमत होंगे.

थरूर का वो चर्चित भाषण

थरूर चौथी बार लोकसभा में हैं. उसके पहले संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतरराष्ट्रीय राजनय में उन्होंने अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई. वे अच्छे वक्ता और लेखक हैं. उनकी वक्तृता और लेखन में देश को लेकर उनकी सोच नजर आती है. ऐसे मौकों पर उनके लिए दलीय सीमाएं बेमानी हो जाती हैं. वे स्वदेश में हों या विदेश में . देश से अगाध प्रेम करने वाले भारतीय के रूप में वे स्वयं को प्रस्तुत करते हैं. मई 2015 में ऑक्सफोर्ड यूनियन में, “ब्रिटेन अपने पूर्व उपनिवेशों को क्षतिपूर्ति देने के लिए उत्तरदाई है ? ” विषय पर बोलने के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया. थरूर वहां धाराप्रवाह और बेलाग बोले. यह भाषण सिर्फ भारत में नहीं सराहा गया. उसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई. इस भाषण में उन्होंने ब्रिटिश राज में अन्याय-अत्याचारों का तथ्यात्मक जिक्र करते हुए उससे क्षमा याचना और प्रतीकात्मक क्षतिपूर्ति और लूटी संपदा से कुछ ही सही लेकिन उसकी वापसी की अपेक्षा की थी.

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इस भाषण को सरकार से लेकर समाज के सभी वर्गों की सराहना मिली थी. थरूर ने बाद में लिखा, “मैने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अन्यायों का जो विश्लेषण किया था, वह सब उसी पर आधारित था जो कुछ मैंने बचपन में पढ़ा और अध्ययन किया था. मेरा ख्याल था कि मैं जो तर्क दे रहा था, वे इतने आधारभूत थे कि अमरीका की शब्दावली में उन्हें “भारतीय राष्ट्रवाद 101″ कहा जा सकता है. वे भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को न्यायोचित ठहराने वाले मूलभूत तर्क थे.”

Shashi Tharoor angry with Congress Kerala Politics four times MP

कांग्रेस नेता शशि थरूर.

भारत को राजनीतिक एकता देने का ब्रिटिश दावा खोखला

थरूर के इस भाषण ने तमाम लोगों के दिल को छू लिया था. थरूर को जरूरी लगा कि इस भाषण के विषय को एक पुस्तक की शक्ल दी जाए जिससे वर्तमान और भावी पीढ़ियां ब्रिटिश उपनिवेशवाद की भयानकता से अवगत हो सकें. अंग्रेज अपनी नेकनीयती के सबूत के तौर पर भारत को ऐसी राजनीतिक एकता प्रदान करने का यश लेते हैं, जो उनके पास कभी नहीं थी! थरूर प्रतिवाद करते हुए बताते हैं, “भारतीय इतिहास में अनेक शासनों में मौर्य (322 ईसा पूर्व -185 ईसा पूर्व) गुप्त (322 -350 ईसवी) मुगल शासन (1526-1857) और पश्चिम में मराठा शासन (1674-1818) जिन्होंने सम्पूर्ण महाद्वीप में विस्तार के प्रयत्न किए, में एकता की यह इच्छा झलकती है.

सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में अव्यवस्था के प्रत्येक काल के बाद केंद्रीयकरण की यह इच्छा बलवती होती रही और यदि अंग्रेजों ने अपेक्षाकृत बेहतर अस्त्र-शस्त्र के साथ भारत की अव्यवस्था का पहले लाभ न उठा लिया होता तो यह पूर्णतः संभव था कि किसी भारतीय शासक ने वह कर लिया होता जो अंग्रेजों ने किया.”

बांटो-राज करो की ब्रिटिश चाल

थरूर याद दिलाते हैं कि 18वीं सदी की शुरुआत में विश्व की अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 23 फीसद थी. तुलना में पूरे यूरोप की मिलकर भागीदारी इतनी ही थी. लेकिन ब्रिटिश दौर में भारतीय उद्योगों और व्यापार पर लगातार कुठाराघात और यहां के संसाधनों का दोहन कर इंग्लैंड संपन्न और भारत निरंतर विपन्न हुआ. थरूर ने भारत में व्यावहारिक राजनीतिक संस्थाओं, प्रजातांत्रिक भावनाओं, सक्षम नौकरशाही, कानून सम्मत नियमों की रचना और भारत को राजनीतिक एकता सौंपने के ब्रिटिशों के दावों को खोखला बताया है. उनका कहना है कि इन आडंबरों के बीच अपना राज कायम रखने के लिए अंग्रेजों ने बांटो और राज करो को अपने शासन का आधार बनाया. भारत का विभाजन और स्थाई शत्रुता इसी कुनीति की देन है.

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ब्रिटेन के बच्चों को पढ़ाइए कि किसकी कीमत पर देश आगे बढ़ा

थरूर का सुझाव है कि जैसे जर्मनी के बच्चों को उनके पूर्वजों की वीभस्त वास्तविकता दिखाने के लिए यातना शिविरों में ले जाया जाता है, उसी प्रकार ब्रिटेन के बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए कि उनकी मातृभूमि का निर्माण कैसे हुआ? उपनिवेशवाद के बाद भारत से जो कुछ लूटा गया है, उसमें कुछ बहुमूल्य वस्तुओं को लौटाया जाना चाहिए. करों और शोषण द्वारा जो लूटा गया, वो खर्च हो चुका लेकिन कुछ प्रतीकात्मक कीमत वापस आनी चाहिए. वो कोहिनूर भी जो महारानी के मुकुट में है और जिसे महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी नहीं बचा पाए थे.

थरूर का कहना है कि क्षतिपूर्ति की अपेक्षा बहुत व्यवहारिक नहीं है लेकिन यह प्रतीकात्मक हो सकती है. ब्रिटेन को कम से कम जालियांवाला बाग जैसे जघन्य अपराधों के लिए एक निष्कपट क्षमा याचना तो करनी ही चाहिए. थरूर लिखते हैं, ” एक भारतीय के नाते और दो सदियों पहले के और उसके बाद के भारत के संबंध में लिखते हुए ब्रिटिश राज द्वारा इतने त्रासदीपूर्ण ढंग से दमित भूमि के साथ एक नैतिक और भौगोलिक जुड़ाव की भावना से जुड़ा पाता हूं. भारत मेरा देश है और इस अर्थ में मेरा क्रोध निजी स्तर पर भी है. पर मुझे इतिहास से कुछ नहीं चाहिए -सिवा इसके आत्म-वर्णन के.”

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