![मिडिल क्लास-शीश महल-यमुना विवाद... BJP को 27 साल बाद दिल्ली में किन बड़े कारणों से मिली सत्ता? मिडिल क्लास-शीश महल-यमुना विवाद... BJP को 27 साल बाद दिल्ली में किन बड़े कारणों से मिली सत्ता?](https://achchhikhabar.in/wp-content/uploads/2025/02/delhi-chunav-exit-poll-and-poll-of-polls-pm-modi-and-arvind-kejriwal.jpg)
दिल्ली में बीजेपी कैसे जीती?
दिल्ली में आम आदमी पार्टा का किला ढह गया. बीजेपी सत्ता में आ गई. आखिर कैसे हुआ ये चमत्कार? दिल्ली के निम्न मध्य वर्ग में आम आदमी पार्टी की गहरी पकड़ रही है, जिसके चलते पार्टी को बंपर जीत मिलती रही है लेकिन इस बार बीजेपी ने हर मोर्चे पर आप के कोर वोटर्स में सेंध लगाई है. दिल्ली में बीजेपी की जीत के आखिर क्या क्या कारण हैं- जानने की कोशिश करते हैं.
चूंकि दिल्ली की आबादी में मध्यम वर्ग की हिस्सेदारी 67.16 फीसदी है लिहाजा राजनीतिक दलों के लिए यह प्रभावशाली वर्ग हमेशा प्रमुख रहा है. इस साल के चुनाव में भी मध्यवर्ग के वोट ने बड़ा रोल निभाया है. हालांकि मध्यम वर्ग की आय की कोई एक परिभाषा नहीं है. 2 लाख से लेकर 30 तक कमाने वाले बड़े वर्ग को मध्यवर्ग माना जाता है. दिल्ली का मध्यवर्ग 2015 और 2020 दोनों में आपकी ओर झुका था, इस बार बीजेपी की ओर.
दिल्ली में दिखा मध्यवर्ग का करिश्मा
लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चला है कि पिछले चुनाव में AAP का मध्यम वर्ग का समर्थन 55 फीसदी से थोड़ा कम होकर 53 फीसदी हो गया, वहीं भाजपा का रुझान 35 से बढ़कर 39 फीसदी हो गया. साल 2025 तक आते आते यह पार्टी के पक्ष में निर्णायक हो गया.
केजरीवाल का अति आत्मविश्वास
चार महीने पहले 8 अक्टूबर 2024 को आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के खराब प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस चुनाव परिणाम से “सबसे बड़ा सबक” यह है कि किसी को भी चुनाव में कभी भी “अति आत्मविश्वास” नहीं होना चाहिए. हरियाणा चुनाव 2024 पर नजर डालें तो बीजेपी को 40.1%, कांग्रेस को 39.2% और आप को 1.8% वोट मिला था. बीजेपी का वोट शेयर कांग्रेस+आप से कम है. वहीं दिल्ली चुनाव 2025 में देखें तो बीजेपी को 47.11% और आप को 43.11% जबकि कांग्रेस को 6.8% वोट मिले. अगर दोनों मिलकर चुनाव लड़ते दोनों प्रदेशों के नतीजे अलग होते.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया पर तीखी टिप्पणी की- उन्होंने लिखा ‘और लड़ो आपस में’. उमर अब्दुल्ला का यह बयान इंडिया गठबंधन के अंदरूनी कलह पर प्रहार था.
मुफ्तखोरी बनाम वित्तीय स्थिरता
दिल्ली में चुनावी अभियान के दौरान भाजपा जनता को समझाने में कामयाब रही कि वे आप सरकार की किसी भी कल्याणकारी योजना को बंद नहीं किया जाएगा. हालांकि केजरीवाल ने हमेशा यह कहकर निशाना साधा कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो आम लोगों की 25000 रुपये की बचत का लाभ बंद कर देगी.
गौरतलब है कि दोनों दलों ने मुफ्त की योजनाओं का खूब ऐलान किया. आप के घोषणापत्र में महिलाओं के लिए प्रति माह 2,100 रुपये की गारंटी दी गई और छात्रों के लिए मेट्रो किराए में 50 प्रतिशत की कटौती की गई. वहीं भाजपा ने गरीब महिलाओं के लिए 2,500 रुपये की वित्तीय सहायता, 500 रुपये का एलपीजी सिलेंडर और होली और दिवाली पर मुफ्त सिलेंडर देने का वादा किया.
एलजी के साथ लगातार खींचतान
दिल्ली में उपराज्य पाल विनय कुमार सक्सेना के साथ अरविंद केजरीवाल और आप के दूसरे नेताओं-मंत्रियों की बहस और नोंक झोंक लंबे समय तक चली. सरकारी नीति, नौकरशाही पर नियंत्रण और जनकल्याण की योजनाओं के कार्यान्वयन जैसे मुद्दों पर उपराज्यपाल से लगातार रस्साकशी देखने को मिली. आप के तीनों ही कार्यकाल में एलजी से खींचतान मची है. आखिरी कार्यकाल में यह विवाद कुछ ज्यादा ही रहा. पार्टी को इसका नुकसान हुआ और बीजेपी को इसका लाभ मिला.
केजरीवाल और AAP की छवि हुई खराब
कभी अपनी साफ-सुथरी छवि का दम भरने वाली आप को अब विरोधियों और जनता की बढ़ती आलोचना का सामना करना पड़ा. कथित ईमानदारी पर सवाल उठे. शराब नीति से जुड़े भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के आरोपों से आप नेताओं की छवि कमजोर हो गई. वहीं जब “शीश महल” का मुद्दा सामने आया तो आप के पास इसको लेकर कोई ठोस जवाब नहीं था. आप के नेता जिस लिए जाने गए, उस मुद्दे पर पार्टी अपनी छवि साफ सुधरी रख पाने में कामयाब नहीं हुई.
कानूनी चुनौतियों, भ्रष्टाचार के आरोपों और जनता के मोहभंग ने AAP को बड़ा झटका दिया. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित सभी भाजपा नेताओं के भाषण में शीश महल और शराब घोटाने का मुद्दा प्रमुखता से छाया रहा.
बीजेपी की नो फेस स्ट्रैटेजी
भाजपा की यह एक ऐसी चुनावी रणनीति है जिसका उपयोग उन्होंने कई चुनावों में सफलतापूर्वक किया है. चुनावी गुटबाजी, जाति-आधारित ध्रुवीकरण और क्षेत्रीय पहचान के मुद्दों की चुनौतियों के कारण भाजपा ने हाल के चुनावों में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा करने से परहेज किया है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने यही रणनीति अपनाई.
इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा के मतदाता और समर्थक जो पूर्वांचली, पहाड़ी और पंजाबी जैसे विभिन्न समुदायों से थे, बंटे नहीं. इसके बजाय उन्होंने एकजुट होकर भाजपा को वोट दिया. सीएम उम्मीदवार नहीं होने से बीजेपी ने ऊंची जातियों, दलितों, ओबीसी और बनिया जैसे जाति समूहों के बारे में बेवजह बहस से परहेज किया. पूरा फोकस आम आदमी पार्टी के नैरेटिव को मात देने पर रहा और बीजेपी इस रणनीति में कामयाब रही.
इसी फॉर्मूले से बीजेपी ने हरियाणा, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में चुनाव जीते हैं.
यमुना जल में जहर का मुद्दा
यमुना जल में जहर का मुद्दा भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा गया. यमुना जल में जहर घोलकर दिल्ली में नरसंहार की साजिश का आरोप लगाने की टिप्पणी को गंभीर माना गया. खुद हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी सामने आए और केजरीवाल को माफी मांगने को कहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मुद्दे को जोक शोर से उठाया और इसे गंभीर बताया.
भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि अरविंद केजरीवाल यमुना का अभिशाप लगा है.
AAP के बड़े और नए चेहरे हारे
गौरतलब है कि इस बार आम आदमी पार्टी (आप) ने अपने 70 उम्मीदवारों में 28 नए चेहरे उतारे हैं. लेकिन सभी को कामयाबी नहीं मिली. विश्लेषकों का मानना है कि आम आदमी पार्टी की हार का श्रेय काफी हद तक ऐसे उम्मीदवारों को दिया जा सकता है जिनके टिकट काटे गए हैं.
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