महारानी विक्टोरिया को पसंद का इस दुकान का पेड़ा
ब्रिटिश राज के दौरान अगर भारत को अंग्रेजों से कई चीजें जैसे कि रेलवे और डाक व्यवस्था मिली है, तो ऐसी कई चीजें जो अंग्रेज भारत से लेकर गए. नहीं-नहीं हम कोहिनूर हीरे की बात नहीं कर रहे, बल्कि ये एक खाने की चीज है ‘मथुरा पेड़ा’. भारत में पेड़ा बनाने की एक दुकान है जो 160 साल से भी ज्यादा समय से चल रही है और इसका पेड़ा कभी ब्रिटेन के राजघराने की डायनिंग टेबल की शान हुआ करता था. सबसे खास बात ये है कि मथुरा पेड़ा बनाने वाली ये दुकान ब्रज क्षेत्र में भी नहीं है.
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा में हुआ,जहां का पेड़ा दुनियाभर में फेमस है. लेकिन पेड़़े को चाहने वाले लोग उनकी कर्मभूमि रहे द्वारका यानी गुजरात में भी कम नहीं है और यहीं की एक दुकान का पेड़ा ब्रिटिश रॉयल फैमिली की थाली तक पहुंचा.
1860 के दौरान शुरु हुई दुकान
यहां बात हो रही है गुजरात के वडोदरा की मशहूर पेड़े की दुकान ‘पेंडावाला दुलिराम रतनलाल शर्मा’ (Pendawala Duliram Ratanlal Sharma) की, जो 1860 के दशक की शुरुआती दौर में राजपुरा रोड पर खुली थी. ये वही दौर था, जब भारत को 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश राज में मिलाया गया था. वडोदरा में पेड़ा को ही पेंडा बोला जाता है.
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असल में इस दुकान का मूल कनेक्शन मथुरा से है. हलवाई दुलिराम जी और महाराम जी नाम के दो भाइयों ने इस दुकान को वहीं शुरू किया. लेकिन बाद में वह गुजरात शिफ्ट हो गए. आज कई पीढ़ियों बाद भी परिवार के जतिन शर्मा और हिमांशु शर्मा इस ब्रांड और पहचान को संभालते हैं और अब शहर के कई इलाकों में उनका पेंडा बिकता है. बस एक खास बात ये है कि अब भी इनकी दुकान का स्वाद,
क्वालिटी और भूरे पेड़े पर लिपटा चीनी का बूरा बरकरार है.
कैसे पहुंचा महारानी विक्टोरिया की थाली में?
इस दुकान के पेड़े ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया तक कैसे पहुंचे, इसे लेकर एक दिलचस्प किस्सा है. ब्रिटिश रॉयल फैमिली तक पहुंचने से पहले इस दुकान के पेड़े ने वडोदरा के गायकवाड़ राजघराने में जगह बनाई. एक बार की बात है कि महाराजा खंडेराव गायकवाड़ द्वितीय हाथी पर बैठकर इस दुकान के पास से गुजरे. लेकिन उनका हाथी दुकान के सामने जाकर रुक गया और जब तक उसे यहां के पेड़े नहीं खिलाए गए, आगे बढ़ने को तैयार नहीं हुआ.
इस घटना के बाद इस दुकान की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई. बाद में वडोदरा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय ने इस दुकान के पेड़े के स्वाद से महारानी विक्टोरिया को रूबरू कराया. उन्हें ये इतना पसंद आया कि उसके बाद ये अक्सर ब्रिटिश रॉयल परिवार के भोज इत्यादि में मिठाई के तौर पर पेश किया जाने लगा.
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