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आज़ादी के 78 साल बाद भी नहीं बन सका मुक्तिधाम: बारिश में तिरपाल के नीचे अंतिम संस्कार करने को मजबूर ग्रामीण, VIDEO हुआ वायरल

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Jul 22, 2025    150813 views     Online Now 486

अरविन्द मिश्रा, बलौदाबाजार। देश को आज़ाद हुए 78 साल हो गए, छत्तीसगढ़ राज्य बने 25 साल और बलौदाबाजार-भाटापारा को जिला बने भी 13 साल हो चुके हैं, लेकिन इन वर्षों में विकास की तमाम योजनाओं और दावों के बावजूद बलौदाबाजार जिले का फुंडरडीह गाँव अब भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि यहां आज तक मुक्ति धाम (शमशान घाट) के लिए एक साधारण शेड तक नहीं बन पाया।

तिरपाल के नीचे चिता, वायरल हुआ वीडियो

फुंडरडीह की आबादी करीब 1800 है, लेकिन यहां ना तो शमशान घाट पक्का बना है और ना ही कोई शेड मौजूद है। बारिश के मौसम में जब किसी की मृत्यु होती है, तो शव का अंतिम संस्कार तिरपाल के नीचे करना पड़ता है। बीते 12 जुलाई को गाँव के 48 वर्षीय मनहरण वर्मा की मौत के बाद जब उनका अंतिम संस्कार किया जा रहा था, उसी समय बारिश शुरू हो गई। ग्रामीणों ने आनन-फानन में तिरपाल ताना और उसी के नीचे चिता जलाकर अंतिम विदाई दी। इस पूरी घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसने प्रशासन की नींद तोड़ी है।

“त्रिपाल लेकर जाते हैं अंतिम संस्कार के लिए” – ग्रामीण

गाँव के निवासी अशोक वर्मा ने बताया कि, “यहाँ मूलभूत सुविधाओं की बहुत कमी है, लेकिन जब किसी की मौत होती है और बारिश में तिरपाल के नीचे चिता जलानी पड़ती है, तो उस तकलीफ को कोई नहीं समझ सकता। न सरपंचों ने कभी ध्यान दिया, न जनप्रतिनिधियों और न ही जिला प्रशासन ने कोई ठोस कदम उठाया।”

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“21वीं सदी में भी नहीं है मुक्ति धाम” – जनपद सदस्य के पति

इस मामले में जनपद सदस्य के पति प्रवीण धुरंधर ने भी नाराज़गी जताई और कहा, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि 21वीं सदी में भी हमारे गाँव में शमशान घाट जैसी जरूरी सुविधा नहीं है। मृत्यु के बाद भी गाँववालों को इतनी परेशानी उठानी पड़े, यह हमारे सिस्टम पर सवाल खड़े करता है। मैं इस मुद्दे को प्राथमिकता से उठाऊंगा और मुक्ति धाम निर्माण के लिए जल्द पहल करूंगा।”
फुंडरडीह की यह स्थिति न केवल विकास योजनाओं की असलियत उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि जीवन के आखिरी पड़ाव तक ग्रामीण किस हालात में जी रहे हैं। अब सवाल यह है कि सोशल मीडिया पर यह तस्वीरें वायरल होने के बाद क्या जिला प्रशासन जागेगा? और क्या इस गाँव को आखिरकार एक सम्मानजनक मुक्ति धाम मिलेगा?

गांव की गरिमा से जुड़ा यह मुद्दा अब सिर्फ विकास का नहीं, मानवीय संवेदना और प्रशासनिक जिम्मेदारी का भी सवाल बन चुका है।

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