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अमेरिका और यूरोप के लोग जमकर खा रहे हैं भारत का बिस्कुट, ये कंपनियां बना रही हैं करोड़ों का मुनाफा!

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Jul 6, 2025    150812 views     Online Now 158
अमेरिका और यूरोप के लोग जमकर खा रहे हैं भारत का बिस्कुट, ये कंपनियां बना रही हैं करोड़ों का मुनाफा!

विदेशी जमकर खा रहे हैं भारत का बिस्कुट, पोहा

स्मार्टफोन भले ही पिछले वित्त वर्ष में भारत का सबसे ज्यादा निर्यात होने वाला सामान बन गया हो लेकिन अब भारतीय बिस्किट, नूडल्स, पैकेज्ड बेसन, साबुन और शैंपू भी विदेशी बाजारों में तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं. हिंदुस्तान यूनिलीवर (HUL), ITC, मारिको, गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, डाबर और AWL एग्री बिजनेस (पहले अदानी विल्मर) जैसी बड़ी FMCG कंपनियों ने पिछले दो वित्त वर्षों में अपने निर्यात कारोबार में घरेलू बिक्री की तुलना में ज्यादा तेजी देखी है.

छोटी चीजें, बड़ा धमाल

इन कंपनियों का अंतरराष्ट्रीय कारोबार भले ही HUL जैसी कुछ कंपनियों की कुल आय का सिर्फ 3% हो, लेकिन डाबर, इमामी और मारिको जैसी कंपनियों के लिए यह 20% से ज्यादा राजस्व ला रहा है. HUL की निर्यात के लिए बनी कंपनी यूनिलीवर इंडिया एक्सपोर्ट्स लिमिटेड ने पिछले वित्त वर्ष (31 मार्च को समाप्त) में 8% की बढ़ोतरी के साथ 1,258 करोड़ रुपये की बिक्री दर्ज की. इसका शुद्ध मुनाफा 14% बढ़कर 91 करोड़ रुपये हो गया. दूसरी ओर, HUL की कुल बिक्री में घरेलू मांग कमजोर होने की वजह से सिर्फ 2% की बढ़ोतरी हुई.

HUL का कहना है कि निर्यात में यह उछाल स्किनकेयर, लाइफस्टाइल न्यूट्रिशन, हेयरकेयर और पर्सनल वॉश जैसे प्रोडक्ट्स की वजह से आया. डव, हॉर्लिक्स, वैसलीन, पियर्स, ब्रू, सनसिल्क, ग्लो एंड लवली, पॉन्ड्स, लक्मे और लाइफबॉय जैसे ब्रांड्स की विदेशों में खूब मांग है.

सिर्फ बासमती चावल ही नहीं, बेसन-पोहा भी हिट

AWL एग्री बिजनेस के सीईओ अंगशु मलिक के मुताबिक, सिर्फ बासमती चावल ही नहीं, बल्कि सरसों और सूरजमुखी तेल, आटा, बेसन, सोया नगेट्स और पोहा जैसे प्रोडक्ट्स की भी विदेशी बाजारों में मांग बढ़ रही है. मलिक ने कहा, “हम तो अभी शुरुआत में हैं. पश्चिमी देशों में भारतीय रेस्तरां की बढ़ती संख्या और भारतीय खाने की लोकप्रियता निर्यात को बढ़ा रही है. ये सिर्फ भारतीय मूल के लोग नहीं, बल्कि विदेशी लोग भी हमारे प्रोडक्ट्स खरीद रहे हैं.”

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उन्होंने अनुमान लगाया कि इस वित्त वर्ष में निर्यात में 50-80% की वृद्धि हो सकती है. AWL की ताजा वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन सालों में उनका ब्रांडेड निर्यात कारोबार तीन गुना बढ़कर FY25 में 250 करोड़ रुपये को पार कर गया.

सरकार के साथ से कंपनियों ने पकड़ी रफ्तार

उद्योग के जानकारों का कहना है कि मांग के साथ-साथ सरकार की ओर से निर्यात को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम, जैसे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और मिलेट-आधारित प्रोडक्ट्स के लिए प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम, भी इस उछाल में मदद कर रहे हैं. सरकार ने पिछले दिसंबर में 73 कंपनियों को भारतीय ब्रांडेड खाद्य उत्पादों को वैश्विक बाजारों में बढ़ावा देने के लिए PLI स्कीम के तहत चुना था.

गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स ने अपनी हालिया निवेशक प्रेजेंटेशन में बताया कि उनके अंतरराष्ट्रीय कारोबार का ऑपरेटिंग मार्जिन FY25 में 17% तक पहुंच गया, जो दो साल पहले 10% था. मारिको ने विश्लेषकों को बताया कि उनका निर्यात कारोबार तेजी से बढ़ रहा है और FY25 में इसने स्थिर मुद्रा (करेंसी के उतार-चढ़ाव को छोड़कर) में 14% की वृद्धि दर्ज की, जबकि उनकी कुल वृद्धि 12% थी.

डाबर के निर्यात में 17% की उछाल आई, जबकि उनकी कुल राजस्व वृद्धि सिर्फ 1.3% रही. ITC ने अपनी ताजा वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि बिस्किट, नूडल्स और स्नैक्स के निर्यात में “हरी भरी शुरुआत” दिख रही है. उनका आशीर्वाद आटा कई देशों में मार्केट लीडर बन चुका है. ITC ने कहा, “हम नजदीकी बाजारों में रणनीतिक अवसरों की तलाश कर रहे हैं, जो भविष्य में वृद्धि का नया रास्ता बन सकता है.”

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ITC का दमदार प्रदर्शन

ITC का ज्यादातर विदेशी मुद्रा राजस्व अभी भी कृषि-उत्पादों के निर्यात से आता है, जो FY25 में 7% बढ़कर 7,708 करोड़ रुपये हो गया. लेकिन अब उनका FMCG निर्यात अगला बड़ा ग्रोथ ड्राइवर बनने की राह पर है. कंपनी का कहना है कि उनके FMCG प्रोडक्ट्स अब 70 से ज्यादा देशों में बिक रहे हैं.

भारतीय ब्रांड्स को मिल रही ग्लोबल पहचान

विदेशों में भारतीय खाने की बढ़ती लोकप्रियता का असर साफ दिख रहा है. भारतीय रेस्तरां और भारतीय व्यंजनों की डिमांड न सिर्फ भारतीय मूल के लोगों, बल्कि स्थानीय लोगों में भी बढ़ रही है. बिस्किट, नूडल्स, स्नैक्स, आटा, बेसन और पोहा जैसे प्रोडक्ट्स अब विदेशी सुपरमार्केट्स में आसानी से दिख रहे हैं. हालांकि, निर्यात में तेजी के बावजूद कुछ चुनौतियां भी हैं. वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा, करेंसी में उतार-चढ़ाव और लॉजिस्टिक्स की लागत जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन कंपनियां इनका सामना करने के लिए तैयार हैं.

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